जब तैं प्रीत श्याम सौं कीनी
तब तैं मीरां भई बांवरी,प्रेम रंग रस भीनी
तन इकतारा,मन मृदंग पै,ध्यान ताल धर दीनी
अघ औगुण सब भये पराये भांग श्याम की पीनी
राह मिल्यो वो छैल-छ्बीलो,पकड़ कलाई लीनी
मोंसो कहत री मस्त गुजरिया तू तो कला प्रवीनी
लगन लगी नन्दलाल तौं सांची हम कह दीनी
जनम-जनम की पाप चुनरिया,नाम सुमर धोय लीनी
सिमरत श्याम नाम थी सोई,जगी तैं नई नवीनी
जब तैं प्रीत श्याम तैं कीनी
--डॉ॰ श्याम सखा 'श्याम'
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4 कविताप्रेमियों का कहना है :
श्याम जी
बहुत सुंदर प्रस्तुति .....
जनम-जनम की पाप चुनरिया,नाम सुमर धोय लीनी .......... (यह आस्था ही तो है)
वीनस केसरी
श्याम सरिस सुंदर रची कविता
मोरो मन हर लीनी
श्याम सखा तूने म्हारे को
श्याम रंग रंगी दीनी
जै श्री कृष्ण।
Bahut sunder bhajan hai. Badhaee.
Janmashtamee ki shubh kamnaen.
shyamji,
बहुत सुंदर, बहुत अच्छा लगा |
vinay
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