एक बीज तुम्हारे नाम का..
आ गिरा था मेरे हृदय-देश में
याद है....कितना कष्ट हुआ था
तुम्हे भी, मुझे भी...
और आज जब इसमे फूल आया है
न तुम हो, न मैं....
फैल रही है गंध धीरे-धीरे...स्र्वत्र....
मिटकर निर्भार हो गये हैं हम-तुम
और हमारा वज़ूद खुश्बू बन
लिपट गया है हर नासारंध्र से......
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
रचना सुंदर है | सरल दिखती है |
लेकिन मन मे कई अर्थ आ रहे थे पढ़ते समय |
मिलने पर बात होगी |
-- अवनीश तिवारी
मिटकर निर्भार हो गये हैं हम-तुम
और हमारा वज़ूद खुश्बू बन
लिपट गया है हर नासारंध्र से......
" अच्छी रचना , शब्दों मे छुपे अर्थ एक छोटी से कवीता के रूप मे शायद बहुत कुछ कह गए "
bahutsundar,choti si magar gehra arth.
रवि जी
बहुत ही सुंदर लिखा है-
मिटकर निर्भार हो गये हैं हम-तुम
और हमारा वज़ूद खुश्बू बन
लिपट गया है हर नासारंध्र से......
इतनी सुंदर अभिव्यक्ति के लिए बधाई
सुंदर ,सरल ,मासूम , प्यारी प्यारी सी नन्ही सी कविता.
बिल्कुल एक नए पौधे की तरह-
मिटकर निर्भार हो गये हैं हम-तुम
और हमारा वज़ूद खुश्बू बन
लिपट गया है हर नासारंध्र से......
बहुत सुंदर लगी आपकी रचना ,,कम लफ्जों में बहुत गहरी बात कह दी .बधाई !!
स्टाइल गुलजार से प्रभावित लगती है। आसान शब्दों का प्रयोग करना सीखें।
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