(1)
पता नहीं....
हिजड़े
समाज का अंग
हैं या नहीं....
...पर वे जन्म
समाज में ही लेते है
पता नहीं....
हिजड़े
किनके गर्भ से
आते हैं....
...पर किसी मंथन से
निसंदेह नहीं
पता नहीं....
हिजड़े
किस धर्म को
मानते हैं....
पर वे पलते हैं
मानवता के परजीवी बनकर
पता नहीं....
हिजड़े
कैसे इंसानों से
अलग-थलग दिखते हैं?
जबकि....
कहीं-न-कहीं
एक हिजड़ा
हर आदमी में ही पलता है!
(2)
हां ! हर बार
जब कोई कहीं
असफल होता है..
वो एक हिजड़े-सा
महसूस करता है
हां ! हर बार
असमर्थतता
हर किसी को
उसके हिजड़त्व का
एहसास करा जाती है
फिर चाहे...
असफल प्रेमी हो...
अभागा पति...असमर्थ पिता
या असहज भाई हो.....
हां ! हर बार
क्षोभ में
जब हिजड़े
किसी को श्रापते हैं
ठीक वैसे ही
एक पीड़ित आत्मा
श्रापती है
पीड़ित करने वाले को --
'जा तू भी मुझ जैसा हो जा !'
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
a good poem ek aise tathya ko likha gaya hai jispe hum sab dhyan nahi dete.
हां ! हर बार
असमर्थतता
हर किसी को
उसके हिजड़त्व का
एहसास करा जाती है
बहुत अच्छा कटाक्ष अभिषेक जी आपका पढ़कर अच्छा लगा
अभिषेक जी,
अच्छी लगी आपकी रचना। समाज के विषम ढाँचे पर प्रहार करती हुई सी। आपने उन बातों को बखूबी उठाया है जिन्हे लोग नजरअंदाज कर देना उचित समझते हैं।
रचना अच्छी है | हिजडे का माद्यम कुछ नया लगा |
अवनीश
अभिषेक जी!
एक कवि अपनी कविता और अपनी प्रतिभा से न्याय तभी करता है , जब वह निस्पक्ष भाव से अपनी बातों को कहता है। आपने भी समाज में फैली हुई कमियों को समाज द्वारा शापित एवं निष्कासित "हिजड़े" के माध्यम से दर्शाया है। यह वाकई काबिले-तारीफ है। रचना अच्छी बन पड़ी है।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
aap ki kaviya mujhe bahut achchhi lagi
saader
rachana
अभिषेक जी,
आपने एक बहुत अच्छा विषय चुना है जब कभी दिल्ली के चौराहो पर हिजड़ों को भिखा मांगते देखती हुं तो मन मे एक ही विचार आता है कि कुदरत द्वारा मिली ये कैसी सजा, र्दद का ये कैसा रूप, ऐसी असर्मथता जिसे शब्द मिल सकते पर मर्हम नहीं आप के द्वारा लिखा हर शब्द दिल को छू सा गया सार्थक प्रयास
I felt that though the major part of the poem is based on the pitiable condition of a small section of the society, the last few stanzas of the poem are very touching.
हां ! हर बार
असमर्थतता
हर किसी को
उसके हिजड़त्व का
एहसास करा जाती है
Its true that failures make us feel helpless but the only thing we can do is to consider these failures a learning experience and think "Failures r the pillars 2 success"
ठीक वैसे ही
एक पीड़ित आत्मा
श्रापती है
पीड़ित करने वाले को --
'जा तू भी मुझ जैसा हो जा !'
When in acute pain, we do have this feeling.
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