इक्कीस सितम्बर, बादलों से घिरा अम्बर,
असीम सुहाना मौसम........ और
भारत पर्यावास केन्द्र में हम...
करीब डेढ़ बजे..
हिन्दी के सिपाई दृढ संकल्प की वर्दी में सजे...
इकट्ठे हो गये...
और फिर हिन्दी हित में खो गये..
भगवन की असीम कृपा से पड़ रहीं थी हल्की हल्कीं बूदे
ताकी सिपाही हर बात पर रहें चौकन्ने और आँखें ना मूँदें
कोई दिल्ली से तो कोई फरीदाबाद से
कुछ गुड्गाँव से तो कुछ गाजियाबाद से
नज़र ना लगे हिन्दी के इस लगाव से
सभी का शुक्रिया करना चाहता हूँ हृदयागत भाव से
रविवार का दिन था तो कोई पत्नी को नाराज करके अया
कोई मित्रों को॥ कोइ फिल्म तज कर आया तो कोई चित्रो कों
किसी ने शॉपिंग के पैसे बचाये तो तो हम जैसे कुछ
पत्नी से पिंड छुडाकर आये ... बहरहाल हर कोई आया
और यहीं दिल को बहुत भाया... तो भाया आया कौन कौन...
कैमरे की तिरछी नज़र का का कमाल ॥ आप भी देखिये
नटखट कैमरे की आखों देखा हाल ...
हिन्द युग्म वीर-वीरांगनायें
हर सांस हिन्द की दीवानी, कुछ करने की दिल में ठानी ।
हम मुट्ठीभर पर मुट्ठी हैं, हम हिन्द युग्म के सैनानी ॥
जगदीश रावतानी जी, पराग जी (बांये से)
अपनी कविता का मधु 'पराग', बिखरेगा चहुँ दिस यही राग ।
गजल भूप आशीश मिला, प्रफुल्लित मन हम धन्य भाग ॥
जगदीश रावतानी जी, रूपम चौपड़ा जी (बांये से)
'रूपम' का एक और मिला रूप, हिन्दी का एक ओर भद्र स्वरूप ।
हो बात चेतना की जन की, जन जन को करना जागरूक ॥
प्रेमचन्द सहजवाला जी, नीलम जी (बांये से)
हम हिन्द-युग्म एक रत्नाकर, नीलम सम 'नीलम' को पाकर ।
आओ प्रयास हर रोज करें, माणियों कि नित नित खोज करें ॥
गौरव सोलंकी जी, सुमित जी (बांये से )
दिल से कृतज्ञ, युग्म रब का , जो साथ मिला है गौरव का ।
सु-मीत 'सुमित' का साथ संग, ये युग्म प्यारा हम सब का ॥
प्रेम चन्द सहजवाला जी
अनुभवी चक्षु अनुभवी हाथ, और प्रेमचन्द का सजह साथ ॥
अब कठिन राह हो जाये मगर, क्या घवराने की कोई बात ॥
धन्यवाद
- अपका कैमरा
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
पत्नी से पीछा छुडाकर आने की नही ,उन्हें साथ में लाने की जरूरत थी ,
हिन्दयुग्म को आप जैसे कवियों की ,आप जैसे कवियों को हिन्दयुग्म की बेहद जरूरत है
साभार
पत्नी और कविता ?
साथ का न सुभीता
खैर यह हास्य भर है
कवितामय रपट पर साधुवाद
युग्म जिंदाबाद श्याम सखा श्याम
वाह, वाह!
शुरू की दो पंक्तियाँ पढते हीं जान गया था कि राघव जी पधारे हैं।
किसी भी विषय पर त्वरित रचना उन्हीं के बस की बात है।
आशुकवि को मेरा प्रणाम।
राघव जी
वाह वाह. आपने तो कमाल ही कर दिया. क्या काव्यात्मक परिचय दिया है. आनंद आ गया. आपकी प्रत्भा को सलाम.
बढ़िया पूरा हाल बता दिया आपने तो ..:)
मीट जितनी खूबसूरत थी, आपने उतनी ही सुंदर कविता बना डाली। बधाई :)
राघव जी से यही उम्मीद थी.. पर इतनी जल्दी लिख डालेंगे.. ये न पता था...
वाह!!
सच कहूँ राघव जी,जैसे ही मैंने पढ़ना शुरू किया तुंरत दिमाग में ये बात आई कि कहीं मैं राघव जी को तो नहीं पढ़ रहा.प्रस्तुति का यह अंदाज लाजवाब.
आलोक सिंह "साहिल"
हम हिंदी के दीवाने हैं॔,
हम नभ छू लेंगे यह ठाने हैं ...
हैं लाख बराबर एक एक
संकल्प लिए मन में अनेक
हैं शब्द ब्रम्ह के आराधक.
जिव्हा पर रसमय गाने हैं...
हम नेह मर्मदा के प्रवाह
हममें हिमगिरि सा है उछाह
हम गीत गजल नाटक निबंध
अधरों के मधुर तराने हैं....
हम महाकाल के हस्ताक्षर
हम रति गति मतिमय प्रणवाक्षर
हम ओम व्योम भू सलिल सोम
हम हिंदी के मस्ताने हैं....
आचार्य संजीव वर्मा "सलिल"
संपादक दिव्य नर्मदा
email: salil.sanjiv@gmail.com
blog
sanjivsalil.blogspot.com
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कल्पना को मिला आकार
देश में हो या विदेश में
लहराएँ हिन्दी का परचम लगातार
है प्रार्थना यही की
उन्नति करे आप इसी प्रकार
पल्लवित कुसमित हो
आप सभी के सद् विचार
रचना आप के प्रयास के आगे
होती है नत मस्तक बार बार
rachana
camera ji , apne kavita badi achchi likhi
भूपेन्द्र राघव जी,
बहुत ही सुन्दर शब्दो मे आपने मीटिंग को बयान किया
इस कविता को पढते ही मेरी रविवार की यादे ताजा हो गयी।
सुमित भारद्वाज
waah ragha ji excellent
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