मैंने तपाक से उन्हें बता दिया था कि ६ जुलाई को फ़ैज़ाबाद में एक मीट कर रहा हूँ और ८, ९ और १० जुलाई को इलाहाबाद में।
६ जुलाई की रिपोर्ट आशीष जी के ब्लॉग पर उपलब्ध है। ७ जुलाई को मैं प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश के ७० जनपदों में से एक) के एक कस्बे लालगंज अझारा के देवेश त्रिपाठी (प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक) से मिलकर उन्हें चिट्ठाकरी की ताकत बताई तो उन्होंने कहा कि जल्द ही वे कम्प्यूटर खरीदेंगे और नेट की दुनिया से जुड़ेंगे, यद्यपि लालगंज में कोई साइबर कैफ़े भी नहीं है।
८ को प्रमेन्द्र प्रताप सिंह से उन्हीं के घर मिलना हुआ। ज्ञानदत्त पाण्डेय जी के बारे में तो पहले से पता था। प्रमेन्द्र ने बताया कि इलाहाबाद से बहुत से चिट्ठाकार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सक्रिय हैं। मैंने उनसे कहा कि वो इस बावत कि मैं इलाहाबाद में हूँ और सभी हिन्दी-ब्लॉगरों से मिलने की इच्छा रखता हूँ-एक पोस्ट प्रकाशित करें। पूरे २४ घण्टे इंतज़ार के बाद भी इलाहाबाद के किसी भी ब्लॉगर ने इसमें रुचि नहीं दिखाई।
अगले दिन शाम को ज्ञानदत्त पाण्डेय जी को मैंने व्यक्तिगत मेल किया और बताया कि १० जुलाई की शाम ५ बजे तक मैं फ़्री हूँ। थोड़ा समय निकालें। अपना चलित दूरभाष क्रमांक दिया। इतना इसलिए भी किया क्योंकि वो अपने ब्लॉग पर सक्रिय दिखाई दे रहे थे। लेकिन अफ़सोस मिलना तो दूर उन्होंने मेल का उत्तर देना भी मुनासिब नहीं समझा। सम्भव है वो मिलने-जुलने में कम विश्वास करते हों।
ख़ैर अभी भी मेरे पास पूरा का पूरा १० जुलाई था। प्रमेन्द्र प्रताप सिंह के साथ मिलकर यह तय हुआ कि इलाहाबाद के ऐतेहासिक चन्द्रशेखर आज़ाद पार्क (जिसे कम्पनी बाग़ और अल्फ़्रेड पार्क से भी जाना जाता है) में सुबह १०:३० बजे से ब्लॉगिंग पर उनके कुछ मित्रों के साथ चर्चा की जाय। मैं और कवि मनीष वंदेमातरम् यूनिवर्सिटी रोड के अपने कमरे से निकले। नियत समय से ३० मिनट पहले पहुँचकर जामून के पेड़ के नीचे बैठकर उसकी छाया का आनंद लेने लगे। इलाहाबाद में मैं तीन वर्ष (जुलाई १९९९ से अगस्त २००२ तक) रह चुका हूँ। पहले रोज़ कम्पनी बाग़ में कभी इस पेड़ के नीचे, कभी उस पेड़ के नीचे, कभी पब्लिक लाइब्रेरी में बैठा करता था, पुरानी यादें ताज़ी हो गईं। थोड़ी देर में ही प्रमेन्द्र की पूरी साइकिल सेना वहाँ हाज़िर हो गई। उनकी ओर से कुल ७ लोग थे। हाथ मिलाना, गले मिलना, अभिवादन, नाम-पता आदि हुआ।
मुझे यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि इन छः लोगों में से कई लोग ब्लॉग और ब्लॉगिंग के बारे में सुन रखे थे। या यूँ कहिए कि प्रमेन्द्र जी ने अपने ब्लॉग और कुछ विवादित ब्लॉगों के दर्शन भी करा रखे थे।
चित्र में (बायें से दायें)- प्रमेन्द्र प्रताप सिंह, संजू जोशी, ताराचंद्र, शैलेश भारतवासी, राजकुमार, मनीष वंदेमातरम्, अनुराग गोयल, अमित कुमार मौर्य और विवेक मिश्र
सबसे पहले विवेक मिश्र (बी॰ए॰ तृतीय वर्ष के छात्र) ने ब्लॉगिंग पर चर्चा करनी शुरू की। उन्होंने बताया "हमारे यहाँ नेट-सर्फ़िंग करना बहुत ही महँगा सौदा है। हम लूकरगंज, इलाहाबाद में रहते हैं जहाँ १ घण्टे का चार्ज़ २०-२५ रुपये है। हम विद्यार्थियों के लिए नेट-सर्फ़िग इतना आसान नहीं।"
संजू जोशी (रेलवे में कर्मचारी) ने बात लपकी "ऊपर से ज़्यादातर ज़गह हिन्दी दिखाई नहीं देती है। स्पीड भी बहुत अच्छी नहीं मिलती है"
मैंने तुरंत ही एक प्रस्ताव रखा "मान लीजिए हिन्द-युग्म आपलोगों को प्रतिमाह १० घण्टे के नेट-एक्सेस का खर्च सहयोग राशि के रूप में देता है तो क्या आप लोग हिन्दी में ब्लॉगिंग करना चाहेंगे?"
संजू ने कहा कि आइडिया अच्छा है, मगर विवेक ने आशंक व्यक्त की कि यह यूपी है, यहाँ सहयोग राशि का दुरुपयोग अधिक होता है, सदुपयोग न के बराबर। इस पर बहुत गहराई से सोचना होगा।
ताराचंन्द्र (स्थानीय समाचार पत्र तीर्थराज टाइम्स में रिपोर्टर) शायद इन कोडशब्दों को समझ नहीं पाये थे। उन्होंने तपाक से पूछ डाला कि यह ब्लॉगिंग क्या बला है और मैं ब्लॉगिंग क्यों करूँ।
मैंने लगभग १५-२० मिनट ब्लॉग, ब्लॉगिंग, वर्तमान, भविष्य, इससे जुड़ी व्यवसायिकता, यूरोप में इसकी लोकप्रियता, भारत के हिन्दी पत्रकारों का इसमें कूदना आदि पर लेक्चर दिया। वो काफ़ी संतुष्ट दिखे। उनको एक प्रस्ताव भी दिया कि यदि आप तीर्थराज टाइम्स नाम का एक ब्लॉग बनाते हैं तो आपका सम्पादक आपका प्रोत्साहन भी करेगा और तीर्थराज टाइम्स को कम से कम नाम से ही सही देश-दुनिया के लोग जानने लगेंगे। जहाँ तक मटेरियल की बात है तो आप उसे अपने अख़बार से उठा सकते हैं।
मनीष वंदेमातरम् ने ब्लॉग के बहुआयामी स्वरूप का बखान किया। उन्होंने कहा कि कुछ नहीं तो कम से कम आप अन्य ब्लॉगरों को पढ़ना शुरू कीजिए। अपनी पसंदीदा किताबों के बारे लिखिए, गली-मुहल्लों की बातें उठाइए।
प्रमेन्द्र जी ने उन सभी को हर तरह से सहयोग देने का वादा किया।
अमित कुमार मौर्य (११ वीं के छात्र) हालाँकि चुप ही रहे मगर उनके अनुसार उन्हें भी चिट्ठाकारी की दुनिया ने आकर्षित किया है।
राजकुमार (बी॰ एस सी॰ तृतीय वर्ष के छात्र) ने विश्वास दिलाया कि वे भी बहुत जल्द ब्लॉगिंग शुरू करेंगे।
राजकुमार जी ने कहा कि अगर नेट-सर्फ़िग सस्ता हो जाय तो हमारे जैसे लोग भी ब्लॉगिंग के बारे में सोच सकते हैं।
मनीष वंदेमातरम् ने युवामन को यह कह करके आश्वस्त किया कि जिस तरह भारत सरकार की नीतियों ने फ़ोन को आम आदमी तक पहुँचाने का काम किया है, उसी तरह बहुत जल्द कम्प्यूटर और नेट का नम्बर आयेगा,
मैंने कहा कि हिन्द-युग्म आगे चलकर यदि स्ववित्तपोषी संस्था बन जाता है। पर्याप्त धन संचयित हो जाता है, तो छोटे शहरों और गाँवों में ऐसे साइबर कैफ़े खोलेगा जिसका चार्ज़ बहुत कम हो और हिन्दी लिखने-पढ़ने की सारी सुविधाएँ हों।
यह सुनकर उनलोगों की आँखें चमक उठीं।
प्रमेन्द्र जी ने सभी युवाओं के भीतर छिपी प्रतिभाओं के बारे में बताया। संजू जोशी पहले खूब कविताएँ करते थे लेकिन रेसपांस अच्छा नहीं मिला तो लिखना छोड़ दिया। मैंने प्रोत्साहित किया, उन्होंने पुनः लिखना शुरू करने का वचन दिया।
विवेक मिश्र अंग्रेज़ी में अच्छी कविताएँ लिखते हैं। मैंने हिन्दी पर मेहरबानी करने का निवेदन किया।
अमित मौर्य इनलोगों की क्रिकेट टीम के विकेट कीपर हैं।
ताराचन्द्र तो हरफ़नमौला निकले।
अनुराग गोयल अच्छे छात्र के साथ-साथ सफल व्यवसायी भी हैं।
काफ़ी चर्चा हुई। यह निकलकर सामने आया कि आनेवाले समय में अंतरजाल पर हिन्दी का भविष्य उज्जवल है। कुछ कठिनाइयाँ हैं जिन्हें मिलकर खत्म किया जा सकता है। चूँकि वहाँ किसी को भी नारद-विवाद, मोहल्ला-विवाद से कुछ लेना-देना नहीं था, इसलिए घण्टे भर की मुलाक़ात में बहुत से बिंदुओं पर चर्चा हो गई।
यह चर्चा शहीद चंद्रशेखर आज़ाद की समाधि के नज़दीक ही हो रही थी तो वहाँ से कहीं और जाने से पहले सबने उन्हें सलामी दी।
चित्र में (बायें से दायें)- ताराचंद्र, प्रमेन्द्र प्रताप सिंह, मनीष वंदेमातरम्, शैलेश भारतवासी, राजकुमार, विवेक मिश्र, अमित कुमार मौर्य और अनुराग गोयल
फ़िर थोड़ी देर के लिए पार्क में टहला गया। ठण्डा-गरम हुआ। विदाई ली गई। मैंने दुबारा मिलने का वचन दिया। इस रिपोर्ट में बहुत-सी बातें छूट गई हैं जिन्हें प्रमेन्द्र १५ जुलाई के बाद कवर करेंगे।
धन्यवाद।
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
आप अच्छा काम कर रहे हैं.लगे रहें.
बढ़िया, शैलेश जी। आपलोग अपने अभियान में सफल हों!
हिन्द-युग्म आगे चलकर यदि स्ववित्तपोषी संस्था बन जाता है। पर्याप्त धन संचयित हो जाता है, तो छोटे शहरों और गाँवों में ऐसे साइबर कैफ़े खोलेगा जिसका चार्ज़ बहुत कम हो और हिन्दी लिखने-पढ़ने की सारी सुविधाएँ हों।
यह एक अच्छा विचार है.. साथ ही, अगर दिल्ली में बैठे नामी-गिरामी हिन्दी-ब्लागर भारतसरकार, बीएसनल, रिलायंस, एयरटेल आदि से बात करके हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के नियमित ब्लागर्स के लिए सस्ते इण्टरनेट की व्यवस्था सुनिश्चित करवा सकें.. तो अच्छा रहेगा। प्रयास करने में क्या जाता है।
आप का लोगो को जोडने का कार्य और इच्छा शक्ती वाकई अनुसरणीय है.
मन छोटा ना करे कुछ लोग फ़लक पर होने के बावजूद केवल लेना और दूसरो पर टीका टिप्पणीया करना ही जानते है देना नही,
शैलेश, आपने ये ब्लागर मीट नहीं बल्कि ब्लागर अवेयरनेस मीट की है. ये बहुत बड़ी बात है. यही वो राज है जिससे हमारे पाठक दस गुने होंगे.
हम साथ साथ हैं...
चर्चा निश्चित रूप से लाभदायी रही. आप सभी को अपने-2 मिशन में सफल होने के लिए शुभकामनाएँ.
काफी अच्छा लिखा है।
एक एक बात याद आ गई है
। मै भी 15-16 तक लिखूँगा।
बहुत ही अच्छा प्रयास है..बहुत अच्छा कर रहे है आप लोग...एक और सुझाव देना चाहूगा...कम्पनी बाग मे स्थित स्ंग्रहालय मे आज भी चित्रकला और हिन्दी साहित्य से सम्बन्धित कक्षाये और गोस्ठियाँ चलती रहती है..जिसकी सूचना आसानी से मिल सकती है..वहाँ के कर्मचारियो से..तो वहाँ भी एक ब्लाग गोस्ठी की जा सकती है..मुझे उम्मीद है लोग और जुडेगे...
जगहे काफी है..और लोग भी है लिखने वाले..जरुरत है उन्हे जोडने की.
आपका मिशन कामयाब हो.
आमीन.
-विज
वाह यह पहली ब्लॉगर मीट रही जिसमें नॉन-ब्लॉगरो ने भी बड़ी संख्या में भागीदारी की। आप लोगों का प्रयस सराहनीय है कि आप ने उनमें हिन्दी ब्लॉगिंग के प्रति जागरुकता पैदा की, आगे भी ऐसे प्रयास जारी रखे जाने चाहिए।
शैलेष भाई बधाई, हमारी बात आदरणीय मैथिल जी नें आपके समने रख दी है । गांव खेडे के लोगों को भी इसमें जोडना होगा । हमें अच्छा लगा आप दिल्ली में भी अपनी कवितायें गुनगुनाते हो तो उसकी गूंज वहां तक पहुंचती तो है ।
bahut badia sailesh tum sachmuch ek prerna ho
शैलेशजी, बहुत अच्छा लग रहा है कि आप मीट के माध्यम से उन लोगों तक ब्लॉगिंग को पहूँचा रहें है जो अभी तक इससे अछूते है। मुझे यह ब्लॉगर मीट से ज्यादा उपयुक्त लगा।
धन्यवाद एवं बधाई!!!
सही है. एक सराहनीय अभियान. सफलता के लिये शुभकामनायें.
शैलेश मुझे बेहद खुशी हो रही है कि तुम पिछली भेंटवार्ता के दौरान कही गई बातों के क्रियान्वयन में लगे हो।
दरअसल आज हमारे देश में एक समस्या ये भी है कि स्कूल से निकलने के बाद हमारा हिंदी में लिखना ओर बहुत लोगों का सामग्री की अनुपलब्धता की वजह से पढ़ना भी छूट जाता है। फिर इस भाषा का रस तो हम ले ही नहीं पाते। और जिनकी रुचि शुरु से लेखन की ओर रहती भी है वो भी प्रोत्साहन और उत्साह के आभाव में खत्म हो जाती है। इस दृष्टि से तुम्हारा ये प्रयास बेहद सराहनीय है।
पढ़ कर अच्छा लगा। चलिये चिट्टाकारी से कुछ और लोग जुड़ेंगे।
इस प्रकार के प्रयासों की निरंतरता बनें एसी संभावनाओं पर विचार करें..
*** राजीव रंजन प्रसाद
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