हर एक मोड़ पे बेचैनी है, हर शाख का पत्ता रोता है
खुदा के जी में जाने क्या है, दिनभर चैन से सोता है
उड़ने वाले सारे सपने बस आँखों में कैद रहें
आँखों का सपनों से ये बेचारा-सा समझौता है
अंधे के रस्ते में गड्ढा, कच्चे घर में बारिश है
जिसके पास नहीं कुछ भी, वो सबसे ज्यादा खोता है
उत्सव में दिल घबराता है मातमपुरसी के जैसे
घूम-घूमकर जीवन भर, एक यही तमाशा होता है
एक परिन्दे ने छिपकर कुछ इंसानों की बात सुनी
हर पंछी भी भीतर से अब दानव जैसा होता है
कठपुतली का खेल है कोई, या एक खेत है बंजर-सा
एक किसान ने हम सबको बस बैल की तरह जोता है
जा दरिया में डूब मरो या फन्दा डाल लटक जाओ
कहना था तो ये कहती, 'ना लौटूँगी' क्या होता है
वे बोले, क्या उस बिन जीना सचमुच इतना मुश्किल है
उनसे पूछो, ये बतलाएँ, ये जीना कैसा होता है?
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
26 कविताप्रेमियों का कहना है :
ek anjani or jani pahchani se kashak hai aapki kavita mai behad badhiya
वाह गौरव बेमिसाल कविता है,मगर खुदा चैन से कहाँ सो पाता है कौन सोने देता है उसे...यदी खुदा को मानते है तो ये भी मानना पडे़गा की इन्सान के अपने कर्मो का फ़ल होता है जो होता है...बहुत सुन्दर कविता है भावनाओ और इश्वर के प्रति खीज से भरी...मगर बेहतरीन शब्द सयोंजन है... बधाई...
सुनीता(शानू)
उत्सव में दिल घबराता है मातमपुरसी के जैसे
घूम-घूमकर जीवन भर, एक यही तमाशा होता है
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एक ख़ूबसूरत शब्दों के बादल
अमृत की बरसात करे......
आपकी गहरी रचना से आपकी गहराई नापने की कोशिश कर रहा हून.....बधाई
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
बहुत बढिया रचना है।
उड़ने वाले सारे सपने बस आँखों में कैद रहें
आँखों का सपनों से ये बेचारा सा समझौता है
अंधे के रस्ते में गड्ढा, कच्चे घर में बारिश है
जिसके पास नहीं कुछ भी, वो सबसे ज्यादा खोता है
waha Gorav bahut badhiya likha, aapki har kavita main shabdon ka selection bahut hi umda hota hai bai. अंधे के रस्ते में गड्ढा, कच्चे घर में बारिश है
जिसके पास नहीं कुछ भी, वो सबसे ज्यादा खोता है. kiya bat hai.
गौरव,
एक बार पुनः मन प्रसन्न कर दिया आपने
आपकी शैली अलग ही है जो बहुत सरलता से हृदयंगम हो जाती है
अनुपम शब्द्-चयन, गहरे भाव और अनूठे बिम्ब आपकी विशेषता बन चुके हैं अब
"आँखों का सपनों से ये बेचारा सा समझौता है"
"अंधे के रस्ते में गड्ढा, कच्चे घर में बारिश है"
"एक परिन्दे ने छिपकर कुछ इंसानों की बात सुनी
हर पंछी भी भीतर से अब दानव जैसा होता है"
बहुत ही सुन्दर रचना
अद्भुत, इसी प्रकार लिखते रहो...
हार्दिक बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
गौरव जी बहुत सी शिकायतें झलक रही हैं आप की इस रचना में
मगर
गर जिन्दगी में आसानियां हो जिन्दगी दुश्वार हो जाये..
सुन्दर बिम्बों से सज्जित रचना के लिये बधाई
जो पंक्तियाँ सबसे ज्यादा प्रभावी लगीं वे ये हैं :
"एक परिन्दे ने छिपकर कुछ इंसानों की बात सुनी
हर पंछी भी भीतर से अब दानव जैसा होता है"
बहुत सुंदर रचना है.. काश ऐसा दिन आ जाये जब हमें और आपको ऐसी पंक्तियाँ न लिखनी पड़ें!!
ya khuda agar ye sach hai..
ki dilon ki mohabbat me...
tu nazar aata hai...................
to fir kyon totate hai dil..
aur khud tera wazood...
bikhar zata hai.....................
गौरव जी,
बहुत अच्छा लिखा है आपने. भाव और शब्दों का खूबसूरत संयोजन! हालाँकि मैं शानू जी से सहमत हूँ कि हमें खुदा को दोष देने के बजाय अपने को तौलना चाहिये.
शुरुआत बहुत अच्छी है, मगर अंत तक आते-आते शेर उतने प्रभावी नहीं रह पाते. गज़ल की लम्बाई कम रखते तो शायद ज़्यादा बेहतर होता.
"जिसके पास कुछ नही, वही सबसे ज्यादा खोता है"
"एक किसान ने बैल के जैसे हम सबको जोता है"
गौरव जी,
ज़िन्दगी की सारी हक़ीकत जैसे खोलकर सामने रख दी, मज़ा आ गया ।
मुझे तो रचना में कोई कमी नज़र नही आई, रही बात खुद को तौलने की, तो वो कोई संत-महापुरुष ही कर सकता है, हम जैसों की ऐसी औकात कहाँ, हम तो बस भगवान को कुछ देर कोस आगे बढ लेते हैं, हमारी तो यही ज़िन्दगी है, जो आपने बखूबी अपनी रचना के प्रारम्भ में परोसी है ।
आपका साधुवाद,
आर्यमनु
हर एक मोड़ पे बेचैनी है, हर शाख का पत्ता रोता है
खुदा के जी में जाने क्या है, दिनभर चैन से सोता है
अंधे के रस्ते में गड्ढा, कच्चे घर में बारिश है
जिसके पास नहीं कुछ भी, वो सबसे ज्यादा खोता है
कठपुतली का खेल है कोई, या एक खेत है बंजर सा
एक किसान ने हम सबको बस बैल की तरह जोता है
गौरव जी, अच्छी रचना है। कुछ शेरों को धार लगाये जाने की आवश्यकता है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
gauravji.....
rachna behad khoobsurat hai...
उड़ने वाले सारे सपने बस आँखों में कैद रहें
आँखों का सपनों से ये बेचारा सा समझौता है
कठपुतली का खेल है कोई, या एक खेत है बंजर सा
एक किसान ने हम सबको बस बैल की तरह जोता है
You have got great power of imagination....tat makes ur creations so special i guess
मेरी आवाज मे इस कविता को यहां सूनें
गौरव तुम बहुत अच्छा लिखते हो पर इस कविता में वो बात नज़र नहीं आयी ।
तुम्हारी कविता में निराशा दिखाई दे रही है । अपने आत्मबल को समेटो और
निराशा को दूर भगा दो । खुदा क्या करता है यह जानना इतना भी आसान नहीं ।
एक सकारात्क सोच लेकर चलोगे तो कविता में रस आएगा और पढ़ने वालों को आनन्द भी
मिलेगा । बहुत-बहुत स्नेह और शुभकामनाओं सहित
15 tippaniya swayam hi tarif kar deti hai
kuch kahane ko baaki nahi bas jo line ACHCHI LAGI GAZAL ME WO UDHDHARIT KARNA CHHAHOONGA
जा दरिया में डूब मरो या फन्दा डाल लटक जाओ
कहना था तो ये कहती, 'ना लौटूँगी' क्या होता है
jannab mujhe aapki kavita samajh main nahin aayi hai kshama chahta hoon. main ek sampadak hoon. kripya nivedan samjhen vichron main ek rupta ka abhav hai, kuch bhi aisa nahin hai jo pehle nahin kaha gaya ho kai baar aapne tuk ke abhaav main khayal se samjhota kar liya hai. shayar ke liye ye bahut ghatak chhez hai waise achha pryaas hai meri shubh kamnain aapke saath hain - KSHITIJ
हर एक शेर मुकम्मल है गौरव भाई। देर से टिप्पणी करने के लिए क्षमा चाहता हूँ। वैसे इसे मैंने आपके पोस्ट करने के ५ मिनट के अंदर हीं पढ लिया था।खुदा को कोसा जाए या नहीं इस लफड़े में मैं नहीं पड़ना चाहता। मैं तो बस यह जानता हूँ कि आपने अपने लेखनी और अपनी क्षमता के साथ अच्छा न्याय किया है। आपकी रचना में परिपक्वता नज़र आती है।मैं हमेशा से हीं कहता आया हूँ कि मुझे आपसे कुछ न कुछ सीखने को मिलता रहता है।
बड़े हीं सुंदर बिंब होते हैं, आपकी रचनाओं में । बस इसी तरह मार्गदर्शन करते रहें।
लभभग वो धार तो इस बार भी है जो आपकी कविताओं में होता है, मगर पता नहीं क्यों संतुष्टि नहीं मिली।
वैसे हर बार आप भगवान को कहीं न कहीं लपेट ही लेते हैं। कमलोग इतनी हिम्मत कर पाते हैं।
कविता बहुत ही मनभावक है। प्रशंसा के लिए शब्द कम पढ रहे हैं।
Bahoot koshish ki..acchi koshish ki....
shayad isliye itne acche comments mile hain aur itne logon se mile....
thodi jagah dil se nikli awaj,,,thodi jagah koshish safal hui....
बहुत सुन्दर गौरवजी,
अंधे के रस्ते में गड्ढा, कच्चे घर में बारिश है
जिसके पास नहीं कुछ भी, वो सबसे ज्यादा खोता है
सच! कड़वा सच!
आपकी यह रचना भी बेहत पसंद आयी, बहुत खूब!
बधाई स्वीकार करें!
yaar tu sochta mast hai u r giving impression of childhood when we were too naive to think abt harming somebody .U have these thoughts at this age this is really impressive .I found my emotions r dying as i am growing but urs gargauntm and growing
good work.........
बहुत अच्छी रचना है , पढ़ने पर कवि की विलक्षण सामाजिक चेतना का आभाष मिला.......बहुत बहुत साधुवाद .................क्रान्ति
bahoot khoob
dil ko chu gayi
bahoot khoob
dil ko chu gayi
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