आज सुबह बेटी को मैने
देखा जब मिट्टी खाते
मेरे नाना की स्मृति
अनायास मन मे आयी
ये नट्खट एक दम माँ पर है
नानी को जब बतलाते
आज सुबह......
दर्पण से बातें करती
खुद से खुद ही अकड़ अकड़
भूख लगी ले चली रसोई
खींचा पल्लू पकड़-पकड़
कभी रेंगते चींटों के संग़
पलंग तले इनको पाते
गिरती पड़ती घुटनों के बल
आँगन में फिरकनी हुई
उँगली पोंछ आयी परदों से
होठ नाँक पर सनी हुई
हाथ दिखा पहले से पहले
अपनी सफाई दिखलाते
आज सुबह......
बैठी ले श्रंगार पिटारा
फैशन की नानी देखो
बार बार बिन्दी चिपकाती
सजती महारानी देखो
एक पल में मुस्कान बिखेरें
पल में आसुआँ टपकाते
चिड़िया के सब पंख उखड़े
हाथी अब बिन पैर खडा
अस्थि पंजर जोड़ जाड़ कर
नया खिलौना अजब गढ़ा
बैठ कभी तकिये के उपर
अपना घोड़ा दौड़ाते
आज सुबह......
चारपाई की लिये ओट
कनखियों से चुप-चुप झाँक रही
नन्हें नाखूनों से बकोट
चूल्हे की मिट्टी चाख रही
लगूँ डांटने कभी अगर तो
सुप्त सजह अनुरोध लिये
गर्दन नीचे पुतली उपर
सफल हुई मैं बोध लिये
पेट उगी है दाढ़ी देखो
बाल अबोध ही कहलाते
इनका तुतलाना सम्मोहन
हम भी संग संग तुतलाते
आज सुबह बेटी को मैने
देखा जब मिट्टी खाते
मेरे नाना की स्मृति
अनायास मन मे आयी
ये नट्खट एक दम माँ पर है
नानी को जब बतलाते
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
हास्य रस से वात्सल्य रस अदभुत .पढ़ के कितना कुछ याद आ गया .....
बैठी ले श्रंगार पिटारा
फैशन की नानी देखो
बार बार बिन्दी चिपकाती
सजती महारानी देखो
सुंदर .और सही ...
इनका तुतलाना सम्मोहन
हम भी संग संग तुतलाते
आज सुबह बेटी को मैने
देखा जब मिट्टी खाते
बहुत ही प्यारी और दिल को छू लेने वाली कविता है यह .. बधाई राघव जी !!
पेट उगी है दाढ़ी देखो
बाल अबोध ही कहलाते
मन-मोहक रचना है भूपेन्द्र जी।
*** राजीव रंजन प्रसाद
यदि यह रचना किसी कवयित्री की होती तो अचरज नही होता |
पुरूष होते हुए भी आपने माता के समान ममता की अनुभूती पाई है ऐसा इस रचना से जान पड़ता है |
सुंदर
बधाई
अवनीश तिवारी
चिड़िया के सब पंख उखड़े
हाथी अब बिन पैर खडा
अस्थि पंजर जोड़ जाड़ कर
नया खिलौना अजब गढ़ा
बहुत कुछ याद आने लगता है बढ़िया
भूपेन्द्र राघव जी बधाई स्वीकारें. बढिया रचना.
भुपेंदर जी क्या बात है,भाई, आप हंसाते भी हैं तो दिल की गहराइयों में उतरकर.
बहुत अच्छे जी .
परमानन्द जी
आलोक सिंह "साहिल"
राघव जी
मुझे लग रहा है बालोद्यान पर आ गई हूँ । तसवीरें अच्छी हैं और कविता भी । आपकी आँखों में झाँकता दूधिया वात्सल्य प्रभावी बन पड़ा है -
हम भी संग संग तुतलाते
आज सुबह बेटी को मैने
देखा जब मिट्टी खाते
मेरे नाना की स्मृति
अनायास मन मे आयी
ये नट्खट एक दम माँ पर
बचपन की सुन्दर झलक दिखाने के लिए आभार ।
भूपेन्द्र राघव जी,
बधाई इस सरस कविता के लिए। बिल्कुल जीवंत रचना है।
कविता पढ़ते ही लगा शायद बाल-उद्यान पर तो नहीं आ गयी?
लेकिन जैसे ही आगे पढ़ा बहुत मज़ा आया और बचपन की बातें याद आने लगीं.
कविता का शीर्षक बहुत अच्छा है.
शुरू से अंत तक कविता मुस्कराहटें बिखेर रही है.यही इस की ख़ास बात है.
कभी कभी ऐसी कवितायेँ भी पढने को मिलती रहें तो मन हल्का-फुल्का हो जाता है.
बहुत ही प्यारी कविता के लिए धन्यवाद.
पेट उगी है दाढ़ी देखो
बाल अबोध ही कहलाते
इनका तुतलाना सम्मोहन
हम भी संग संग तुतलाते
आज सुबह बेटी को मैने
देखा जब मिट्टी खाते
मेरे नाना की स्मृति
अनायास मन मे आयी
ये नट्खट एक दम माँ पर है
नानी को जब बतलाते
वाह राघव जी इस बार कुछ नए अंदाज़ में गुदगुदाया आपने मैं पढ़ते पढ़ते अपनी बेटी को याद करने लगा था , तस्वीरें भी अच्छी है
भूपेन्द्र राघव जी
कमाल का लिखा है आप ने
बार बार पढ़ने को दिल कर रहा है
बहुत मासूम रचना लिखी है आप ने सहज ही कल्पना हो जाती है उस चित्र का जिसका भी वर्णन आप ने अपने शब्दों में किया है
सच मानिए बहुत मज़ा आया कविता पढ़ कर
अपने बच्चो को मैं ये जरूर सुनाऊंगा
विपिन चौहान "मन"
राघव जी,
अच्छी कविता है। हाँ यह निर्णय मुश्किल है कि इसे बाल-उद्यान पर आना चाहिए था या हिन्द-युग्म पर।
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