फटाफट (25 नई पोस्ट):

Friday, March 14, 2008

फुलझड़ियां (क्षणिकाएं)


१ (आत्मकथा १)

मैं उस दौर में पैदा हुआ
जब भूख से तड़प कर
एक ही परिवार के
सात लोग मरे थे,
और तब
देश की अधिकांश जनता
'डायटिगं' करती थी........

'फीगर मेन्टेन' करने के लिए

२ (आत्मकथा २)
मैं उस दौर में पैदा हुआ
जब लोग
धरती पर जनमते थे
और
चाँद पर रहते थे....

३ नई उपमा
जब से सुना है
चाँद पर मकां बनने वाले हैं
मुझे उसका चेहरा
आधी खुल खिड़की सा, दिखता है

४ सयानापन

कच्चेपन की मुझमें
ज़रा भी गुंजाइश नहीं
वक्त ने दोनों तरफ़
बराबर सेंका है मुझे
रोटी की तरह

५ इसीलिए

मेरे मन में खाद है कहीं
आँखों की जमीन में, माकूल नमी
इसीलिए
मेरे ज़ख्म
हमेशा हरे रहते हैं

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

20 कविताप्रेमियों का कहना है :

seema gupta का कहना है कि -

मेरे मन में खाद है कहीं
आँखों की जमीन में, माकूल नमी
इसीलिए
मेरे ज़ख्म
हमेशा हरे रहते हैं
" वाह बहुत सुंदर अभीव्य्क्ती, दर्द भरी , अच्छी लगी "
Regards

सुनीता शानू का कहना है कि -

कच्चेपन की मुझमें
ज़रा भी गुंजाइश नहीं
वक्त ने दोनों तरफ़
बराबर सेंका है मुझे
रोटी की तरह

वाह मनीष लगता है हम जैसे कई लोगो की कहानी है यह...बेहतरीन रचना...तुम्हारी श्रेष्ठ क्षणिकाओं में से है यह...

अमिताभ मीत का कहना है कि -

मनीष भाई, बहुत ही उम्दा. फुलझडि़याँ नहीं - पटाखे़. बाकमाल अदायगी. शुक्रिया, पढ़ कर भुत अच्छा लगा.

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत खूब मनीष ..तुम माहिर हो इस विधा में ..कोई शक नही यह कहने में ..बहुत ही अच्छी लगी सबकी सब पर यह विशेष रूप से पसंद आयीं

नई उपमा
जब से सुना है
चाँद पर मकां बनने वाले हैं
मुझे उसका चेहरा
आधी खुल खिड़की सा, दिखता है

*****

इसीलिए

मेरे मन में खाद है कहीं
आँखों की जमीन में, माकूल नमी
इसीलिए
मेरे ज़ख्म
हमेशा हरे रहते हैं

AMIT ARUN SAHU का कहना है कि -

मनीष जी आप इन्हे फूलजड़ीयां कहते हैं . पर ये तो शोले है जो आग लगा जाते है . अच्छा लगा पढ़कर .

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

मनीष जी,

अरसे बाद आपको पढा और तृप्त हुआ। दोनों ही आत्मकथायें क्षणिका का अप्रतिम उदाहरण हैं जिसमें "घाव करे गंभीर चरितार्थ होता है"। क्षणिकायें सभी अच्छी बन पडी हैं, सयानापन विषेश पसंद आयी।

*** राजीव रंजन प्रसाद

anuradha srivastav का कहना है कि -

मनीष क्षणिकायें बहुत ही सटीक और सार्थक हैं।

डॉ .अनुराग का कहना है कि -

कच्चेपन की मुझमें
ज़रा भी गुंजाइश नहीं
वक्त ने दोनों तरफ़
बराबर सेंका है मुझे
रोटी की तरह
lajavb....behtareen..aor aakhiri vali bhi achhi lagi.

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

एक बात पक्की है कि आप उस दौर में पैदा हुए हैं, जिसकी कविता को आपकी बहुत जरूरत है। एक साथ इतनी अच्छी क्षणिकाएं कम ही पढ़ने को मिलती हैं मनीष जी।
पहली आत्मकथा अपने आप में पूरी किताब है...
लिखते रहिए।

seema sachdeva का कहना है कि -

आपकी क्षणिकाएँ बहुत -बहुत अच्छी लगी ,विशेषकर स्यानापन aur nai upama.....seema

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

सभी क्षणिकाएँ बहुत अच्छी है |

अवनीश तिवारी

Anonymous का कहना है कि -

मनीष भाई आप आ ही गए,बहुत अछे,एक से बढ़कर एक क्षणिकाएँ,बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"

anju का कहना है कि -

वाह मनीष जी
बहुत खूब
आपकी क्षणिकाएँ बहुत पसंद आई
बधाई आपको

Anonymous का कहना है कि -

बहुत सुंदर बधाई

विपुल का कहना है कि -

बहुत अच्छा लिखा है मनीष जी चेतना को झंझोड़ दिया आपने...
हमेशा की तरह इस बार भी.... ऐसी ही उम्मीद रहती है आपसे ...

Harihar का कहना है कि -

वाह मनीष जी क्षणिकाओं पर आपकी अच्छी पकड़ है
नई उपमा
जब से सुना है
चाँद पर मकां बनने वाले हैं
मुझे उसका चेहरा
आधी खुल खिड़की सा, दिखता है

Sajeev का कहना है कि -

आप तो सचमुच सयाने हो गए हैं कविवर....

Unknown का कहना है कि -

मनीष जी आपने हर बार की तरह इस बार भी हिला कर रख दिया ..
बहुत ही अच्छा लिखा है ....

"मैं उस दौर में पैदा हुआ
जब भूख से तड़प कर
एक ही परिवार के
सात लोग मरे थे,
और तब
देश की अधिकांश जनता
'डायटिगं' करती थी........"

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

पहली आत्मकथा में 'फ़ीगर मेनटेन करने के लिए' नहीं भी होता तो भी बात पूरी होती। कुछ पाठकों के लिए भी छोड़ देते....

शेष सभी उम्दा है। जिस तरह आप इन क्षणिकाओं में सेलेक्टिव हुए हैं, चूजी हुए हैं, वैसा ही बने रहने की दरक़ार है।

Nikhil का कहना है कि -

मस्त है..उम्दा....शैलेश जी, वो "फिगर" वाली पंक्ति उस क्षणिका की जान है...ये कवि का कटाक्ष है....कविता उसके पहले ही पूरी हो जाती है...कवि उसके बाद पूरा होता है....
रोटी वाली क्षणिका तो युग्म की अमर पंक्तियाँ हैं, शर्तिया कह सकता हूँ...,.
बधाई...

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)