सड़कें
वीरान हो आईं हैं
सर्दियों की इस रात में ।
जैसे सब का रुख
मुड़ गया हो सच की ओर ।
अपनी अपनी जगह
भीगती रोशनी में लिपटे
गुमसुम लैम्प-पोस्ट
सब कुछ शांत
सिवाय टपकती ओस के ।
सहसा दूर कहीं कोई आहट
ध्यान बरबस खिंचता है उस ओर
एक तसल्ली:
कोई तो है इसी राह पर ।
दिन में छोटा सा लगता रास्ता
बहुत लम्बा हो चला है
-ब्रह्मांड फैलता जा रहा है
और कदम खुद-ब-खुद
तेज उठने लगते हैं ।
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
अजय जी,
वीरानी, सर्दी, गुम सुम और लैम्प पोस्ट के साथ "जैसे सब का रुख मुड़ गया हो सच की ओर" लिख कर बडी ही खूबसूरती से कथ्य डाल कर आपने एक निहायत प्रशंसनीय रचना प्रस्तुत की है। फिर कविता के इस अंत के साथ:-
दिन में छोटा सा लगता रास्ता
बहुत लम्बा हो चला है
-ब्रह्मांड फैलता जा रहा है
और कदम खुद-ब-खुद
तेज उठने लगते हैं ।
बधाई स्वीकारें।
*** राजीव रंजन प्रसाद
बहुत बढिया !
बड़ी सुन्दरता पूर्ण विवरण है.
बधाई
अवनीश तिवारी
एक तसल्ली:
कोई तो है इसी राह पर ।
अरे अजय भाई बहुत से लोग हैं इस और, ज़रा गौर से तो देखिये, ..... सुंदर रचना
अजय जी सर्दी और गुमशुम खामोशी को जो काव्य रूप आपने दिया है वो बहुत ही प्यारी और मधुर है,
अच्छी रचना के लिए बधाई,
अलोक सिंह "साहिल"
अजय भाई!
जो रास्ता सच की ओर मुडता है वो न केवल वीरान हो जाता है बल्कि बहुत लम्बा भी हो जाता है. ठीक बात है लेकिन उससे भी अच्छी बात यह है कि उस पर कुछ लोग चलने की कोशिश कर रहे हैं...
अच्छी कविता. बधाई!
good
i am not able to say some thing,actually i have no words,poem is almost good,sorry Marvelous
सड़कें
वीरान हो आईं हैं
सर्दियों की इस रात में ।
जैसे सब का रुख
मुड़ गया हो सच की ओर ।
अपनी अपनी जगह
भीगती रोशनी में लिपटे
अच्छा लिखा है .
"सड़कें
वीरान हो आईं हैं
सर्दियों की इस रात में ।
जैसे सब का रुख
मुड़ गया हो सच की ओर ।"
क्या बात है..आजकल कविजी के तेवर ही बदल गए....ग़ज़लें छोड़ी तो छोड़ी, कविताओं में भी नया अंदाज़....
बढ़िया है....
निखिल आनंद गिरि
कोई तो है इसी राह पर ।
दिन में छोटा सा लगता रास्ता
बहुत लम्बा हो चला है
-ब्रह्मांड फैलता जा रहा है
और कदम खुद-ब-खुद
तेज उठने लगते हैं ।
liked the imagination of poet...god bless you
अजय, सर्दी की स्याह ,खामोश रात को बहुत अच्छे से अपने शब्दों में उकेरा है । बधाई........
अजय जी,
आज के गतिशील जीवन में सच के रास्ते ऐसे ही वीरान हो जाते हैं लेकिन वोही सच 'लैंप पोस्ट' की तरह आप को रौशनी दिखाता रहेगा -एक संदेश आप की कविता दे रही है--
अच्छी रचना है -धन्यवाद -
-अल्पना वर्मा
अजय जी
१)बहुत अच्छा चित्रण है सर्द रातो का
२) आपने छोटे छोटे पहलुओ को शब्दों मै ढाला है
३) आपने अछे नए विषय को चुना है..
४)और बहुत अच्छी बात कही है
"दिन में छोटा सा लगता रास्ता
बहुत लम्बा हो चला है"
बधाई हो
शैलेश
अजय जी,
आपसे इसी गहराई की अपेक्षा रहती है। काफ़ी दिनों बाद वाहवाही का मन कर रहा है।
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