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मैं प्रेत को नही जानता
मैं प्रेत को मानता भी नही
परवश होना मेरे लिए
कल्पना की बात है
नियंत्रण की डोर ख़ुद
अपने ही हाथ है
लेकिन यह मान महल
अब कोई कुरेद रहा है
कोई कठफोड़वा प्रेत
विश्वास दरख्त छेद रहा है
जटिल से सहज विकास पथ है
शाश्वत यात्रा विकास रथ है
बात उलझाकर सुलझाना
मेरी फितरत है
पेशे से अध्यापक हूँ
पढाना मेरी किस्मत है
बात अधिक ना उलझाकर
सहज शब्दों में बताता हूँ
कई वर्ष पहले मेरी कक्षा में
दो छात्र थे, यूँ तो कई थे पर
दो विशेष याद है
एक मेधावी दूसरा फिसड्डी
एक शर्ट पेंट पहनता
दूसरा बनियान चड्डी
पहले को पढाने में, मैं करता
अपनी सम्पूर्ण उर्जा समर्पित
दूसरा रहा सदा उपेक्षित
मैं कहता पढ़ना
नही काम तेरा
चपरासी सा काम
करता वो मेरा
पहला दिनों दिन प्रखर होता चला गया
दूसरा आख़िर पढ़ाई छोड़ चला गया
पर ना छोड़ी विनम्रता
सदा करता मेरा सम्मान
जहाँ भी मिलता झुकता
कहता गुरूजी प्रणाम
नियति की माया अनोखी
धूप हँसे और शबनम रोती
बरसों में जो माला पिरोती
एक पल में बिखरे मोती
अब बात को अंजाम तक लाता हूँ
अपनी जिन्दा मौत की दास्ताँ सुनाता हूँ
पहले शिष्य ने परदेश को
देश कबूला हैं
मेरा क्या अपने गाँव का
नाम तक भूला है
एक बार आया
मैं मिलने गया
हाथ में सिगरेट
मुंह फेर लिया
मैं फ़िर फ़िर
जाता रहा उसके पास
मन में लिए यह आस
मुझे पहचाने स्वीकारे
बचपन की शिक्षा का
एहसान माने
वह बेशर्म हर बार
नजरे चुराता रहा
मेरे दिल पर बार बार
हथौडा सा लगा
दूसरा गावं से स्टेशन तक
रिक्शा चलता है
मुझे पैदल चलते देख
आदर से बिठाता है
हर बरस मेरे घर
नारियल रौली पुष्प ले आता है
श्रद्धा से नमन करता
आचमन कराने को
चरण धुलता है
आज फ़िर शिक्षक दिवस है
और वह मेरे घर आया है
रौली का वह टीका देगा
श्रीफल भेंट करेगा वो
कांधे पर माला लादेगा
चरणों में शीश धरेगा वो
मैं पिघलता अन्दर से
घबराता इस मंजर से
चाहता हूँ नमन करना
चाहता उसे गले लगाना, पर
जकड लेता मुझे कोई
पकड़ लेता मुझे कोई
पराधीन मेरी काया है
क्या करूँ ...... ?
एक पुराने अध्यापक के
प्रेत का मुझ पर साया है
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विनय के जोशी
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत लाजवाब कविता है!
आदर देने का भाव अलग चीज है, I.Q. अलग चीज!
यहाँ आस्ट्रेलिया आने पर मालुम हुआ कि शिक्षक
को विशेष आदर देना केवल भारत की परम्परा है। पश्चिमी-संस्कृति में ऐसा या उसके जैसा कुछ भी नहीं ।
पर इसका अर्थ यह नहीं कि हम अपनी संस्कृति को
भूल जायं ।
आप की कविता बेहद यथार्थपरक और संवेदनशील है ,हमारे पास शब्द ही नही हैं ,इसकी तारीफ़ के लिए
|शुभकामनाओं के साथ
बहुत ही अच्छी कविता
एक छात्र पर बहुत क्रोध आ रहा है और एक बेचारे पर दया
एक प्रश्न और उठ रहा हे मन मे के शिक्षक अपना फर्ज कैसे भूल गये?????
और ऐसा भेदभाव क्यो किया?
सुमित भारद्वाज
विनय जी
बहुत ही अच्छा और सच्चा लिखा है। पढ़कर आनन्द आया। बधाई स्वीकारें।
आप की कविता सच्चाई बयाँ करती है
सुंदर अति सुंदर
सादर
रचना
क्या करूँ ...... ?
एक पुराने अध्यापक के
प्रेत का मुझ पर साया है
क्या बात कही है जोशी जी, अति सुंदर!
विनय जी,
आपने मुझे हिन्दयुग्म पर अपनी रचनाएँ पढ़ने की लिए कहा आपकी कविता प्रेत और जवान मौत तो अच्छी लगी | पर आपकी लिखी लघुकथा इमानदार पढ़ने के बाद पन्द्रह मिनट के लिए मैं जड़ हो गया | बहुत बढ़िया | हिन्दयुग्म बहुत अच्छा है अब मैं रोज पढूंगा- हर्षवर्धन
क्या सुन्दर बात कही आपने, किस तरहसे इन्सान अपने बन्धनों में बाधा हुआ है बहुत ही बढ़िया लिखा है.
चाहता हूँ नमन करना
चाहता उसे गले लगाना, पर
जकड लेता मुझे कोई
पकड़ लेता मुझे कोई
पराधीन मेरी काया है
क्या करूँ ...... ?
एक पुराने अध्यापक के
प्रेत का मुझ पर साया है
आपकी कविता का concept प्रेमचंद जी कि कहानी "हज्जे अकबर" से मिलता जुलता है.
यादों के अनुभव ने बडिया कविता बना दी .बधाई
wo australia wale ne aapke gyan ki saarheenata ko jaan liya. wo anpadh bhola bechara.... aap ko abhi bhi koi mahaan devta samajhta raha ... chalo aap ke bhi ahamkar ko thodi pushti milti rahi...
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