आना तुम मेरे घर
आना तुम मेरे घर
अधरों पर हास लिये
तन-मन की धरती पर
झर-झर-झर-झर-झरना
साँसों मे प्रश्नों का आकुल आकाश लिये
तुमको पथ में कुछ मर्यादाएँ रोकेंगी
जानी-अनजानी सौ बाधाएँ रोकेंगी
लेकिन तुम चन्दन सी, सुरभित कस्तूरी सी
पावस की रिमझिम सी, मादक मजबूरी सी
सारी बाधाएँ तज, बल खाती नदिया बन
मेरे तट आना
एक भीगा उल्लास लिये
आना तुम मेरे घर
अधरों पर हास लिये
जब तुम आऒगी तो घर आँगन नाचेगा
अनुबन्धित तन होगा लेकिन मन नाचेगा
माँ के आशीषों-सी, भाभी की बिंदिया-सी
बापू के चरणों-सी, बहना की निंदिया-सी
कोमल-कोमल, श्यामल-श्यामल,अरूणिम-अरुणिम
पायल की ध्वनियों में
गुंजित मधुमास लिये
आना तुम मेरे घर
अधरों पर हास लिये
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
"जब तुम आऒगी तो घर आँगन नाचेगा
अनुबन्धित तन होगा लेकिन मन नाचेगा ।
भावनाऒं का विश्लेषण दिल को छू लेता है ।
अति-सुन्दर!
कुमार विश्वास जी,
कविता बहुत सुन्दर है,
आपसे कहना चाह रहा था कि आपकी व्यस्तता से हम सभी परिचित हैं फिर भी युग्म पर अपनी नियमितता पर थोडा ध्यान दें आप, ऐसी अपेक्षा है
आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगे
अच्छी कविता के लिये पुनः हार्दिक बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
कविता तॊ प्रशंसा से परे है।
लेकिन तुम चन्दन सी, सुरभित कस्तूरी सी
पावस की रिमझिम सी, मादक मजबूरी सी
सारी बाधाएँ तज, बल खाती नदिया बन
मेरे तट आना
एक भीगा उल्लास लिये
आना तुम मेरे घर
वह क्या बात है .... और यहाँ जो उपमायें इस्तेमाल कि गयी है लाजवाब है ....
जब तुम आऒगी तो घर आँगन नाचेगा
अनुबन्धित तन होगा लेकिन मन नाचेगा
माँ के आशीषों-सी, भाभी की बिंदिया-सी
बापू के चरणों-सी, बहना की निंदिया-सी
कोमल-कोमल, श्यामल-श्यामल,अरूणिम-अरुणिम
पायल की ध्वनियों में
गुंजित मधुमास लिये
वाह अति सुन्दर
बहुत ही सुन्दर रचना है डा. साहब, विशेषकर ध्वनि का जिस प्रकार प्रयोग इस रचना में हुआ है वह नये रचनाकारों के लिये परिपक्व लेखन का सुन्दर उदाहरण है।
"तन-मन की धरती पर
झर-झर-झर-झर-झरना"
"लेकिन तुम चन्दन सी, सुरभित कस्तूरी सी
पावस की रिमझिम सी, मादक मजबूरी सी"
"माँ के आशीषों-सी, भाभी की बिंदिया-सी
बापू के चरणों-सी, बहना की निंदिया-सी"
"कोमल-कोमल, श्यामल-श्यामल,अरूणिम-अरुणिम
पायल की ध्वनियों में"
पढते हुए लगता है कविता नहीं...जलतरंग है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
पहली बार 'कोई दिवाना कहता है' में यह कविता पढी थी। इस बार आपकी आवाज को ध्यान में रखकर आपकी कविता पढी, मजा आ गया सर ।
डॉक्टर विश्वास का यह गीत बहुत भाया. इस प्रस्तुति के लिये आभार.
वैसे हमारे अतिथि कवि ने वादा तो अप्रकाशित, बिलकुल ताज़ी कविता देने का किया था, मगर यह कविता पुरानी ज़रूर है, मगर इसकी ताज़गी बिलकुल कमतर नहीं। गीत लिखने में तो आपको बादशाहियत हासिल है। एक बार आपकी पुस्तक में पढ़ा था, दुबारा यहाँ पढ़कर मज़ा आया।
सुन्दर गीत!!!
राजीवजी ने बिलकुल सही कहा, गीत पढ़ते समय ऐसे लग रहा है मानो कोई जलतरंग हो...
बेहतरीन कृति है, बधाई स्वीकार करें।
जब तुम आऒगी तो घर आँगन नाचेगा
अनुबन्धित तन होगा लेकिन मन नाचेगा
माँ के आशीषों-सी, भाभी की बिंदिया-सी
बापू के चरणों-सी, बहना की निंदिया-सी
कोमल-कोमल, श्यामल-श्यामल,अरूणिम-अरुणिम
कुमार जी ने एक बार फिर से हमलोगों का दिल जीत लिया है। मैंने भी इनकी यह रचना इनकी पुस्तक "कोई दीवाना कहता है" में पढी थी। लेकिन दुबारा पढने पर भी मुझे इसके स्वाद मे कोई कमी नहीं लगी।
इस रचना की जितनी प्रसंशा हो कम है..इसे पोडकास्ट करें।
-रितु
पता नहीं क्यों...मुझे मज़ा नहीं आया।
कुमार जी
आपकी यह कविता मैने पढ़ी हुई थी । आज भी इसको पढ़कर उतना ही आनन्द आया ।
बहुत ही भावपूर्ण रचना है जिसमें आपने अपने सारे कोमल भावों को पिरो दिया है ।
प्रेयसी का आना सचमुच ही इतना सुन्दर होगा तभी तो कवि का मन मयूृ कल्पना
मात्र से रोमांचित हो उठा है । ऐसी ही मधुर रचनाएँ लिखते रहिए और हिन्द युग्म के
पाठकों को रसा स्वादन कराते रहिए । सस्नेह
इस कविhttp://ritbansal.mypodcast.com/index.htmlता को यहाँ सुनें
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