पिछले चार सालों से,
अकाल की मार
बूँद-बूँद को तरसती धरती
और
उसकी कोख़ में
नवजीवन को छटपटाते बीज...
चार साल से अंधेरे में पड़े थे,
एक उम्मीद,
अंधेरे से प्रकाश पाने की...
चार साल!
लम्बे अंतराल के बाद,
इस बार वर्षा आयी है...
जगह-जगह
भूमि को तोड़कर,
नव-अंकुरों ने बाहर झांकना शुरू किया है...
एक आनंदपूर्ण अनुभूति,
प्रकाश पाने की आकांक्षा पूरी होने पर,
नव-अंकुरों में मंगल संगीत छाया है...
पूर्णता का अहसास,
कितना सुखद होता है!
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37 कविताप्रेमियों का कहना है :
sundar
एक आनंदपूर्ण अनुभूति,
प्रकाश पाने की आकांक्षा पूरी होने पर,
नव-अंकुरों में मंगल संगीत छाया है...
पूर्णता का अहसास,
कितना सुखद होता है!...
सच में पूर्णता का एहसास बहुत ही सुखद होता है
रचना पढ़ते पढ़ते एक चित्र आँखो के सामने आ गया
सुंदर और भाव पूर्ण रचना है .बधाई!!
sach kahte ho giri purnta ka ehsaas bahut anokha hota hai. aur jab barish ki bunde dharti par girti to ek pyaasi aatam ko tarapt karti hai aur uski khushi se uthi khushbu hum sabke man main khushiyan bharti hai
bahut pyara ehsaas
बहुत सुन्दर कविराज
आपने ऐसा मनोरम चित्र प्रस्तुत किया है जैसे कोई माता अपने नवजात शिशु को देख खुश हो रही हो।
वास्तव में पूर्णता का अहसास बहुत सुखद भरा होता है ।
नवजीवन, नवयुग का बोध कराती आशापूर्ण भावाभिव्यक्ति हेतु अभिवादन स्वीकार करें ।
आर्यमनु ।
बहुत मधुर अपने आप को पुर्न् कर्ति प्रस्तुति है .
sach kaha app ne puranta ka ehsas vakai annadmayi hota hai..........app ki bhavnaye atti sundar hai........or prakriti ke bahut samip.......
अच्छा अहसास है पूर्णता का!
सुंदर कविता!!
अकाल के दौरान पानी के लिए तरसती धरती और फ़िर वर्षा के माध्यम से पूर्णता के एहसास का चित्रण!
"पूर्णता का अहसास,
कितना सुखद होता है!"
यह तो सार्वभौमिक है!!
धन्यवाद!!
mai to yehi kahungi ki appne accha likhane ka paryas kiya lekin app isasebhi accha likh sakate hai
paryas jari rakhe
isame kawas ke dard ko shamil kiya hota to waha ka dard sab jaan paate.
wah.......mujhe bhi lag raha hai.....kitne diwas se taraste mere sukhe antas ko aaj aapki rachna ne bhigo diya hai.....
sundar shabdo ka prayog aur sundar chitran.....
meri badhai sweekar kare.....
एक आनंदपूर्ण अनुभूति,
प्रकाश पाने की आकांक्षा पूरी होने पर,
नव-अंकुरों में मंगल संगीत छाया है...
पूर्णता का अहसास,
कितना सुखद होता है!...
bahut sukhad hota hai......[:)]
divya
सुन्दर अभिव्यक्ति है । बहुत अच्छी लगी यह कविता ।
घुघूती बासूती
बूँद-बूँद को तरसती धरती
और
उसकी कोख़ में
नवजीवन को छटपटाते बीज...
सुन्दर कविता दर्द को सहेजती
बूँद-बूँद को तरसती धरती
और
उसकी कोख़ में
नवजीवन को छटपटाते बीज...
सुन्दर कविता दर्द को सहेजती
कविराज ,
सुंदर कविता है!
पूर्णता का एहसास बहुत ही सुखद होता है.
धन्यवाद
aati sundar, kaviraj apki rachnaye bhaut hi aachi hoti hai, is kavika mein apne punayata ko bakhubi chitrath kiya hai
Goood!!!!
कई दिनो तक चूल्हा रोया ..........नागर्जन जी की यह कविता याद आ गयी । वैसे घुघुती जी नाराज़ हो जाएंगी । :) मुझे भी आज नागर्जुन याद अ गये । वे ब्लागरो के इष्ट देव बनते जा रहे हैं :)
****खैर आप सुन्दर रचना के लिए साधुवाद स्वीकारें !
कविराज निश्चय ही कविता की सत्ता के सर्वेसर्वा हैं।
जगह-जगह
भूमि को तोड़कर,
नव-अंकुरों ने बाहर झांकना शुरू किया है...
लिखने का तरीका मुझे भा गया। गिरि जी आप छोटी से छोटी बात में भूचाल जड़ देते हैं । बहुत खूब। बधाई स्वीकारें।
भाई आपका लिंक देखकर मुझे बहुत प्रस्न्नता हुई आपका शुक्रगुजार हूॅ; आपने सच में बहुत अच्छी कविता लिख्ी है; आगे भी आप हम लोगो से इसी तरह प्रेम बनाकर रखेगे यही आशा करता हूॅ;
पूर्णता का अहसास,
कितना सुखद होता है!
सचमुच गिरिराज जी, पूर्णता का अहसास अप्ने में अनूठा और सुखद होता है. हर जीव इसी अहसास को तरसता रहता है और जिसे ये मिल जाये, उसे और कुछ पाना शेष नहीं रह जाता.
एक बेहद सुंदर और भावपूर्ण रचना के लिये बधाई.
ऐसे ही लिखते रहिये !
Bhut Badiya bhai ji ...
ye to hakikat hai ki,
barish ka aanand to payasi dharti ko hi aata hai....
aapke shabdo ka varnan to es ehsas ko choone wala hai, bahut khub..
बीजों के नवअंकुरण का सजीव चित्रण कर दिया आपने.
पूर्णता अर्थात् अन्त? जब तक कुछ बाकी है, तभी तक जान बाकी है...
बहुत खूब गिरिराज । अनावृष्टि के दौर में भी बीज बचाए रखना इसीलिए जरूरी है।
shabdo ke saath saath vishye bhi bhut acha hai...
एक आनंदपूर्ण अनुभूति,
प्रकाश पाने की आकांक्षा पूरी होने पर,
नव-अंकुरों में मंगल संगीत छाया है...
पूर्णता का अहसास,
कितना सुखद होता है!
वाह गिरिराज जी..बहुत ही सुन्दर, परिपक्व, नयी कविता।
*** राजीव रंजन प्रसाद
"एक आनंदपूर्ण अनुभूति,
प्रकाश पाने की आकांक्षा पूरी होने पर,
नव-अंकुरों में मंगल संगीत छाया है..."
पूर्णता का अहसास सचमुच सुखद होता है
सुन्दर चित्रण, प्रभावी अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर कविराज
बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
वाकई ये बहुत ही उम्दा किस्म की कविता है जो ना केवल संवेदंशीएल तरीक़े से धरती की व्यथा को दर्शाति है बल्कि मानव को प्रेरित भी करती है की वह वक़्त रेहते संभाल जाए.
वाकई ये उत्कृीष्ठ रचना है
सच काहू तो मुझे " नीरज " जी की मिट्टी ले लो मोल " का स्मरन हो आया
फ़र्क इतना है की व्हान व्यथा आदमी की थी और यहाँ धरती माँ की
sundar rachna hai giri ji....sahi kaha aapne
पूर्णता का अहसास,
कितना सुखद होता है!
सचमुच भावपूर्ण अभिव्यक्ति है. आशायें एव् स्रजन का बेमिशाल चित्रण,
शुभकामनाये.
बहुत सुन्दर..पूर्ण भी...
Bahut Hi badiya tarkey sey apney biyan kiya hai kmaal hai.............seema
यह तो पूर्ण बनने की प्रकिया का आगाज़ है, पूर्णता कहाँ है? अभीष्ट समझ में नहीं आया। अभी जो ब्लॉगर-मीट हुई थी होटल पार्क में, उसमें दिग्गजों ने भी माना कि कविराज की कविता दिन-प्रतिदिन निखरती जा रही है। हमारी तो यही ख़्वाहिश है कि हमारे गिरिराज की कविता को जन-जन पसंद करें। लगे रहिए।
बहुत ही मनोरम चित्रण है, बन्धु. वास्तव मे पूर्णता का एहसास बिल्कुल अलग ही होता है !
बहुत खूब.... सही कहा आप ने, पूर्ण्ता का अह्सास बहुत सुखद होता है!
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