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Monday, December 17, 2007

हिन्द-युग्म का तीसरा स्वरबद्ध गीत


दोस्तो,

हिन्द-युग्म साहित्य को कला से जोड़ने की लगातार कोशिश कर रहा है। हिन्द-युग्म मानता है कि साहित्य हो या कला दोनों अभिव्यक्ति के आयाम हैं, और जबकि दोनों का उद्देश्य एक ही है तो दोनों का संगम क्यों न हो!

हमने कविताओं को स्वरबद्ध करने का प्रथम प्रयास अक्टूबर २००७ में किया था, दूसरा संगीतबद्ध गीत १९ नवम्बर २००७ को किया। और ठीक से एक महीना भी नहीं गुजरा कि हम अपनी तीसरी पेशकश लेकर हाज़िर हो गये।

तीसरी पेशकश के रूप में शिवानी सिंह की एक ग़ज़ल है 'यह ज़रूरी नहीं'। इस ग़ज़ल के संगीतकार और गायक रूपेश ऋषि से शिवानी सिंह की मुलाक़ात आर्य समाज कुण्ड के एक यज्ञ समारोह में हुई थी, वहाँ रूपेश जी की भजन प्रस्तुति से शिवानी जी बहुत प्रभावित हुईं और अपनी इक ग़ज़ल को संगीतबद्ध करने के लिए रूपेश जी से आग्रह किया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

शिवानी जी ने एक गायिका भी तलाश ली 'प्रतिष्ठा शर्मा'। इस प्रकार एक युगल ग़‌ज़ल बन सकी।

अब यह कैसी बनी है, यह तो आप श्रौता ही बतायेंगे। आपकी प्रतिक्रियाएँ हमें बेहतर करने में सहयोग करती हैं।

नीचे ले प्लेयर से ग़ज़ल सुनें और ज़रूर बतायें कि कैसा लगा?

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ग़ज़ल के बोल

ये ज़रूरी नहीं हर बात ज़ुबां से कह दें,
कुछ तो नज़रों से कही जाये तो अच्छा होगा

कुछ तो खामोश ज़ुबां की भी अदा होती है
तुम उसे खुद ही समझ जाओ तो अच्छा होगा

कुछ तो बातें हमने दिल में छुपा रखी है
वक्त आने पे ही बतायें तो अच्छा होगा

जाने कैसी है ये उलझन दोनों के दिल में
मिलकर इसको जो सुलझायें तो अच्छा होगा

इंतहा होगी तो सब कुछ ही कहा जायेगा
दिल के जज़्बात संभल जायें तो अच्छा होगा

मेरे खामोश ज़ुबां तुमसे जो कहना चाहे
मेरे अश्कों से समझ जाओ तो अच्छा होगा

ये ज़रूरी नहीं हर बात ज़ुबां से कह दें,
कुछ तो नज़रों से कही जाये तो अच्छा होगा

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

24 कविताप्रेमियों का कहना है :

Alpana Verma का कहना है कि -

शिवानी जी,
ग़ज़ल बहुत अच्छी बनी है.एक सामान्य श्रोता हूँ और अपनी समझ से मत दे रही हूँ.
मेरा सुझाव एक है कि एक शेर में इस पंक्ति से ''मिलकर इसको जो सुलझायें तो अच्छा होगा''
'जो' को हटादें और 'मिलकर' की जगह 'मिलके' लिखें क्यूंकि यहाँ शेर बाकी शेरों के मुकाबले अपना संतुलन खो रहा है-रुपेश जी ने इसको ग़ज़ल में गाते हुए संभाल तो लिया है लेकिन खिंचाव साफ पता चल रहा है.
संगीत बहुत सुंदर है.रुपेश जी की आवाज़ ग़ज़ल के साथ न्याय कर रही है.उनकी गायकी पसंद आयी.गायिका कुछ और नरमी से गाती तो बेहतर होता.
ग़ज़ल सुनने में अच्छी है.हिंद युग्म को बहुत बधाई जो अपनी साईट में हर रंग भर रहे हैं.शिवानी जी आप की अन्य रचनाओं का इंतज़ार रहेगा.शुभकामनाएं -

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत सुंदर है यह......रुपेश जी की आवाज़ और संगीत दोनों ही बहुत सुंदर है .. अल्पना जी ने जो कहा वह सही है ....सुनने में बहुत ही अच्छा लगा ...बधाई !!

Asha Joglekar का कहना है कि -

बेहद सुंदर अल्फाज़ और उतनी ही अच्छी गायकी।
आपकी अगली रचना का इंतजा़र रहेगा ।

Vikash का कहना है कि -

बहुत अच्छी है.

Anonymous का कहना है कि -

हिन्द-युग्म का यह प्रयास बहुत सराहनीय है. एक महती आवश्यकता की पूर्ति करता है.
मेरे सुझाव--
साहित्य को कला से जोड़ना बहुत अच्छा है. किन्तु ऐसा करते समय साहित्य का स्तर बना रहना चाहिये. इस गज़ल में बहुत ख़ामियां हैं.
मतला नहीं है. काफ़िया सही नहीं है. रुक्न और बहर और वज़न भी सुधारने की आवश्यकता है.
जब दो अन्य कलाकार --गायक व संगीतकार संबद्ध हों तो मूल गीत का सही होना हिन्द युग्म के लिये बहुत आवश्यक है.
मैं सुझाऊँगा कि हिन्द युग्म एक प्रतियोगिता, शायद द्विमासिक या त्रैमासिक शुरू करे जिस में कवि को गीत-बद्ध करने हेतु, साहित्य की दृष्टि से सही कविता करनी होगी. विजेता की कविता का गायन, संगीतन, रिकार्डिंग हिन्द युग्म की जिम्मेदारी होगी. कापीराइट व रायल्टी चारों में बंटेगी--आधी युग्म को, बाकी में तीनों का बराबर हिस्सा.

ऐसी सी डी को आप बाज़ार में ला सकते हैं. साहित्य की भी सेवा होगी, कला की भी, युग्म की भी.
शुरू में सब काम फ़्री करेंगे. जब कमर्शियल रूप में सी डी आयेगी तो युग्म अपना व्यय काट कर तब औरों को, बचेगा तो, देगा
कवि कुछ राशि शुरू में देने को भी तैय्यर हो जायेंगे. मैं तो अवश्य हो जाऊंगा, अन्य भी होंगे. आप कर के तो देखिये. अभी भी तो आप ३ निकाल चुके है.

टी सीरीज़ से बात कर सकते हैं सहयोग व सहायता की. वे सी डी निकालते रहते हैं, बेचते रहते हैं. नेट्वर्क बहुत फैला हुआ है.

Anonymous का कहना है कि -

आप लोगो के ऐसे प्रयोग बार बार मिले तो अच्छा होगा |
बधाई

अवनीश तिवारी

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

शिवानी जी,
गज़ल के बोल बहुत अच्छे हैं, मजा आ गया। और जिस तरह से रूपेश जी व प्रतिष्ठा जी की खोज करी गई काबिले तारीफ है। रूपेश जी, पता नहीं क्यों पर जैसे ही सुना जगजीत सिंह याद आ गये। प्रतिष्ठा जी, आप की कवितायें पढ़ीं थीं अब तक, आप गाती भी हैं, इसका पता अब चला।
युग्म से गुजारिश है कि एम सी गुप्ता जी की बात पर गौर किया जाना चाहिये।
धन्यवाद,
तपन शर्मा

शोभा का कहना है कि -

मुझे इस ग़ज़ल मैं जो अच्छा लगा वो है उपेश जी की आवाज
ग़ज़ल तो साधारण है. रुपेश जी को बहुत बहुत बधाई

Dr. sunita yadav का कहना है कि -

गीत ,संगीत ,आवाज सभी पसंद आए ...सुनकर अच्छा लगा ...बधाई हो
सुनीता यादव

seema gupta का कहना है कि -

मेरे खामोश ज़ुबां तुमसे जो कहना चाहे
मेरे अश्कों से समझ जाओ तो अच्छा होगा
bhut sunder or acchee gazal hai, muje ye lines bhut hee achee lgee. such hee to kha hai na, ""ankhen too hotee hain dil kee juban"
or jis treh singers ne iss ko apnee mdhur aavaz deker jeevant kiya hai, vo ek kmal hee hai.

Regards

anuradha srivastav का कहना है कि -

गीत ,संगीत दोनों ही पसन्द आये। रूपेश जी की आवाज़ जगजीत सिंह की याद दिलाती है। प्रतिष्ठा जी कि आवाज़ कई जगह तीखी हो गई है।

Sajeev का कहना है कि -

ऍम सी गुप्ता जी आपकी प्रतियोगिता की बात तो मुझे पसंद आयी. पर मैं यहाँ भी एक बात बताना चाहूँगा अधिकतर संगीतकार पहले धुन देते हैं और फ़िर उस पर लिखा जाता है, या पहले अगर गीत भी बने तो संगीत जब उसमे डालता है तो बहुत सी modifications करनी पड़ती है, एक गीत को संगीतबद्ध करने की पूरी प्रक्रिया में १० से २५ दिन लग जाते हैं, और फ़िर गायक की भी अपनी कोई कमी हो सकती है, कुछ खास शब्द कोई गायक ठीक से गा नही पता तो उसे भी गीतकार को बदलना पड़ता है, यानि की आप यह नही कर सकते की एक गाना चुन लिया लो जी अब इसे संगीतबद्ध कर दो, अभी हम "आवाज़ " के पहले चरण में हैं, अभी कोशिश की जा रही है की अधिक से अधिक संगीतकारों को युग्म से जोडा जाए, एक बार हमे स्थायी संगीतकार मिल गए तो लेखकों की कमी हमारे पास नही है, हम सब उनसे सीधे तौर पर सम्पर्क कर अपने गीत रख पाएंगे, रही बात ग़ज़ल की तो आप कुछ हद तक सही हैं, ग़ज़ल में कहीं कहीं कुछ कमियां है, पर इसी तरह के प्रयासों और इन्ही तरह की तिप्पिनियों से ही तो हम कलाकार को और मंजा हुआ और बेहतर कर पाएंगे,
एल्बम टी सीरीज़ से निकलने की जहाँ तक बात है उसके बारे में मैं और जानकारी चाहूँगा, जहाँ तक मैं समझता हूँ टी सीरीज़ से एल्बम निकलने में कई लाखों का खर्चा है बाकि आप कहें ?

Anonymous का कहना है कि -

शिवानी जी किसकी तारीफ करूँ, शब्दों की या संगीत की या फ़िर आवाज की, सब के सब लाजवाब,
मैं m.c. गुप्ता जी के विचारों से बिल्कुल इत्तफाक रखता हूँ.
आप एक प्रयास जरुर कर सकती हैं.
शुभकामनाओं समेत
आलोक सिंह "साहिल"

Amit Mehta का कहना है कि -

hello shivani...bahut khoob wakai mai shaandaar...i'm blesses that i have a creative friend like u in my friend list.
aap ki gazal kafee had tak nida fazali ki gazal {"kahmoshi bhee ba andaze gila hotee hai, zaroree tho nahee ki shikwa hothoon se ada hoo"} se prabhavit nazar aateee hai.
mai aap se kuch naya pane ke umeed karta hoon or jaanta hoon ke yeh kuwaat aap mai hai.

Anupama का कहना है कि -

Rupesh ji ki aawaaz me jaadu hai...gazal ke liye ek dum fit hai jagit sigh ki aawaaz se milti hai...aawaaj me clearity hai...Pratishta ji ki aawaz bhi aachi hai magar gaate samay kis shabd ke liye kitna mooh khulna chahiye yeh singer ko better pata hota hai....usse shabdon ka wajan bhadhta hai....aapki aawaaz bahut rasili hai

In totality gazal sunne me shaandaar lag rahi hai...likhi bhi dhang se gai hai....

Unknown का कहना है कि -

dear shiwani....the poem is sooooooooo romantic...the kind of love i believe in....ehsaas.......v nice...keep it up!!

Unknown का कहना है कि -

dear shiwani....the poem is sooooooooo romantic...the kind of love i believe in....ehsaas.......v nice...keep it up!!

Raj का कहना है कि -

shivani ji
actualy mujhe itni samajh nahi hai ki main apki gajal ki tareef karon ya na karo.lekin main ye kehna chahunga ki wah wah. gr8

Manish Kumar का कहना है कि -

इस पेशकश में जान डालने के असली हकदार रूपेश जी हैं। बाकियों को और मेहनत की जरूरत है जैसा कि श्रोताओं ने ऊपर लिखा भी है। इस प्रयास के लिए हिन्द युग्म की पूरी टीम को मेरी बधाई।

nesh का कहना है कि -

बहुत खूब लिखा है

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

रूपेश जी साधुवाद के पात्र हैं, क्योंकि ग़ज़ल में ग़ज़ल-व्याकरण की कुछ कमियाँ रहने के बावज़ूद भी सुनने में उसका -अंदाज़ा नहीं लगता। संगीत व गायकी विषयानुकूल है। गायक और गायिका कहीं-कहीं सुप्रसिद्ध जोड़ी जगजीत-चित्रा की याद दिलाते हैं। मैं इस ग़ज़ल को सैकड़ों दफ़ा सुन चुका हूँ। रूपेश जी से आग्रह करूँगा कि युग्म की कुछेक ग़ज़लों को स्वरबद्ध करें।

पारुल "पुखराज" का कहना है कि -

rupesh ji ki aavaz bahut khuubsurat lagii.....dhun bhi pasand aayi..badhaayi...hindi yugm ko bahut shubhkaamnaye

गीता पंडित का कहना है कि -

सुंदर आवाज़ और सुंदर संगीत ...
दोनों ही बहुत सुंदर ......


सुनने में बहुत ही अच्छा लगा ......सुधार की आवश्यकता है.....सामान्य श्रोता हूँ और अपनी समझ .......

हिन्द-युग्म का प्रयास बहुत....बहुत सराहनीय है.

बधाई !!

Anonymous का कहना है कि -

it was a nice gazal ..the voice of male singer is very soothing but i din't liked the voice of the female singer very much ......
rest everything is fine

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