बेसबब अहसास को , जिन्दा न रख मर जाने दे !
वक्त को अपनी रजा का , हर सितम कर जाने दे !!
तेरे खंजर की तमन्ना भी मुझे मंज़ूर है ,
इल्तिजा इतनी है , जख्म-ए-दिल जरा भर जाने दे !!
ये फिजा बोझिल हुई , रस्ते से मैं अन्जान हूँ ,
ढूँढना शायद पडे , मुझको मेरा दर जाने दे !!
ऐ जमाने दूर रह कर ही नजारा देखना ,
उसकी नजर-ए- बेरुखी को भी असर कर जाने दे !!
मुझको अपनी जग हसाई की वजह वो कह रहा है ,
उसके फर्द-ए-जुर्म पर अब हमें मर जाने दे !!
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
'तेरे खंजर की तमन्ना भी मुझे मंज़ूर है ,
इल्तिजा इतनी है , जख्म-ए-दिल जरा भर जाने दे !!
बहुत खूब ---
आपने तो कवि केप्रेम भरे दिल को दर्पण कर दिया.
वाह..
गजब का लिखा है..
बहुत सुन्दर विपिन जी
बेसबब अहसास को , जिन्दा न रख मर जाने दे !
वक्त को अपनी रजा का , हर सितम कर जाने दे !!
तेरे खंजर की तमन्ना भी मुझे मंज़ूर है ,
इल्तिजा इतनी है , जख्म-ए-दिल जरा भर जाने दे !!
असरदार.....
तेरे खंजर की तमन्ना भी मुझे मंज़ूर है ,
इल्तिजा इतनी है , जख्म-ए-दिल जरा भर जाने दे !!
--- क्या बात है |
अवनीश तिवारी
तेरे खंजर की तमन्ना भी मुझे मंज़ूर है ,
इल्तिजा इतनी है , जख्म-ए-दिल जरा भर जाने दे !!
विपिन जी उतर जाने दीजिए अपने खंजर को मेरे रूह में, क्योकि इसका भी एक अलग ही आनंद होगा.
मजा आ गया
बहुत बहुत साधुवाद
आलोक सिंह "साहिल"
बेसबब अहसास को , जिन्दा न रख मर जाने दे !
वक्त को अपनी रजा का , हर सितम कर जाने दे !!
तेरे खंजर की तमन्ना भी मुझे मंज़ूर है ,
इल्तिजा इतनी है , जख्म-ए-दिल जरा भर जाने दे !!
बहुत बढ़िया लिखा है विपिन जी आप ने
कितनी संजीदगी से आप ने अपने दिल की बात कह दी है मजा आ गया
शायर की मासूमियत काबिले तारीफ है
ग़ज़ल का मौजू अपने आप में बेमिसाल है
उर्दू अल्फाजो का बहुत सही और सुन्दर प्रयोग देखने को मिला है
वाह
शुभकामनाओं सहित
पुष्पेन्द्र
बेसबब अहसास को , जिन्दा न रख मर जाने दे !
वक्त को अपनी रजा का , हर सितम कर जाने दे !!
तेरे खंजर की तमन्ना भी मुझे मंज़ूर है ,
इल्तिजा इतनी है , जख्म-ए-दिल जरा भर जाने दे !!
वाह भाई वाह
क्या बात है
विपिन जी मैं आप की इस ग़ज़ल से बहुत प्रभावित हुआ
क्यूकी मेरे दिल के दर्द को आप की इन चार लाइनों ने बखूबी बयान किया है
और मैं आप से आशा करता हूँ की आप ऐसी ही रचनाओं से मुझे और मुझ जैसे पाठको को रू ब रू करवाते रहेंगे
नमस्कार
दीपक भारती
बेसबब अहसास को , जिन्दा न रख मर जाने दे !
वक्त को अपनी रजा का , हर सितम कर जाने दे !!
तेरे खंजर की तमन्ना भी मुझे मंज़ूर है ,
इल्तिजा इतनी है , जख्म-ए-दिल जरा भर जाने दे !!
बहुत बढ़िया लिखा है विपिन जी आप ने
कितनी संजीदगी से आप ने अपने दिल की बात कह दी है मजा आ गया
शायर की मासूमियत काबिले तारीफ है
ग़ज़ल का मौजू अपने आप में बेमिसाल है
उर्दू अल्फाजो का बहुत सही और सुन्दर प्रयोग देखने को मिला है
वाह
शुभकामनाओं सहित
पुष्पेन्द्र
बेसबब अहसास को , जिन्दा न रख मर जाने दे !
वक्त को अपनी रजा का , हर सितम कर जाने दे !!
"hmm bhut accha dil mey uttar gya"
Regards
बेसबब अहसास को , जिन्दा न रख मर जाने दे !
वक्त को अपनी रजा का , हर सितम कर जाने दे !!
तेरे खंजर की तमन्ना भी मुझे मंज़ूर है ,
इल्तिजा इतनी है , जख्म-ए-दिल जरा भर जाने दे !!
ये फिजा बोझिल हुई , रस्ते से मैं अन्जान हूँ ,
ढूँढना शायद पडे , मुझको मेरा दर जाने दे !!
ऐ जमाने दूर रह कर ही नजारा देखना ,
उसकी नजर-ए- बेरुखी को भी असर कर जाने दे !!
मुझको अपनी जग हसाई की वजह वो कह रहा है ,
उसके फर्द-ए-जुर्म पर अब हमें मर जाने दे !!
vipin ji har shabd lajawab hai.....
ऐ जमाने दूर रह कर ही नजारा देखना ,
उसकी नजर-ए- बेरुखी को भी असर कर जाने दे !!
मुझको अपनी जग हसाई की वजह वो कह रहा है ,
उसके फर्द-ए-जुर्म पर अब हमें मर जाने दे !!
waaah bahut khoob
शिल्पगत कमियाँ है (मीटर का निर्वाह नहीं है)। लेकिन भाव जबरजस्त है भाई। बधाई।
बहुत ही अच्छा लिखा है विपिन जी ने| मुझे लफ्ज़ नहीं मिल रहे तारीफ़ के लिए
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