कभी
उनकी यादों के बलबूते
जीते रहे
तो कभी
अपनी जिंदगी की सूई से
यादों की हथेली पर
किस्मत की अधखींची रेखाओं
के पैबंद सिलते रहे।
कभी
मेरे आप और आईने के
दरम्यान फँसे
उनके अस्तित्व के
करोड़ों कतरन
अपनी साँसों के दरवाजे पर
उड़ेलते रहे
तो कभी
जिंदगी की तल्खियों के
पौधों को
अपने रोम-रोम से उखाड़कर
अपनी आँखों में बोते रहे
और उन कतरनों को
जड़ों की खाद-सा झेलते रहे।
कभी
बिना सबब
नदी-नालों, ताल-तालाबों में
शैवालों की सुनहरी
या फिर हल्की हरी
दरी पर
उनका नाम उकेड़ते रहे
तो कभी
उनकी अंतिम चिट्ठी में
धुँधली-धुँधली जवां
कोर्ट-मार्शल के
अंतिम आदेश-सी
उनकी लिखाई को
अपने सीने के ढाँचे पर
बिखेरते रहे।
कभी
इश्क की एक नादानी के लिए
जिंदगी के हज़ार वादों
की खिलाफत करते रहें
तो कभी हुआ यूँ भी
कि
इश्क के एक अदने से वादे के लिए
जिंदगी की हज़ार नादानियों की
बलि देते रहे।
कभी......कभी यूँ भी।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
तो कभी
उनकी अंतिम चिट्ठी में
धुँधली-धुँधली जवां
कोर्ट-मार्शल के
अंतिम आदेश-सी
उनकी लिखाई को
अपने सीने के ढाँचे पर
बिखेरते रहे।
वाह तन्हा जी आपकी कविता के भाव, विचार
व शब्दों का चयन मुझे बहुत अच्छा लगा
कभी
इश्क की एक नादानी के लिए
जिंदगी के हज़ार वादों
की खिलाफत करते रहें
तो कभी हुआ यूँ भी
कि
इश्क के एक अदने से वादे के लिए
जिंदगी की हज़ार नादानियों की
बलि देते रहे।
आपकी कविता मन को छू गई |बधाई
अंतिम आदेश-सी
उनकी लिखाई को
अपने सीने के ढाँचे पर
बिखेरते रहे।
बहुत khub
कभी
इश्क की एक नादानी के लिए
जिंदगी के हज़ार वादों
की खिलाफत करते रहें
तो कभी हुआ यूँ भी
कि
इश्क के एक अदने से वादे के लिए
जिंदगी की हज़ार नादानियों की
बलि देते रहे।
बहुत ही खूबसूरत ख्याल बुने हैं हैं आपने इस रचना में दीपक जी सुद्नर कविता लिखी है
तन्हा जी ,
इश्क की नादानियों पर लिखी यह रचना खूबसूरत लगी , बधाई
^^पूजा अनिल
कविता की शुरुआत ही ज़ोरदार थी औट अंत भी उतना ही लाजवाब! तन्हा जी , इस बार की कविता हमेशा से कुछ ख़ास थी ...
बहुत अच्छा लगा पढ़कर... यह पंक्तियाँ तो दिल को छू गयीं...
अपनी जिंदगी की सूई से
यादों की हथेली पर
किस्मत की अधखींची रेखाओं
के पैबंद सिलते रहे।
तनहा जी
हमेशा की तरह सुंदर लिखा है-
कभी
इश्क की एक नादानी के लिए
जिंदगी के हज़ार वादों
की खिलाफत करते रहें
तो कभी हुआ यूँ भी
कि
इश्क के एक अदने से वादे के लिए
जिंदगी की हज़ार नादानियों की
बलि देते रहे।
बधाई.
जय हो प्रभु जय हो..
तो कभी
उनकी अंतिम चिट्ठी में
धुँधली-धुँधली जवां
कोर्ट-मार्शल के
अंतिम आदेश-सी
उनकी लिखाई को
अपने सीने के ढाँचे पर
बिखेरते रहे।
जबरदस्त......
डा. रमा द्विवेदी....
बहुत खूब”तन्हा’ जी’...शब्दों का ताना-बाना बहुत सशक्त बुना है आपने....स्तरीय, भावपूर्ण कविता के लिए बधाई एवं शुभकामनाएं...
Achchhi lag rahi thi....
but kuchh baat khatak si gayi......
kuchh lines jyadaa lambe lag gaye:(
rest is nice......n interesting.....
n we can discuss rest on gtalk :P
VD bhai... bahut mast kavita kikhe hain..
suru ke do stanza itna philosophical tha ki sahi dhang se relate karna thoda muskil ho gaya... but, bad ke do stanza!... it is fantastic...
Badhai sweekar karen..
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