आप आंखों में बस गए जब से
दुश्मनी नींद से हुई तब से
आग पानी फलक ज़मीन हवा
और क्या चाहिए बता रब से
वो जो शामिल था भीड़ मैं पहले
दिल मिला तो लगा जुदा सब से
जो न समझे नज़र की भाषा को
उससे कहना फिजूल है लब से
शाम होते ही पीने बैठ गए
होश में भी मिला करो शब से
शुभ मुहूर्त की बात बेमानी
मन में ठानी है तो करो अब से
वो ही बदलेंगे ये जहाँ "नीरज"
माना इन्साँ नहीं जिन्हे कब से
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
नीरज जी
अच्छी गज़ल लिखी है आपने । हर एक शेर बढिया है ।
जो न समझे नज़र की भाषा को
उससे कहना फिजूल है लब से
मुझे यह शेर बहुत अच्छा लगा ।
बधाई स्वीकारें ।
कुछ खास मज़ा नहीं आ रहा है। यूनिकवि की ग़ज़ल में कुछ तो ख़ास बात होनी चाहिए !
जो न समझे नज़र की भाषा को
उससे कहना फिजूल है लब से
वो ही बदलेंगे ये जहाँ "नीरज"
माना इन्साँ नहीं जिन्हे कब से
अच्छी गज़ल है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
नीरज जी,
सुन्दर गजल बनी है...
वो जो शामिल था भीड़ मैं पहले
दिल मिला तो लगा जुदा सब से
शाम होते ही पीने बैठ गए
होश में भी मिला करो शब से
शुभ मुहूर्त की बात बेमानी
मन में ठानी है तो करो अब से
शाम होते ही पीने बैठ गए
होश में भी मिला करो शब से
good... bahut achha
आग पानी फलक ज़मीन हवा
और क्या चाहिए बता रब से
जो न समझे नज़र की भाषा को
उससे कहना फिजूल है लब से
शुभ मुहूर्त की बात बेमानी
मन में ठानी है तो करो अब से
अच्छे भाव हैं नीरज जी।गज़ल अच्छी बन पड़ी है।ऎसे हीं लिखते रहें।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
वो जो शामिल था भीड़ मैं पहले
दिल मिला तो लगा जुदा सब से
बहुत खूब नीरज जी ...
जो न समझे नज़र की भाषा को
उससे कहना फिजूल है लब से....
आपका लिखा पढ़ना मुझे हमेशा ही अच्छा लगा है
बहुत सुंदर और प्यारे लगे यह शेर
बधाई
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