मोहब्बत
अगर कभी गुजरो
मेरे दिल के दरवाज़े से हो कर
तो बिना दस्तक दिए
दिल में चली आना
कि तुम्हारे ही इंतज़ार में
मैंने एक उम्र गुजारी है !!
ओस की बूंदे
एक सुबह यूं ही
बिखरी ओस की बूंदों पर
कोई अक्स तेरा उभर आया
जाग उठी तमाम दिल की हसरतें
और बे- इन्तहा प्यार तुझ पर आया !!
साथ
जब मैं उसके साथ नही होती
तो वह मुझे हर श्ये में तलाश करता है
पहरों सोचता है मेरे बारे में
और मिलने की आस करता है
पर जब मैं मिलती हूँ उस से
तो वह तब भी कुछ
खोया सा उदास सा
न जाने क्यों रहता है !!
ध्यान
सिर्फ़ तुझ में गुम
दिल में यादों के साये
और आंखो में ख्वाब तेरे
ध्यान का एक सुंदर रूप
यह भी तो है !!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
25 कविताप्रेमियों का कहना है :
कि तुम्हारे ही इंतज़ार में
मैंने एक उम्र गुजारी है !!
waah ranju ji kya baat hai
wah ranju ji sundar,dhyan,oos ki bundo mein,mohobaat sab ke san behtarin,choti si pyari pyar bhari,badhai.
भाव - पूर्ण, सुंदर
रंजु जी ...
बधाई
bahut sundar hai aaj bahut aage ho tum
Anil
सतसैया के दोहरे ज्यों नावक के तीर
देखत में छोटे लगें घाव करें गम्भीर..
बिलकुल ऐसी ही हैं आपकी छोटी - छोटी कवितायें
बहुत बहुत बधाई
दिल को छू लेने वाली क्षणिकाएं..विशेषकर साथ..
रंजू जी,
सभी छोटी कवितायेँ भावपूरण हैं.
बधाई.
रंजना जी !
भावपूर्ण ... बहुत सुंदर
आपके यह शब्द बहुत ही अच्छे लगे
शुभकामनाये
मोहब्बत
अगर कभी गुजरो
मेरे दिल के दरवाज़े से हो कर
तो बिना दस्तक दिए
दिल में चली आना
कि तुम्हारे ही इंतज़ार में
मैंने एक उम्र गुजारी है !!
-- लाजवाब है |
Lekin inhe Muktak ka naam kyon nahi diya gaya ? Kyaa ye Muktak nahee hai ?
Any way its good !!! Awesome...
अवनीश तिवारी
वाह ! बहुत अच्छी (छोटी) कवितायें. सही कहा रंजना जी :
तो बिना दस्तक दिए
दिल में चली आना
कि तुम्हारे ही इंतज़ार में
मैंने एक उम्र गुजारी है !!
कमाल है. मैं ने भी कभी कहीं पे तकरीबन ये ही कहा था कुछ यूं :
...........अगर कहीं हो जाए
प्यार का बोध,
बेझिझक मेरा हाथ थाम लेना
अधिकार को कैसा अनुरोध ??
अगर कभी गुजरो
मेरे दिल के दरवाज़े से हो कर
तो बिना दस्तक दिए
दिल में चली आना
कि तुम्हारे ही इंतज़ार में
मैंने एक उम्र गुजारी है !!
" its its beautiful, lovabale, i liked this one very much"
Regards
रंजना जी सच ही कुछ ही शब्दों में छोटी कविताओं के माध्यम से आप बहुत कुछ कह गई हैं !आपकी ये छोटी कवितायेँ मेरे दिल में बहुत गहराई तक उतर आई हैं !इतनी सुंदर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !
"तो बिना दस्तक दिए
दिल में चली आना
कि तुम्हारे ही इंतज़ार में
मैंने एक उम्र गुजारी है !!"
"और आंखो में ख्वाब तेरे
ध्यान का एक सुंदर रूप
यह भी तो है !!"
बेलौस मोहब्बत के कई रंग ,कभी उनके संग ,कभी उनकी यादों के संग .
बहुत ही उम्मदा lines है, रंजना जी.
बहुत बढ़िया...
रंजू जी
बहुत ही सुंदर कविता लिखी है. आपकी कविता मैं भाव बहुत सुंदर आता है.
एक सुबह यूं ही
बिखरी ओस की बूंदों पर
कोई अक्स तेरा उभर आया
जाग उठी तमाम दिल की हसरतें
और बे- इन्तहा प्यार तुझ पर आया
बधाई
मुझे तो सबसे अच्छी कविता लगी - साथ जो बहुतों का सच है कि...
जब मैं उसके साथ नही होती
तो वह मुझे हर श्ये में तलाश करता है
पहरों सोचता है मेरे बारे में
और मिलने की आस करता है
पर जब मैं मिलती हूँ उस से
तो वह तब भी कुछ
खोया सा उदास सा
न जाने क्यों रहता है!!
क्या बात है!
नित नए प्रयोग ले कर आ रही हैं पिछले कुछ समय से आप तो!
बढ़िया!
रंजू जी,
अगर कभी गुजरो
मेरे दिल के दरवाज़े से हो कर
तो बिना दस्तक दिए
दिल में चली आना
कि तुम्हारे ही इंतज़ार में
मैंने एक उम्र गुजारी है !!
इन शव्दॊ के लिय तारीफ़ के शव्द भी कम पड्ते हे, आप की सारी कवितऎ मन को छुती हे,
बहुत बहुत धन्य्वाद
राज भाटिया
कि तुम्हारे ही इंतज़ार में
मैंने एक उम्र गुजारी है !!
its heart touching...!!!!
जब मैं उसके साथ नही होती
तो वह मुझे हर श्ये में तलाश करता है
पहरों सोचता है मेरे बारे में
और मिलने की आस करता है
पर जब मैं मिलती हूँ उस से
तो वह तब भी कुछ
खोया सा उदास सा
न जाने क्यों रहता है !!
isko no 1 dunga mein
nice ranju ji
gr8
पहली वाली सबसे बढ़िया है।
जब मैं उसके साथ नही होती
तो वह मुझे हर श्ये में तलाश करता है
पहरों सोचता है मेरे बारे में
और मिलने की आस करता है
पर जब मैं मिलती हूँ उस से
तो वह तब भी कुछ
खोया सा उदास सा
न जाने क्यों रहता है !!
रंजू जी आपकी इस कविता को पढकर मुझे अपनी एक क्षणिका याद आ गई " असमंजस" । उम्मीद है कि आपको याद होगी वो।
आपकी सारी कविताएँ मुझे बहुत पसंद आईं।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
रंजना जी,
चारों लघु कविताओं में आपने सचमुच वास्तविक अहसास को जिया है.
"साथ" पढ कर एक शेर याद आ गया
तुम आ गये हो सामने तो आता नहीं है याद
वरना मुझे आप से कुछ कहना जरूर था
" अनुभूती "
" आज वो पहचानी सी सूरत ,
मुझको क्यों भरमाती है ,
मेरे मन मे उसकी छाया
बनती है मीट जाती है ,
नही मुझे लगता की मैंने
उसे ठीक से देखा है ,
फीर क्यों लगता है वो मुझको
अपने पास बुलाती है ;
वैसे तो कई बार उसे
देखा था मैंने राहों मे ,
कोशीश नहीं मगर की मैंने
उसको भरूँ नीगाहों मे ,
अनजानो की तरह ही
गुज़रा करते थे पहलू से फीर ,
महसूस आज क्यों होती है
मुझे उसकी महक हवाओं मे ;
नही मुझे लगता की मैंने
उसे ठीक से देखा था ,
सच कहता हूँ उसके बारे मे
न कभी भी सोचा था ,
पर अब लगता है इस दील को
बस उसकी ही चाहत थी ,
न जाने क्या सोच के मैंने
अपने दील को रोका था ;
आज जानता हूँ मैं उससे
बहुत मोहब्बत करता हूँ ,
उसके दील की धड़कन ही
अब इन कानो से सुनता हूँ ,
सजा के सपने उसके
पलकों पर सोता हूँ रातों मे ,
उसे सामने पाने को
उठता हूँ आँखें मलता हूँ ;
कभी देखकर भी जीसको मैं
अनदेखा कर देता था ,
उसे देखने के खातीर
अब ख़ुद अपने को छलता हूँ ,
नहीं महत्व ज़रा सा भी था
एक ज़माने मे जीसका ,
अब ये आलम है की
उसके पीछे पीछे चलता हू ;
अगर मुझे सुनता हो वो
तो आज मेरा ऐतबार करे ,
शीशे के आगे जाए
और अपना वो दीदार करे ,
अगर उसे अपनी आंखों मे
मेरा चेहरा दीखता हो ,
बहुत मोहब्बत है उसको भी
आए और इकरार करे ! "
:-अजीत सचान
गाज़ीयाबाद / कानपुर
Ghazal Ki kaksha Ki kahan padhein. Pls batayen
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)