कि लोग पालते हैं
कुत्ते-बिल्लियाँ
और परिन्दे भी
और हमने पाला है
जुनून,
ताक पर रखकर
सारी चेतावनियाँ बड़ों की,
भुलाकर लड़कपन की सब शिकायतें,
अलमारी में बन्द करके
रख आए हैं सब डर,
कि पराजय को
उल्टा लटका दिया है हमने
उसी के अँधेरे कमरे में,
और सोच लिया है
कि सूरज चुक गया
या थक गया
तो बनाएँगे अपना नया सूरज,
कि हमने कसम खा ली है
जब तक
पूरा नहीं होता जुनून
- चाहे सौ-हज़ार बरस तक –
हम बूढ़े नहीं होंगे,
कि हमने जवानी खरीद ली है
सदा के लिए
और माथे पर बाँध ली है
जीत,
कि हमने किस्मत की गेंद को
उछाल फेंका है
ज़मीन के भीतर की अनंत सुरंग में
और सोचना छोड़ दिया है,
हम जुनून में
पागल हो गए हैं,
हमारे हौसले इतने चमकते हैं
कि हम अब पहचान में नहीं आते,
हमने उलझनों के जंगल जला दिए हैं
और उस गर्मी से
उबलता है अब हमारा लहू,
कि जब से जुनून पाला है,
ज़िन्दगी पानी भरने लगी है
हमारी प्यास के बर्तन में
और हम जुनूनी...
...........................
अब और क्या कहें?
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
ashawadi kavita....jindgi ke junoon se bhari...tumhari leek se alag...achchhi lagi, bahut....keep it up
गौरव,
"हम" का प्रयोग अच्छा लगा।
हम बूढ़े नहीं होंगे,
कि हमने जवानी खरीद ली है
सदा जवान रहो, मेरी शुभकामनाएँ तुम्हारे साथ है। जुनून पालना कोई छोटी चीज नहीं। अच्छे-अच्छों के वश में यह नहीं होता। लेकिन तुम अगर जुनून पाल रहे हो तो निस्संदेह सफल होगे, यह मेरा विश्वास है। अपने पथ पर चलते रहो, कभी-न-कभी क्षितिज पर तुम्हारा सूरज भी होगा।
सस्नेह,
विश्व दीपक 'तन्हा'
गौरव जी,
सुन्दर लिखा है आपने...
मेरी दो लाईन में...
सकून दिल में हो तो तस्वीर बदल सकती है
जनून दिल में हो तो तकदीर बदल सकती है
कि सूरज चुक गया
या थक गया
तो बनाएँगे अपना नया सूरज,
कविता अच्छी है। प्रवाह में उलझ गयी है और परिणति वही है जो कि अंत में आपने की है:
"...........................
अब और क्या कहें?"
हाँ आशावादिता बढाती है रचना।
*** राजीव रंजन प्रसाद
'हमारे हौसले इतने चमकते हैं
कि हम अब पहचान में नहीं आते'
बहुत सुन्दर कविता है।पढकर ऐसा लगा कि ऐसे ही जनून की जरूरत हम सबको है।दुआ करूंगी कि आप अपने जनून को पूरा कर सकें।
बहुत ही सरल भाषा के प्रयोग के साथ कविता अपने पर्याय मे समर्थ है. हमेशा की तरह इस बार भी मुझे आपकी कविता अच्छी लगी .अगर ऐसा जूनून ही हर किसी मे हो तो कोई लक्ष्य ऐसा नही होगा जो प्राप्य न हो
gaurav bas yahi aag, yahi aag hai jo tumhe sabse alag pahchaan deti hai, aaj ke is yuva par mujhe naaz hai
हमने उलझनों के जंगल जला दिए हैं
और उस गर्मी से
उबलता है अब हमारा लहू
बढिया है... बढे चलो.
Gaurav , very nice poem hamesha ki tarah....koi bhi kaam junoon sey karo tou always pura hota hai and acha bhi ...tumara junoon bhi pura hoga..........believe me .......keep writing .............
cheers
Vijaya ........
प्रिय गौरव
जुनून को पालना अच्छा ही है क्योंकि दुनिया में बड़े काम वे ही कर पाते हैं जो जुनूनी होते हैं ।
कि सूरज चुक गया
या थक गया
तो बनाएँगे अपना नया सूरज,
कि हमने कसम खा ली है
जब तक
पूरा नहीं होता जुनून
- चाहे सौ-हज़ार बरस तक –
इस भावना को ज़िन्दा रखना । यही कामना है ।
हमने उलझनों के जंगल जला दिए हैं
और उस गर्मी से
उबलता है अब हमारा लहू,
सुंदर अभिव्यक्ति है जुनून की.
हमेशा की तरह
आपकी कविता अच्छी लगी ....
ऐसे जनून की जरूरत हम सबको है |
इस जुनून को ज़िन्दा रखना ....गौरव जी
सस्नेह,
प्रिय गौरव
ख़ुद को मिटाया ख़ुद ही हम वो शख्शियत है
आसान नहीं है इतना खुदी पर शहीद होना
इस जूनून को बनाए रखना
शुभकामनाएं
इसे पढ़कर मुझे हौसला मिला। आपके तेवर हमेशा पसंद आते हैं।
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