१) वो प्रगतिशील कवि है,
दुनिया जानती है,
वो अश्लील लिखता है,
घरवाले जानते हैं...
२) दिल्ली में क्या नहीं मिलता,
मॉल, मेट्रो, फ्लाइओवर भी,
भरा-पूरा बाज़ार है...
एक दोस्त की तलाश जारी है....
३) "मुझे क्या दर्द है,
मैं नहीं बता सकता...."
"उफ्फ! तुम्हारी आउटडेटेड बातें..."
"काश!! तुम समझ पातीं...."
४) लाख चाहता हूं कि तुमसे,
अलग करूं ख़ुद को लेकिन,
तम जैसे मेरे घुटनों का काले धब्बा...
हर कोशिश के बाद मुझे दिख ही जाती हो....
और ज़रा-सा शर्मिंदा भी कर जाती हो.....
५) जो बिहार की बाढ़ में मरे,
बदनसीब थे....
सुना है दिल्ली में,
मरने पर ज़्यादा स्कीम्स हैं
६) टीवी पर ख़बर है-
"छत से गिरकर एक और मौत,
चांद छूना चाहता था..."
मैं भी रोज़ मरा करता हूं,
जीते-जी..
किसे ख़बर है...
७) हाथ में चूडियाँ पहनो
तो संभल कर पहनो,
चाँद चुभता है तो,
तकलीफ बहुत होती है.....
निखिल आनंद गिरि
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19 कविताप्रेमियों का कहना है :
जो बिहार की बाढ़ में मरे,
बदनसीब थे....
सुना है दिल्ली में,
मरने पर ज़्यादा स्कीम्स हैं
टीवी पर ख़बर है-
"छत से गिरकर एक और मौत,
चांद छूना चाहता था..."
मैं भी रोज़ मरा करता हूं,
जीते-जी..
किसे ख़बर है...
kya baat hai
nice..
बढ़िया व्यंग.
दिल्ली में क्या नहीं मिलता,
मॉल, मेट्रो, फ्लाइओवर भी,
भरा-पूरा बाज़ार है...
एक दोस्त की तलाश जारी है....
हाथ में चूडियाँ पहनो
तो संभल कर पहनो,
चाँद चुभता है तो,
तकलीफ बहुत होती है.....
हाथ में चूडियाँ पहनो
तो संभल कर पहनो,
चाँद चुभता है तो,
तकलीफ बहुत होती है.....
अति सुंदर पंक्तियाँ हैं.
जो बिहार की बाढ़ में मरे,
बदनसीब थे....
सुना है दिल्ली में,
मरने पर ज़्यादा स्कीम्स हैं
दिल्ली में क्या नहीं मिलता,
मॉल, मेट्रो, फ्लाइओवर भी,
भरा-पूरा बाज़ार है...
एक दोस्त की तलाश जारी है....
बहुत खूब अच्छा लिखा है
सादर
रचना
निखिल जी.. पूरे रंग में दिखे आप.. अरसे बाद दिल खुश हो गया पढ़कर...
अच्छी और सार्थक क्षणिका लिखना सचमुच कठिन होता है... क्या खूब कहा है...
जो बिहार की बाढ़ में मरे,
बदनसीब थे....
सुना है दिल्ली में,
मरने पर ज़्यादा स्कीम्स हैं
क्षणिकाओं का बढिया संग्रह है। अमूमन सभी क्षणिकाएँ पसंद आईं।
बधाई स्वीकारें।
२) दिल्ली में क्या नहीं मिलता,
मॉल, मेट्रो, फ्लाइओवर भी,
भरा-पूरा बाज़ार है...
एक दोस्त की तलाश जारी है....
५) जो बिहार की बाढ़ में मरे,
बदनसीब थे....
सुना है दिल्ली में,
मरने पर ज़्यादा स्कीम्स हैं
बहुत बढिया लिखा
ये दो सबसे अच्छी लगी
सुमित भारद्वाज
माफ़ी चाहूँगा निखिल भाई, मैं किसी भी एक क्षणिका को अच्छा नही कह सकता.सभी की सभी क्षणिकाएं बेहद चुटीली हैं,बेहतरीन व्यंग्य.
आलोक सिंह "साहिल"
वो प्रगतिशील कवि है,
दुनिया जानती है,
वो अश्लील लिखता है,
घरवाले जानते हैं...
.
निखिलजी,
बहुत ही बढ़िया लिखा है
ना जाने कितने तिलमिला गए होंगे
और ना जाने कितने घर वालों ने आपको मन ही मन सलाम किया होगा
सादर,
विनय
डा. रमा द्विवेदीsaid...
निखिल जी सभी क्षणिकाएं सार्थक एवं प्रभावी हैं....बधाई एवं शुभकामनाएं।
टीवी पर ख़बर है-
"छत से गिरकर एक और मौत,
चांद छूना चाहता था..."
मैं भी रोज़ मरा करता हूं,
जीते-जी..
किसे ख़बर है...
वाह भाई क्या बात है....
पर ये क्या
दिल्ली में क्या नहीं मिलता,
मॉल, मेट्रो, फ्लाइओवर भी,
भरा-पूरा बाज़ार है...
एक दोस्त की तलाश जारी है....
जब तक वो special नही मिलता हम हैं न
निखिल भाई आपसे उम्मीदें ज्यादा हैं!
दिल्ली में क्या नहीं मिलता,
मॉल, मेट्रो, फ्लाइओवर भी,
भरा-पूरा बाज़ार है...
एक दोस्त की तलाश जारी है....
निखिल जी बहुत बढिया ..... सार्थक ।
१) वो प्रगतिशील कवि है,
दुनिया जानती है,
वो अश्लील लिखता है,
घरवाले जानते हैं...
२) दिल्ली में क्या नहीं मिलता,
मॉल, मेट्रो, फ्लाइओवर भी,
भरा-पूरा बाज़ार है...
एक दोस्त की तलाश जारी है....
३) "मुझे क्या दर्द है,
मैं नहीं बता सकता...."
"उफ्फ! तुम्हारी आउटडेटेड बातें..."
"काश!! तुम समझ पातीं...."
बहुत खूब लिखा है.
१) वो प्रगतिशील कवि है,
दुनिया जानती है,
वो अश्लील लिखता है,
घरवाले जानते हैं...
२) दिल्ली में क्या नहीं मिलता,
मॉल, मेट्रो, फ्लाइओवर भी,
भरा-पूरा बाज़ार है...
एक दोस्त की तलाश जारी है....
३) "मुझे क्या दर्द है,
मैं नहीं बता सकता...."
"उफ्फ! तुम्हारी आउटडेटेड बातें..."
"काश!! तुम समझ पातीं...."
बहुत खूब लिखा है.
३) "मुझे क्या दर्द है,
मैं नहीं बता सकता...."
"उफ्फ! तुम्हारी आउटडेटेड बातें..."
"काश!! तुम समझ पातीं...."
४) लाख चाहता हूं कि तुमसे,
अलग करूं ख़ुद को लेकिन,
तम जैसे मेरे घुटनों का काले धब्बा...
हर कोशिश के बाद मुझे दिख ही जाती हो....
और ज़रा-सा शर्मिंदा भी कर जाती हो.....
ye do kaafi pasand aayi aur yaad bhi rahengi kaafi waqt tak......aapke 'kaash'ne to ghaayal he kar diya....
. जो बिहार की बाढ़ में मरे,
बदनसीब थे....
सुना है दिल्ली में,
मरने पर ज़्यादा स्कीम्स हैं
. टीवी पर ख़बर है-
"छत से गिरकर एक और मौत,
चांद छूना चाहता था..."
मैं भी रोज़ मरा करता हूं,
जीते-जी..
किसे ख़बर है...
ग्रेट
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)