कभी यूं भी आ,
मिलने मुझे,
जैसे खिली धूप मे बरसात आए,
भीनी सी एक खुशबू जगे,
सौंधी सी एक सौगात लाये.
कभी यूं भी आ....
कभी यूं भी आ....
बरस जा मुझ पे ऐसे,
पर्वत पे जैसे, काली घटायें,
बिखर जा मुझ पे ऐसे,
सागर पे जैसे, ठंडी हवायें,
रात भर दो जिस्म यूहीं,
चाँदनी मे घुलते रहें,
कतरा कतरा, पिघले हर पल,
लम्हा लम्हा जलते रहें,
कभी यूं भी आ, मिलने मुझे,
जैसी खुली पलकों तले,
सपना कोई चुपचाप आए,
परदे गिरे जब होश के,
बेखुद सा एक एहसास छाए,
कभी यूं भी आ....
कभी यूं भी आ....
सिमट जा मुझ में ऐसे,
हो बूँद जैसे सीपों मे सिमटी,
लिपट जा मुझ से ऐसे,
हो बेल जैसे पेडों से लिपटी,
सर्दियों की सुबहें हो तो,
धुंध में ओढे हुए,
एक दूजे के बदन को,
देर तक सोये रहें,
कभी यूं भी आ, मिलने मुझे,
जैसे घने कोहरे को एक,
नूरे किरण महका दे आके,
हो ओस में भीगी कली,
और खुशी से नम हो ऑंखें,
कभी यूं भी आ...
कभी यूं भी आ...
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत अच्छा संजीव जी , इसका तो फटा फट गाना बना दीजिये ... रेकॉर्डिंग कर लीजिये अच्छा है |
दिव्य प्रकाश
क्या बात है सजीव जी ......बहुत खूब ....आपकी ये रचना काबिल-ए-तारीफ है....इस गीत को संगीत में ढाल दीजिये .....हमें इंतज़ार रहेगा ....
bhaut achha likha hai
सजीव जी
बहुत सुन्दर लिखा है-
जैसे खिली धूप मे बरसात आए,
भीनी सी एक खुशबू जगे,
सौंधी सी एक सौगात लाये.
कभी यूं भी आ....
कभी यूं भी आ....
बधाई।
वाह ! सुंदर है |
बधाई
अवनीश तिवारी
उम्दा गीत है सजीव जी बधाई
बहुत ही सुंदर गीत हैं संजीव जी ..बधाई इतना सुंदर लिखने के लिए
सुंदर सजीव जी। दिव्य प्रकाश जी की बात पर ध्यान दीजियेगा।
जैसे खिली धूप मे बरसात आए,
भीनी सी एक खुशबू जगे,
सौंधी सी एक सौगात लाये.
कभी यूं भी आ....
bahut aacha likha hai
कभी यूं भी आ....
बरस जा मुझ पे ऐसे,
पर्वत पे जैसे, काली घटायें,
सुन्दर गीत है संजीव जी
मुझे उतना मज़ा नहीं आया सजीव जी। नयापन नहीं दिखा।
पढ़कर लगा कि पुराने गीतों मी से इधर उधर से भाव लेकर कविता गढ़ दी
सुन्दर गीत बना हैं..
कभी यूं भी आ....कभी यूं भी आ....
बढिया..
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