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Friday, March 07, 2008

ठाकरे, नफ़रत न घोलो सारी फ़िज़ा में


महाराष्ट्र में हो रहे उत्तर भारतीयों के प्रति अत्याचार के ऊपर सजीव सारथी और राजीव रंजन प्रसाद ने अपने हस्तक्षेप ज़ाहिर किये हैं, जिन्हें आपलोगों ने पढ़ा। आज अभी हमें हिन्द-युग्म के एक पाठक नागेन्द्र पाठक की परसो बाल ठाकरे के बयान के विरुद्ध एक कविता मिली, जिसको हम प्रकाशित कर रहे हैं।

नफ़रत न घोलो सारी फ़िज़ा में

किसने बताया मुंबई है तेरा

मेरा नहीं है कोई जहाँ में

हम हैं बिहारी, जैसे बीमारी

तुझमें खुद्दारी कह गये सभा में

बाला जी बोलो, पहले तो तोलो

फिर पत्ते खोलो, मीठी ज़ुबाँ में

राज भी आया, ऊधम मचाया

गुंडा बना और गुंडा बताया

अब ये बीमारी कैसी तुम्हारी

देते हो गारी भरी सभा में

घर छोड़ आये, भैया कहाये

मुंबई तो माँ है, कैसे बतायें

हम हैं अनाड़ी, चलाते हैं गाड़ी

करते हैं सेवा, रह कर पिछाड़ी

तुम तो बड़े हो, कब से खड़े हो

लड़ते हो कैसे, कैसी ज़ुबाँ में

बाला जी बोलो, पहले तो तोलो

नफ़रत न घोलो सारी फ़िज़ाँ में

किसने बताया नेता तुम्हीं हो

मेरा नहीं है कोई जहाँ में

किसने बताया मुंबई है तेरा

मेरा नहीं है कोई जहाँ में

कवि- नागेन्द्र पाठक, दिल्ली

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

बहुत अच्छे नागेन्द्र जी काश कि हमारे तथाकथित पशुवत राजनेता भी हमारी भावनाओं से कभी इत्तफाक रखते,बहुत बहुत बधाई,
आलोक सिंह "साहिल"

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

बाला जी बोलो, पहले तो तोलो
नफ़रत न घोलो सारी फ़िज़ाँ में

शर्म आती है कि इस देश में एसी सोच विहीन पार्टियाँ और निर्लज्ज नेता हैं। इनका विरोध होना ही चाहिये।

*** राजीव रंजन प्रसाद

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

पाठक जी, इसी बात पर मैंने कल रात को ही एक लेख लिखा था, जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं-
http://tapansharma.blogspot.com/2008/03/un.html
आपने इस समस्या को कविता में बखूबी पिरोया है।

जीतेश का कहना है कि -

नागेन्द्र जी,
राज भी आया, ऊधम मचाया
गुंडा बना और गुंडा बताया
अच्छा लिखा.........
राजीव रंजन की रचना को हमने व्यक्तिगत टिपण्णी कहा था पर लगता है हम ग़लत थे ऐसे निर्लाज्य नेता जो हर चीज को अपनी बापोती समझते है और कुत्तो की तरह भोकते/काटते है को तो एकांतवास के लिए किसी गुमनाम दीप पर पटक देना चहिये|

anju का कहना है कि -

बिल्कुल ठीक कहा है आप ने
बाला जी बोलो, पहले तो तोलो

फिर पत्ते खोलो, मीठी ज़ुबाँ में

राज भी आया, ऊधम मचाया

गुंडा बना और गुंडा बताया

अब ये बीमारी कैसी तुम्हारी
नेता लोगो ने ही देश में बवाल मचा रखा है
बहुत अच्छा लिखा है आपने
लिखते रहिये

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

मैं तो मुम्बई मे देख रहा हूँ |
हालत ख़राब है उत्टर भारतीयों की |

रचना सही है |

अवनीश तिवारी

Sajeev का कहना है कि -

सही है भाई...... बहुत अच्छे शब्द चुने हैं आपने और पलट वार भी खूब है....

Anonymous का कहना है कि -

बाला जी बोलो, पहले तो तोलो
नफ़रत न घोलो सारी फ़िज़ाँ में
सही,बहुत बधाई

vivek "Ulloo"Pandey का कहना है कि -

पाठक जी आप बिल्कुल व्यंग्य एवं करूणा की मूरत को प्रदर्शित करते उत्टर भारतीयों को स्वाभिमान को स्पष्ट करने का अनूठा प्रयाश किया है बहुत -बहुत बधाई ..

RAVI KANT का कहना है कि -

नागेन्द्र जी, इसी तरह सामयिक विषयों पर लेखनी चलाते रहें। देरे-सबेर ये चोट असर लाकर रहेगी।

Anonymous का कहना है कि -

वाह! नागेन्द्र जी अच्छी चोट की है् महाराश्ट्र में हो रही निर्लज्ज व सोच विहीन राजनीति पर,
बहुत बहुत बधाई,

Rakesh Maheshwari का कहना है कि -

बाला जी बोलो, पहले तो तोलो
फिर पत्ते खोलो, मीठी ज़ुबाँ में
aapne bahut achha likha hai. ak padhe likhe purush ki mansikata ko darshata hai

Rakesh maheshwari

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