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Monday, February 18, 2008

आदिम साम्यवादी


एक आदिम मानव
दफ़न है मेरे भीतर
पर ज़िन्दा है
कई बार मेरे
प्रवृतियों-आदतों-शौकों पर
हावी होने की
कोशिश करता है
कई बार मुझ में भी
वही आदिम सोच-भाव
पैदा होते हैं
एक आदिम रूदन की इच्छा होती
एक आदिम हंसी की चाह जगती
एक आदिम भूख..एक आदिम प्यास....
एक आदिम निद्रा..एक आदिम जागृति..
मैं अपनी तमाम उर्जा लगाकर
दफ़न कर डालता हूँ
उन आदिम हरकतों को..प्यास को
इस डर से कि
कहीं लोग मुझे
सामंत या साम्यवादी
न घोषित कर दे
इस लोकतंत्र में !

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

Alok Shankar का कहना है कि -

कई बार मुझ में भी
वही आदिम सोच-भाव
पैदा होते हैं

जब आप पहले ही यह कह चुके हैं कि
एक आदिम मानव
दफ़न है मेरे भीतर,

तो फ़िर मुझ में भी आपके पिछले कथन की जरूर त नहीं रहने देता , स्पष्ट नहीं हो पाता कि पिछली बात किसके लिये थी ।

उर्जा - ऊर्जा
हंसी - हँसी
कथ्य में और स्पष्टता की आवश्यकता है ।

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

आलोक जी नें आकी रचना पर जो प्रकाश डाला है उसके आगे मैं अल्प विराम और पूर्णविराम जैसी आवश्यकताओं पर आपका ध्यान खींचना चाहूंगा जिसके अभाव में इतना सशक्त कथ्य घुल गया है।

कथ्य दमदार है।

***राजीव रंजन प्रसाद

seema gupta का कहना है कि -

एक आदिम रूदन की इच्छा होती
एक आदिम हंसी की चाह जगती
एक आदिम भूख..एक आदिम प्यास....
एक आदिम निद्रा..एक आदिम जागृति..
मैं अपनी तमाम उर्जा लगाकर
दफ़न कर डालता हूँ
"अच्छी सोच और अच्छा विषय है"
Regards

शोभा का कहना है कि -

अभिषेक जी
बहुत सुंदर लिखा है-
मैं अपनी तमाम उर्जा लगाकर
दफ़न कर डालता हूँ
उन आदिम हरकतों को..प्यास को
इस डर से कि
कहीं लोग मुझे
सामंत या साम्यवादी
न घोषित कर दे
इस लोकतंत्र में !
आज देश मैं यही हालत है.

Admin का कहना है कि -

यह तॊ बताइए कविता आप ने लिखी है आदिम मानव ने।

Avanish Gautam का कहना है कि -

अभिषेक जी कविता की शुरुआत अच्छी हुई है लेकिन
(...मैं अपनी तमाम उर्जा लगाकर
दफ़न कर डालता हूँ
उन आदिम हरकतों को..प्यास को ) के बाद लगता है कि कविता में अब और उठान आना चाहिये असली पडताल की उम्मीद बनती है. लेकिन अफ़सोस अचानक कविता गिर पडती है. कविता का जल्द अंत करने की हडबडी दिखाई देती है. इस कविता में एक अच्छी कविता होने के बीज मौजूद हैं.

Anonymous का कहना है कि -

लंबे अंतराल के बाद आपको देखा वो भी इतनी दमदार प्रस्तुति के साथ,अच्छा लगा,बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"

RAVI KANT का कहना है कि -

बहुत सुन्दर कविता।

एक आदिम मानव
दफ़न है मेरे भीतर
पर ज़िन्दा है

अच्छा है इसे जिन्दा रखें।

Alpana Verma का कहना है कि -

कविता में जिस चिंता या कहें सोच को शब्दों का जामा पहनाया गया है वह बहुत गहरे अर्थ लिए हुए है.
सरल कविता में गहरी सोच का समावेश अच्छा लगा.

विश्व दीपक का कहना है कि -

अभिषेक जी,
कविता बेहद हीं प्रभावी है। लेकिन मैं अवनीश जी की बातों से भी सहमत हूँ। कविता पूरे चरम पर पहुँच नहीं सकी है। थोड़ी और मेहनत की जरूरत जान पड़ती है।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

गीता पंडित का कहना है कि -

एक आदिम रूदन की इच्छा होती
एक आदिम हंसी की चाह जगती
एक आदिम भूख..एक आदिम प्यास....
एक आदिम निद्रा..एक आदिम जागृति..
मैं अपनी तमाम उर्जा लगाकर
दफ़न कर डालता हूँ


अच्छी सोच है...

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

मैं अवनीश जी से सहमत हूँ। आप एक मुकम्मल कविता कब लिखेंगे?

mona का कहना है कि -

bahut sundar kavita hai.

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