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Thursday, June 05, 2008

अभी उठो! एक पेड़ लगा लो


विश्व पर्यावरण दिवस की आप सभी को शुभकामनाएँ। hindyugm.com के हैडर को भी सीमा कुमार ने इस परिपेक्ष्य का कर दिया है। इस अवसर पर हमें विनय के॰ जोशी की एक कविता प्राप्त हुई हैं। आप भी देखें इनकी चिंता।

ओ मेरे शहर सर्वज्ञ
बंद करो यह वर्षा यज्ञ
ओ ज्ञानी ओ श्रेष्ठ महामना
बंद करो यह इन्द्र आराधना
.
अश्रु घड़ियाली घृत आहुतियाँ
पाखंड की समिधा को त्यागो
सृष्टि पा रही विनाश धमकियाँ
स्वार्थ निद्रा से अब तो जागो
.
बंजर धरती सूने जंगल
गंजे पर्वत बाँझ मैदान
बीज दफ़न खाद कफ़न
कब्रिस्तान खेत खलियान
.
और किसी को दोष न देकर
अपने आप को तोलो तुम
जिस भाषा को प्रकृति जाने
उस बोली को बोलो तुम
.
रूठी बरखा को मनालो
कोयल की तुम कूक जगा लो
बादल से संवाद बना लो
अभी उठो! एक पेड़ लगा लो
.
जन्मतिथि या शुभ दिवस हो
हर दिन एक पेड़ लगा लो
श्राद्ध तिथि या पुण्य दिवस हो
हर दिन एक पेड़ लगा लो
.
मूक पेड़ जब उठाये हाथ
रुक ना पायेगी बरसात

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

सीमा सचदेव का कहना है कि -

जन्मतिथि या शुभ दिवस हो
हर दिन एक पेड़ लगा लो
श्राद्ध तिथि या पुण्य दिवस हो
हर दिन एक पेड़ लगा लो
.
मूक पेड़ जब उठाये हाथ
रुक ना पायेगी बरसात
सच्च कहा विनय जी आपने |अगर हम सब यह बीडा उठा ले टू धरा को स्वर्ग बना सकते

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

हम भी आपके साथ यह प्रण लेते हैं।

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

बहुत बढिया....

*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
क्यूँ पेड़ काटकर काट रहे ?
हम अपने पैरों को प्रतिदिन,
क्यूँ मिटा रहे सोन्दर्य स्वमं ?
वसुधा के अंगो से गिन गिन
क्यूँ रणभूमि में बदल रहे ?
आश्रयदायी सब अभ्यारण
है निहित ........................

नदियों की सांसे रुकीं रुकीं;
सागर प्यासे से खड़े हुए,
प्रकृति मौन हो विवश खड़ी
पेड़ों के शव जो पडे हुए,
क्यूँ बन दुःशासन अनुयायी?
करते धरती का चीर-हरण
है निहित ........................
http://merekavimitra.blogspot.com/2008/04/blog-post_23.html

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

हर दिन एक पेंड़ लगा लो---वाह -----।
कम से कम हर कोई जीवन में एक तो लगा लो-----
बहुत जरूरी है क्योंकि----
--------------------------------------------
नश्तर सा चुभता है उर में कटे वृक्ष का मौन।
नीड़ ढूंढते पागल पंछी को समझाए कौन॥
---------------------------------------------
--देवेन्द्र पाण्डेय।

Pooja Anil का कहना है कि -

संदेश भी मिल गया और सीख भी , अब एक साल बाद सब बताना कि सबके पेड़ कितने बड़े हो गए हैं???

विनय जी , बहुत ही अच्छी संदेश देती कविता लिखी है , बधाई
कुछ पंक्तियाँ जो कविता का सार तत्व हैं ----

ओ मेरे शहर सर्वज्ञ
बंद करो यह वर्षा यज्ञ

अश्रु घड़ियाली घृत आहुतियाँ
पाखंड की समिधा को त्यागो

जन्मतिथि या शुभ दिवस हो
हर दिन एक पेड़ लगा लो
श्राद्ध तिथि या पुण्य दिवस हो
हर दिन एक पेड़ लगा लो

^^पूजा अनिल

Anonymous का कहना है कि -

और किसी को दोष न देकर
अपने आप को तोलो तुम
जिस भाषा को प्रकृति जाने
उस बोली को बोलो तुम
जोशीजी आपने कितनी सच बात कही है,प्रकृति की बोली को समझकर ही हम सुखपूर्वक अपना अस्तित्व बचाकर रख सकते हैं.
यहां भी देखें शायद आपको पसन्द आये-
www.rashtrapremi.blogspot.com

Anonymous का कहना है कि -

और किसी को दोष न देकर
अपने आप को तोलो तुम
जिस भाषा को प्रकृति जाने
उस बोली को बोलो तुम
जोशीजी आपने कितनी सच बात कही है,प्रकृति की बोली को समझकर ही हम सुखपूर्वक अपना अस्तित्व बचाकर रख सकते हैं.
यहां भी देखें शायद आपको पसन्द आये-
www.rashtrapremi.blogspot.com

Harihar का कहना है कि -

और किसी को दोष न देकर
अपने आप को तोलो तुम
जिस भाषा को प्रकृति जाने
उस बोली को बोलो तुम

बहुत सुन्दर! याद रखने योग्य कविता

KAMLABHANDARI का कहना है कि -

बंजर धरती सूने जंगल
गंजे पर्वत बाँझ मैदान
बीज दफ़न खाद कफ़न
कब्रिस्तान खेत खलियान
ye pangtiya sachmuch aaj ke kadwe sach ko baya kar rahi hai .
bahut badhiya kavita hai

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

विनय जी,
आपकी इस रचना की जितनी तारीफ की जाए कम है.. आप वाकई बधाई के पात्र है..
मै हिंद युग्म के नियंत्रक महोदय से निवेदन करूँगा इस कविता को स्वरों मै बाँध कर सजाया जाए..
और मेरा बस चलता तो पाठ्य क्रम मै भी सम्मिलित करता
आपका संबोधन शहर के लिए है.. जो की मुझे इस लिए अच्छा लगा.. क्यों की आज कल इन्सान को कोई उपदेश दे तो वो कुछ बुरा मान जाता है.. और जो prakriti की भाषा सीखने को कहा है वो भी बहुत अच्छा विचार लगा..
मेरी तरफ से ढेर सारी बधाई..
सादर
शैलेश

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