धड़क कर रह गया सीने मैं इक अरमान चाहत का
हमें भी होश था, दिल को इरादा था मोहब्बत का
है देखा आँख ने मेरी, जमीं से आसमाँ मिलते
वहस इस बात पे है, पर ये रिश्ता है नजाकत का
गिरतीं ओस कि बूंदें हैं अक्स-ए-दिल को धुन्धलाती
खुदा दे हमको भी मौका जरा इतनी शिकायत का
निभानी दुश्मनी सीखो, तो जाकर मेरे दिलबर से
लगा कर दिल निभाता है जो हर रिश्ता अदावत का
जरा झांको तो दिल मैं क्या हो तुम , है वाकी और क्या होना
लगा कर घूमते हैं सब मुखोटा सा शराफत का
मैं हर एक घर पे देकर दस्तकें गुजरा हूँ गलियों से
कोई दर मुन्तजिर हो, है ये मुमकिन मेरी आहट का
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
निभानी दुश्मनी सीखो, तो जाकर मेरे दिलबर से
लगा कर दिल निभाता है जो हर रिश्ता अदावत का
-- क्या बात है |
लेकिन पढ़ते समय तकलीफ हुया | यदि २-२ पंक्तिन्यों को अलग अलग लिख कर छापा होता टू आसानी से पढ़ा जा सकता था |
सुंदर बात कही है खास का अपने जैसे युवा के मनोबल के लिए :)
सस्नेह -
अवनीश तिवारी
विपिन जी
इस सुन्दर रचना के लिए बधाई हो
आप इन छोटी बातों पर ध्यान दें
-मै अवनीश जी के बात से सहमत हू
-दूसरा की आप बीच मैं ले खो गए लगता है
"है देखा आँख ने मेरी, जमीं से आसमाँ मिलते
वहस इस बात पे है, पर ये रिश्ता है नजाकत का"
इन पंकितियो कोई मै नहीं समझ पाया..
- ये पंक्ति थोडा लम्बी हो गयी है और पंक्त्यो से
"जरा झांको तो दिल मैं क्या हो तुम , है वाकी और क्या होना"
-ये पंक्तिया अच्छी लगी
निभानी दुश्मनी सीखो, तो जाकर मेरे दिलबर से
लगा कर दिल निभाता है जो हर रिश्ता अदावत का
सादर
शैलेश चन्द्र जम्लोकी (मुनि )
मुझे माफ़ कीजिए मै हिंदी मै टाइप करने के लिए ऑरकुट स्क्रैप बुक का प्रयोग करता हू..
तो इस एडिटर पर पेस्ट करने से फॉण्ट दुसरे हो जाते है तो वर्तनी मै तृतीय रह जाती है..
सादर
शैलेश चन्द्र जम्लोकी (मुनि )
बहुत अच्छे भाव हैं आप के--थोड़ा और संतुलित कीजीये---
और मुनि जी ने इस शेर का मतलब जानना चाहा है----
है देखा आँख ने मेरी, जमीं से आसमाँ मिलते
वहस इस बात पे है, पर ये रिश्ता है नजाकत का
मेरे ख्याल से कोई भी नाजुक चीज़ टूट जाती है-ऐसे ही आसमा और ज़मी का वो रिश्ता नाजूक ही है जो आंखों का भ्रम मात्र है क्यों की जैसे हम उस मिलन के करीब जायेंगे वो आप को अलग होता दिखायी देगा--शायद इसलिए शायर ने यहाँ इस रिश्ते को नाजुक बताया है-----ऐसा मेरा मानना है----बहस हो सकती है क्यों की जिन आंखों ने ये नजर नहीं देखा वो इस रिश्ते को मानेगा नहीं---धन्यवाद
है देखा आँख ने मेरी, जमीं से आसमाँ मिलते
वहस इस बात पे है, पर ये रिश्ता है नजाकत का
निभानी दुश्मनी सीखो, तो जाकर मेरे दिलबर से
लगा कर दिल निभाता है जो हर रिश्ता अदावत का
मैं हर एक घर पे देकर दस्तकें गुजरा हूँ गलियों से
कोई दर मुन्तजिर हो, है ये मुमकिन मेरी आहट का
Manji ne bada man laga kar likha hai....yeh panktiyaan khasiya taur pe pasand aai.....dua hai u hi aage badhte rahiye....
है देखा आँख ने मेरी, जमीं से आसमाँ मिलते
वहस इस बात पे है, पर ये रिश्ता है नजाकत का
निभानी दुश्मनी सीखो, तो जाकर मेरे दिलबर से
लगा कर दिल निभाता है जो हर रिश्ता अदावत का
क्या बात है विपिन जी। मज़ा आ गया। सारे शेर पुख्ता हैं।
बधाई स्वीकारें।
निभानी दुश्मनी सीखो, तो जाकर मेरे दिलबर से
लगा कर दिल निभाता है जो हर रिश्ता अदावत का
achha hai vipin bhai
विपिन जी अच्छी रचना के लिए बधाई.एक बात है की और अच्छी रचना हो सकती थी.
अच्छे प्रयास के लिए साधुवाद
अलोक सिंह "साहिल".
सीने मैं- सीने में
वहस=बहस
ओस कि बूंदें= ओस की बूँदें
धुन्धलाती=धुँधलातीं
है वाकी= है बाकी
१-२ शे'र प्रभावी हैं, लेकिन ग़ज़ल के फॉरमैट में फ़िट नहीं बैठते। अच्छा मुक्तक भी नहीं कहलायेगी
विपिन भाई बधाईयाँ
लेकिन थोडी मेहनत और हो जाए. अगली बार..
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