एक दफ़ा यूँ ही फ़ोन घुमाया,
ना जाने कैसे इंद्र ने उठाया ,
मैं बोला और कैसे हैं हाल ,
वो बोले क्या बताएँ जनाब पृथ्वी जैसा यहाँ भी घाल-माल
क्या बताएँ!गुरु बृहस्पति ने हड़ताल कर दी है ,
नया बंगला और तो और वेतन वृद्धी की माँग की है
अप्सराओं ने भी उनकी यूनियन गठित कर ली है,
पता है !फ़ाइव- स्टार बार की माँग सामने रखी है
अब तो उन्होने डांस करना भी बंद कर दिया है ,
इंटरटेनमेंट के नाम पर बस हुक्का रह गया है !
पत्नी ने भी बात बंद कर दी है,
कहती है "सास-बहू वाले सीरियल देखना है ,केबल लगवाओ ",
तलाक़ की धमकी दी है !
अभी बजट-अजट देखा तो पता चला ,
क़ुबेर ने घोटाला किया है !
कुछ दो मिलियन स्वर्गी-डॉलर ज़ेब में दबा गया है !
यह बात विष्णु को पता चली तो समर्थन वापसी की धमकी मिली है ,
सरकार संकट में है मेरी ,
विरोधी असुरों की बाँछें खिली हैं !
वो सरस्वतीजी ने ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी मँगवाई थी ,
यहाँ लोकल में कहीं मिली नहीं है,
ग़ुस्सा हो गयीं हैं,बात बंद कर दी है ,
"एक काम नहीं कर सकता,आलम यह हो गया है",
कहती हैं "जबसे शादी हुई है लड़का बिगड़ गया है" !
वरुण को चार महीने से बिल का भुगतान नहीं हुआ है ,
तो वो कम्बख़्त वाटर सप्लाई में रोड़ा बना है,
दो दिन से स्वर्ग में नल नहीं आए हैं,
बिस्लरी पी-पी के सब उकता गये हैं !
इधर यमराज़ भी फ़रमाते हैं,
"यह भैंसा बहुत बूढ़ा हो गया है ,
कम्बख़्त बहुत धीरे चलता है !
मुझे रोज़ पृथ्वी तक जाना पड़ता है ,
अब तो यह मुझसे बिल्कुल नहीं धकता है " !
कैसे भी हो इंतज़ाम होना चाहिए ,
दो दिन में एक हेलिकॉपटर मिल जाना चाहिए !
क्या बताऊं यार!चिंता ही चिंता है ,
पड़ोसी पातालिस्तान ने अणु-बम परीक्षण किया है !
यह डकैत राहू-केतू !
इन्होने तो नाक में दम किया है,
अभी बारह तारीख़ को ही तो सूरज का हेलोज़न फ्यूज़ कर दिया है
बड़ा परेशान हूँ ,बड़ी-बड़ी समस्याएँ आन पड़ीं हैं ,
क्या करूँ ,कैसे करूँ, कोई तरकीब ना समझ पड़ती है !
मैने कहा यार चश्मा लगाओ और देखो नीचे ,
ऊपर तो ठीक है पर यहाँ हालात हैं कैसे !
यार!कुछ शिक्षा हमसे भी लो ,मॉरल हमसे भी ग्रहण करो !
यह जो कुर्सी से चिपकने की कला है ,
यह हमारे नेताओं से सीखो
सीखो ज़रा कैसे किसी बात को अनदेखा करते हैं !
समस्याओं को कैसें हमेशा पेंडिंग रखते हैं !
यार जिस दिन यह कला सीख जाओगे ,
अपनी सारी राहें आसान पाओगे !
सारी परेशानी निपट जाएगी और बड़ी मीठी नींद आएगी !
तो यार बिल्कुल मत लो टेंशन,आराम से रहो !
आख़िर कुर्सी पर बैठे हो ,
चिपके रहो और मौज़ करो!
इस कविता को मेरी आवाज़ में यहाँ सुना जा सकता है।
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19 कविताप्रेमियों का कहना है :
मजेदार !
बहुत ही बढिया है भाई काफी दिनों बाद मजेदार कविता पढने को मिली है ।
धन्यवाद
“आरंभ” संजीव का हिन्दी चिट्ठा
विपुल जी की इस कविता को उनका दोस्त होने के नाते मै उनके ही मुख से पहले ही सुन चुका हूँ सो जितनी भी बधाइयाँ देनी थी मई उन्हे दे चुका हून बस अब चूँकि टिप्पणी करना ही थी सो अब कर रहा हूँ
सभी बिंब अच्छे है ख़ास कर सरस्वती और क़ुबेर वाला बिंब ख़ासा पसंद आया........
और हास्य के साथ अंत मे व्यंग्य की समाप्ति कविता को पूर्ण बनती है
एक और बार शुभ कामनाएँ
मजा आया। व्यंग्य सहज रूप से खुल रहा है।
बहुत अच्छा हास्य है..और मज़ेदार भी
achchaa vyang hai aur hasya bhi
aapane to svark ko bhi prithvi bana diya ..
स्वर्ग के माध्यम से प्रिथ्वी की समस्याओं का सजीव चित्रण सराहनीय है।
औसत रचना। हाँ, व्यंग्य की कमी के दौर में आप आशा जरूर जगाते हैं।
अच्छा और मज़ेदार हास्य है:):)
शुभ कामनाएँ!:)
अच्छा व्यंग्य! बधाई.
अच्छा व्यंग्य
विपुल जी
आप अपने देश की समस्याओ को भूल स्वर्ग की चिन्ता
क्यों कर रहे हैं ? काफी लम्बी और उलझी हुई रचना लगी ।
Wah Wah...mazaa aaya
कविता को पढ़ने से उतना मज़ा नहीं आता , हाँ सुनने से ज़रूर आता है। मगर फ़िर भी कहूँगा कि अभी भी आप इसे सँवार सकते हैं। प्रवाह कई जगह खंडित हो रहा है। व्यंग्य का पुट सही सही स्थान पर है। वैसे विषय और विषयवस्तु के हिसाब से इसमें कोई नयापन नहीं है। मैंने खुद कई नाटक, व्यंग्य आदि इससे मिलते-जुलते सुने हैं। मनीष जी का एक हास्य-नाटक 'स्वर्ग में आरक्षण' आपको कभी पढ़ाऊँगा। आपसे कुछ और बेहतर चाहिए हमें।
यह जो कुर्सी से चिपकने की कला है ,
यह हमारे नेताओं से सीखो
सीखो ज़रा कैसे किसी बात को अनदेखा करते हैं !
समस्याओं को कैसें हमेशा पेंडिंग रखते हैं !
यार जिस दिन यह कला सीख जाओगे ,
अपनी सारी राहें आसान पाओगे !
बहुत खूब विपुल जी। पृथ्वी की परेशानियों को दर्शाने के लिए आपने स्वर्ग का जो सहारा लिया है , वह काबिले-तारीफ है। एक अच्छा हास्य-व्यंग्य बन पड़ा है। अब अगर शैलेश जी कह रहे हैं कि थोड़ी कमी है शिल्प में तो उनकी बातों को नज़र-अंदाज मत कीजियेगा। वे इस मामले में पैनी नज़र रखते हैं। बस अगला हास्य-व्यंग्य लिखने में जुट जाइये।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
लगता है स्वर्ग के राजा कॊ शासन चलाना नहीं आता है। इसका कारण यह हॊ सकता है कि हमारे स्वर्गीय नेतागण स्वर्ग की बजाए कहीं ऒर ही पहुंच गए हैं वरना इन्द्र कॊ वे शासनकला सिखला देते।
कविता सुन्दर है।
शुभकामनाएँ
प्रसंशनीय..
सीखो ज़रा कैसे किसी बात को अनदेखा करते हैं !
समस्याओं को कैसें हमेशा पेंडिंग रखते हैं !
यार जिस दिन यह कला सीख जाओगे ,
अपनी सारी राहें आसान पाओगे !
सारी परेशानी निपट जाएगी और बड़ी मीठी नींद आएगी !
तो यार बिल्कुल मत लो टेंशन,आराम से रहो !
आख़िर कुर्सी पर बैठे हो ,
चिपके रहो और मौज़ करो!
युग्म पर आपने विविधता प्रस्तुत की है साथ ही साबित किया कि आप वर्सेटाईल हैं। बहुत बधाई आपको।
*** राजीव रंजन प्रसाद
मजेदार रचना है, बधाई स्वीकारें।
bahut achee banee hai aur antim band men netayon par achha vyangay kasa hai par uss e anatar padega nahee wo khud talee bajayenge chale jayenge
Anil
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