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Wednesday, July 04, 2007

सोच के आना


याद है अब भी तेरा फसाना।
बीती बातें गुज़रा ज़माना।।

जीवन का वो दौर सुनहरा;
लगता है अब घाव पुराना।

खूब चली मन की मनमानी;
तुझको अपना मीत बनाना।

चंद सवाल तकें तेरा रस्ता;
भूल डगर कभी इधर से जाना।

भूला तो हूँ पर किस हद तक;
मुश्किल है अंदाज़ा लगाना।

मैं तो खुश हूँ तुम कैसे हो;
पूछूँगा यह सोच के आना।

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

पंकज जी
स्वाभाविक सहजता और सरलता है आपकी इस गज़ल में।

जीवन का वो दौर सुनहरा;
लगता है अब घाव पुराना।

भूला तो हूँ पर किस हद तक;
मुश्किल है अंदाज़ा लगाना।

मैं तो खुश हूँ तुम कैसे हो;
पूछूँगा यह सोच के आना।

उद्धरित शेर विशेष पसंद आये।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Pramendra Pratap Singh का कहना है कि -

बहुत ही खूबसूरत गजल प्रस्‍तुत किया है बधाई

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सुंदर और सरल भाषा में लिखी एक अच्छी रचना है

खूब चली मन की मनमानी;
तुझको अपना मीत बनाना।

चंद सवाल तकें तेरा रस्ता;
भूल डगर कभी इधर से जाना।

यह शेर अच्छे लगे ...

Anonymous का कहना है कि -

बहुत ही खूबसूरत लिखा है पंकज जी

Mohinder56 का कहना है कि -

पंकज जी,
छोटे बहर की सुन्दर गजल लिखाए है आप ने.
सच में यदि हम अपने जीवन में हमने क्या खोया क्या पाया का हिसाब लगाने बैठें तो शायद कुछ हाथ न लगे.

Anonymous का कहना है कि -

खूबसूरत ग़ज़ल!

जीवन का वो दौर सुनहरा;
लगता है अब घाव पुराना।

यादों का दौर ऐसा ही होता है, खूबसूरत शे'र...

भूला तो हूँ पर किस हद तक;
मुश्किल है अंदाज़ा लगाना।

यह खूब कही!!!

बधाई!!!

श्रद्धा जैन का कहना है कि -

kya baat hai khoob chli dil ki manmani tumjhko apna meet banana

wah wah itni achhi gazal aur bahut pyara flow

maja aa gaya padh kar

विश्व दीपक का कहना है कि -

आपकी लिखने की कला जमाने से हटकर है, इसलिए नयापन लिए रहती है। सीधे एवं सरल शबद हैं। हरएक पंक्ति पसंद आई, इसलिए किसी को विशेषकर उद्धृत नहीं कर रहा हूँ।
बधाई स्वीकारें।

आर्य मनु का कहना है कि -

"मैं तो खुश हूँ तुम कैसे हो
पूछूँगा यह सोच के आना।"
अरे वाह !
कितने सरल शब्दों मे कितनी सहजता से बहुत कुछ कह दिया आपने।

"चंद सवाल तकें तेरा रस्ता
भूल डगर कभी इधर से जाना।"
अन्दाज़-ए-बयाँ काफी अच्छा लगा आपका ।
बधाई स्वीकार करें ।
आर्यमनु ।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

अब वो दिन दूर नहीं जब ग़ज़ल लिखने पर आप ट्यूटोरियल दिया करेंगे।

Unknown का कहना है कि -

आप की गजल की ये लाइनें बहुत हीअच्छी है ,जितनी जीवन का वो दौर सुनहरा;
लगता है अब घाव पुराना।

भूला तो हूँ पर किस हद तक;
मुश्किल है अंदाज़ा लगाना।

मैं तो खुश हूँ तुम कैसे हो;
पूछूँगा यह सोच के आना।
तारीफ की जाय कम .......... बहुत ही सरलता है

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

जीवन का वो दौर सुनहरा;
लगता है अब घाव पुराना।

चंद सवाल तकें तेरा रस्ता;
भूल डगर कभी इधर से जाना।

भूला तो हूँ पर किस हद तक;
मुश्किल है अंदाज़ा लगाना।

मैं तो खुश हूँ तुम कैसे हो;
पूछूँगा यह सोच के आना।

छोटी सी इस ग़ज़ल के कई शेर दिल को छू गए पंकज जी।
बहुत शुभकामनाएं।

सुनीता शानू का कहना है कि -

सरल रचना है सीधे रस्ते से दिल में उतर जाये ज्यादा परेशान नही होना पड़ा शब्द सरंचना को लेकर...जैसे कि पकंज जी ने कहा
मैं तो खुश हूँ तुम कैसे हो;
पूछूँगा यह सोच के आना।
ज्यादा सोचने कि जरूरत नही पड़ी कविता अपने आप ही दिल में उतर गई...:)

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