सुरमयी आँखों में हँसती, यार की; पहली किरन
हमने देखी है चमकती, प्यार की पहली किरन
खिल-खिलाकर फूल हँसते, खुशबुयें लाती हवा
पलकें बिछाते रास्ते सब, मुसकराती हर दिशा
क्या है मुहब्बत की यही, पहली खुमारी की छुअन
झील के पानी में हिलतीं, आकाश की परछाइयाँ
दिल में उमंगों की नयी, लहरों का जैसे आसमाँ
है फैलता जाता डूबोता, वर्जना का हर चलन
उन अधखुली आँखों में देखी, इश्क़ की मस्ती वही
पीर-ओ-मुर्शिद ढूँढ़ते फिरते हैं, जिसको हर गली
मैंने खुदा को पा लिया, औ दिल को रखा है रेहन
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
वाह!!! रुमानी भी है और दार्शनिक भी है। शिल्प कहा हुआ है और भाव अपनी पराकाष्ठा पर है। अजय जी इस सुन्दर प्रस्तुति के लिये आप बधाई के पात्र हैं।
उन अधखुली आँखों में देखी, इश्क की मस्ती वही
पीर-ओ-मुर्शिद ढूँढते फिरते हैं, जिसको हर गली
मैंने खुदा को पा लिया, औ दिल को रखा है रेहन
प्रसंशनीय और उत्कृष्ट
*** राजीव रंजन प्रसाद
उन अधखुली आँखों में देखी, इश्क की मस्ती वही
पीर-ओ-मुर्शिद ढूँढते फिरते हैं, जिसको हर गली
मैंने खुदा को पा लिया, औ दिल को रखा है रेहन
वाह......
प्रेम की चरम सीमा यही है...जब बाह्य आकर्षण से मुक्त होकर आत्मिक धरातल पर प्रेम का आनन्द लिया जाता है.....तब वह अनशवर हो जाता ..है... और अनश्वर तो केवल ईश्वर है....
बधाई
अजय जी़!
कविता अच्छी है
मुझे जो बात अच्छी लगी
-झील के पानी में हिलतीं, आकाश की परछाइयाँ
दिल में उमंगों की नयी, लहरों का जैसे आसमाँ
है फैलता जाता डुबोता, वर्जना का हर चलन
पर मुझे ऐसा लगता है कि
इस लाईन में नयी और लहरों के बीच का अल्प विराम हटा देना चाहिए
देखियेगा
खिल-खिलाकर फूल हँसते, खुशबुयें लाती हवा
पलकें बिछाते रास्ते सब, मुसकराती हर दिशा
क्या है मुहब्बत की यही, पहली खुमारी की छुअन
बहुत ख़ूब अजय जी ..दिल को छुआ है इन पंक्तियों ने बधाई!!
खिल-खिलाकर फूल हँसते, खुशबुयें लाती हवा
पलकें बिछाते रास्ते सब, मुसकराती हर दिशा
क्या है मुहब्बत की यही, पहली खुमारी की छुअन
बहुत सुंदर है अजय जी ।
अजय जी ,आपका प्रयास सुंदर है ..प्रेम की अभिव्यक्ति भी रोचक है...वाह,बहुत ख़ूब ....सुंदर रचना के लिए बधाई.....
अजय जी.. ह्रदय को स्पर्श करने वाली रचना ! अति सुंदर अभिव्यक्ति ! बधाइयाँ...
प्यार की पहली किरण,
उसका अहसास,
यह कविता,
सब लाजबाब है।
नज़्म का प्रयास किया है आपने अजय जी, और शुरुवात बहुत ही दमदार है, सीधी सरल, सही शब्द सही मीटर और सुंदर भाव
सुरमयी आँखों में हँसती, यार की; पहली किरन
हमने देखी है चमकती, प्यार की पहली किरन
खिल-खिलाकर फूल हँसते, खुशबुयें लाती हवा
पलकें बिछाते रास्ते सब, मुसकराती हर दिशा
यहाँ तक सब ठीक है, इसके बाद जो पंक्ति आती है वो कफिया नही बिठाती, प्रवाह टूटता है
यही चलन आप जारी रखते हैं आगे के अंतरों में भी - पर फिर भी यह पक्तियाँ मुझे बहुत पसंद आयी -
झील के पानी में हिलतीं, आकाश की परछाइयाँ
दिल में उमंगों की नयी, लहरों का जैसे आसमाँ
यहाँ भी नई और लहरों के बीच अल्पविराम नही होना चाहिए था अगर अर्थ वही है जो मैं सझ प रहा हु तो .... बधाई
अजय जी,
सुन्दर भाव व लफ़्ज लिये नज्म है सिर्फ़ प्रवाह कहीं कहीं कम हुआ है... वधाई
अच्छा लगा पढ़ के ..
अजय जी!!
सुंदर कविता है....पढके अच्छा लगा....भाव फ़ूट-फ़ूट के झलक रहे है....
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झील के पानी में हिलतीं, आकाश की परछाइयाँ
दिल में उमंगों की नयी, लहरों का जैसे आसमाँ
उन अधखुली आँखों में देखी, इश्क़ की मस्ती वही
पीर-ओ-मुर्शिद ढूँढ़ते फिरते हैं, जिसको हर गली
मैंने खुदा को पा लिया, औ दिल को रखा है रेहन
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अच्छी लगी.....
अजय जी,
बहुत सुन्दर!! पढ़कर आनंद आ गया।
रसपूर्ण एवं प्रवाहयुक्त रचना के लिए बधाई।
अजय जी ,
सच कहे तो हम प्यार -व्यार से अनजान है , इसके बारे में मेरा ज्ञान केवल फिल्मो तक ही सीमित है ....मगर जब भी में आप जैसों लोगों कि रचनाओ को पढता हूँ... मन में एक अजीब सी तरंग उठती है ...जो मुझे सचमुच एक पागल प्रेमी होने का एहसास कराती है ....अब और क्या कहे आपकी कविता के बारे में ....बस इतना ही कहना चाहूँगा कि ......MIND BLOWING.....KEEP IT UP
मुझे लगता है इसे सुनने का मज़ा आयेगा, संगीतबद्ध करने के बाद। किसी संगीतकार से मिलिए।
वैसे इस कविता को पढ़कर तो यही लगता है कि अजय जी ने जल्दीबाजी की है।
सुरमयी आँखों में हँसती, यार की; पहली किरन
हमने देखी है चमकती, प्यार की पहली किरन
बहुत सुंदर अजय जी। प्यार का असर आपकी लेखनी पर जबर्दस्त दीख रहा है। ऎसी हीं खूबसूरत पंक्तियाँ हमें पढाते रहें।
एक सलाह है- हिन्दी के शब्दों के बीच उर्दू का प्रयोग थोड़ा संभल कर रहें , नहीं तो मजा किरकिरा हो जाता है।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
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