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Monday, May 12, 2008

सनसनी बिकती है दुनिया के बड़े बाज़ार में


अप्रैल २००८ के यूनिकवि ने मई माह के अन्य तीन सोमवारों को कविता पोस्ट करने से मना कर दिया। यह यूनिकवि के इतिहास में पहली बार है। इसलिए इस बार हम यह अवसर दूसरे स्थान के कवि प्रेमचंद सहजवाला को दे रहे हैं। प्रेमचंद जी मूल रूप से ग़ज़ल लिखते हैं तो मई माह के हर सोमवार को आपके लिए ग़ज़ल लेकर आनेवाले हैं।

ग़ज़ल-१

एक छोटी बात कोई आ के समझाना मुझे
वतन और दर्दे-वतन का फर्क बतलाना मुझे

दर्द मेरा जानने मोटर में आए मेहरबाँ
आज उन के घर तलक पैदल पड़ा आना मुझे

जब कड़ी सी धूप के दिन अलविदा देने लगे
दोस्तो अच्छा लगा बादल का तब छाना मुझे

कह रहा था कल नुमाइंदा ये मेरे शहर का
खूब आता है सितारे तोड़ कर लाना मुझे

आस्मां को छू रहे हैं दाम हर इक शै के अब
कोई ला कर दे कहीं से सिर्फ़ इक दाना मुझे

हर लम्हा नगमे खिजां के गा रहा हूँ आजकल
फस्ले-गुल का भी सिखा दो गीत तुम गाना मुझे

मुल्क की हालत पे लिख डाली उन्होंने इक किताब
उस के पन्नों पर कहीं सच हो तो पढ़वाना मुझे

क्यों करोड़ों लोग आए हैं वहाँ मैदान में
मेरी हस्ती चाहता है कौन बतलाना मुझे

सनसनी बिकती है दुनिया के बड़े बाज़ार में
मेरी भी जब हो शहादत दोस्त बिकवाना मुझे

-प्रेमचंद सहजवाला

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7 कविताप्रेमियों का कहना है :

सीमा सचदेव का कहना है कि -

मुल्क की हालत पे लिख डाली उन्होंने इक किताब
उस के पन्नों पर कहीं सच हो तो पढ़वाना मुझे

सनसनी बिकती है दुनिया के बड़े बाज़ार में
मेरी भी जब हो शहादत दोस्त बिकवाना मुझे

आपकी ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी ,विशेषकर यह दो शेयर

Pooja Anil का कहना है कि -

प्रेमचंद जी ,
बहुत अच्छा लगा इस ग़ज़ल के द्वारा आपके विचारों को जानना ,-

सनसनी बिकती है दुनिया के बड़े बाज़ार में
मेरी भी जब हो शहादत दोस्त बिकवाना मुझे

बहुत खूब लिखा है , बधाई

^^पूजा अनिल

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

वाह ! कितने सजह रूप में बात कह दी आपने
सच में सजहवाला ही हो आप नाम से और काम से भी ..
अच्छी लगी गजल आपकी
सनसनी बिकती है दुनिया के बड़े बाज़ार में
मेरी भी जब हो शहादत दोस्त बिकवाना मुझे
बहुत खूब..

Rama का कहना है कि -

डा. रमा द्विवेदी.....

प्रेमचंद जी,

यूँ तो पूरी ग़ज़ल बहुत खूब है पर ये पंक्तियां बहुत अच्छी लगीं...बधाई व शुभकामनाएं..

सनसनी बिकती है दुनिया के बड़े बाज़ार में
मेरी भी जब हो शहादत दोस्त बिकवाना मुझे

Sajeev का कहना है कि -

प्रेम जी एक एक शेर खूबी से तराशा हुआ है.... जबरदस्त प्रस्तुति....

Anonymous का कहना है कि -

"सनसनी बिकती है दुनिया के बड़े बाज़ार में
मेरी भी जब हो शहादत दोस्त बिकवाना मुझे"
::बहुत खूब..बहुत खूब, प्रेमचंद जी, आगे आप से और लजीज शेर
की अपेक्षा करता हूँ...
- आपका गुणग्राही पाठक ... श्यामल बरुआ.

caiyan का कहना है कि -

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