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Thursday, June 14, 2007

जाने कैसे???



जाने कैसे ज़िंदगी का वक़्त बीतता जाता है
कुछ सिमट के यहाँ बिखरता जाता है

थे जो दिल के क़रीब कभी आज वही दूर हैं
फ़ासलों का पैमाना छलकता जाता है

दरिया के पास रह कर भी सूखे रहे हम
एक क़तरा इश्क़ का समुंदर में बदलता जाता है

चाहा दिल ने बहुत की ढलूं में भी ज़माने के रंग में
पर यह ज़माना ही मेरे रंग में रंगता जाता है

वो कहते हैं की सुधरना होगा तुम्हे इन हालात में
वही मेरी राह पर चल के बिगड़ता सा जाता है

जाने यह प्यार अब दुनिया से कहाँ रुख़्सत हो गया
एक नशा यहाँ जिस्म का ही बस हर तरफ़ नज़र आता है

हरे पेड़ों पर क्यूँ नज़र आते हैं सूखे से पत्ते
दिल मेरा आज किस हादसे से यूँ घबरा सा जाता है

दिल मेरा है शायद एक टूटी हुई दीवार का घर कोई
यहाँ हर कोई आ के फिर से अपनी राहा में गुम हो जाता है

हर चेहरे में तलाश करता है मेरा दिल तुझको
कैसी तेरी यह तस्वीर है जो दिल फिर से जोड़ नही पाता है

आज क्यूं अजब सी खामोशी हम दोनो में
कोई क़िस्सा फिर से अफ़साना बना जाता है

लबो पर देखा है उनके एक हलका सा तब्बसुम
क्या अभी भी मेरा कहा उनके दिल को छू जाता है !!

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18 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

दरिया के पास रह कर भी सूखे रहे हम
एक क़तरा इश्क़ का समुंदर में बदलता जाता है

आज क्यूं अजब सी खामोशी हम दोनो में
कोई क़िस्सा फिर से अफ़साना बना जाता है

लबो पर देखा है उनके एक हलका सा तब्बसुम
क्या अभी भी मेरा कहा उनके दिल को छू जाता है

अच्छी रचना है रंजना जी। उपर उद्धरित शेर विशेष पसंद आये।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Divine India का कहना है कि -

रंजू जी,
बिल्कुल छू जाएगी यह लेखनी आपके अपलक अभिलाषा को…
बहुत सुंदर लिखा है हर शब्द छन-छन कर बाहर से भितर की ओर बहने लगा है…।

सुनीता शानू का कहना है कि -

रंजना जी बहुत सुंदर प्यारी रचना है...
कुछ शेर बेहद पसंद आये...

दरिया के पास रह कर भी सूखे रहे हम
एक क़तरा इश्क़ का समुंदर में बदलता जाता है

जाने यह प्यार अब दुनिया से कहाँ रुख़्सत हो गया
एक नशा यहाँ जिस्म का ही बस हर तरफ़ नज़र आता है

लबो पर देखा है उनके एक हलका सा तब्बसुम
क्या अभी भी मेरा कहा उनके दिल को छू जाता है !! -

सुनीता शानू

Mohinder56 का कहना है कि -

वाह वाह रंजना जी,

बहुत बढिया लिखा है आपने

जाने कैसे ज़िंदगी का वक़्त बीतता जाता है
कुछ सिमट के यहाँ बिखरता जाता है

हर चेहरे में तलाश करता है मेरा दिल तुझको
कैसी तेरी यह तस्वीर है जो दिल फिर से जोड़ नही पाता है

लबो पर देखा है उनके एक हलका सा तब्बसुम
क्या अभी भी मेरा कहा उनके दिल को छू जाता है

और एक शेर मेरी तरफ़ से...

खुद चले जाते हो आप घूमने फ़िरने..
गैर के हाथ तेरा पैगाम आता है :)

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

रंजना जी,

आपकी इस रचना में रचनात्मक निखार स्पष्ट देखा जा सकता है। शे'र कहने का स्टाईल हमेशा ही ज़ुदा रखने की कोशिश होनी चाहिए। जैसे आप इस शे'र में यह प्रयोग करने में सफल हुई हैं-

चाहा दिल ने बहुत की ढलूं में भी ज़माने के रंग में
पर यह ज़माना ही मेरे रंग में रंगता जाता है

आपने निम्न पंक्ति में जो चिंता की है, वो भी एक तरह से अलग तरीके से करना कही जा सकती है-

हरे पेड़ों पर क्यूँ नज़र आते हैं सूखे से पत्ते
दिल मेरा आज किस हादसे से यूँ घबरा सा जाता है

उम्मीद है, आनेवाले दिनों में और निखार आयेगा।

SahityaShilpi का कहना है कि -

सुंदर अभिव्यक्ति के लिये बधाई, रंजना जी.

Upasthit का कहना है कि -

vaah

ख्वाब है अफसाने हक़ीक़त के का कहना है कि -

Aaj kyu ajab si khamoshi hai ham dono mei,
koi kissa fir se afsaana bana jata hai...

Bahut khoob Ranjana ji.. Aisa lag raha hai ki aap ki iss rachna ne meri kuchh vyaktigat yaado ko dubara se chhed diya hai, har lafz ke sath khud ko judaa mahsus kar raha hun. Bahut badiyaa. Aur adhik kahne ke liye shabd nahi hain...

Unknown का कहना है कि -

Shabdon me bhavna bhi hai...Aur aisa lagta hai ki kaviyatri ne bebasi ko...khamoshi ko...man ki akulahat ko ek jubaan de di !! Jahan shabd Ni:shabd ho jaate hain....wahan man bolta hai..!!Meri badhayee sweekar kijiye..!!

आशीष "अंशुमाली" का कहना है कि -

हरे पेड़ों पर क्यूँ नज़र आते हैं सूखे से पत्ते
दिल मेरा आज किस हादसे से यूँ घबरा सा जाता है
बहुत पैना शेर है।

Unknown का कहना है कि -

mam aapka bhi msg. ka mujhe bahut intejar rahta hai....rly mein

aapka likha to hamesa lajwbab hota hai.....
par afsos ki filhal main thora busy jayada rahta huin...isliye time nahi de pata....sirf read kar leta huin....isliye aap naraz mat hoiyega....

Kavi Kulwant का कहना है कि -

बहुत अच्छा लगा

Admin का कहना है कि -

दरिया के पास रह कर भी सूखे रहे हम
एक क़तरा इश्क़ का समुंदर में बदलता जाता है

जाने यह प्यार अब दुनिया से कहाँ रुख़्सत हो गया
एक नशा यहाँ जिस्म का ही बस हर तरफ़ नज़र आता है
सचमुच लाजबाब शायरी है, टिप्पणी ही नहीं सूझती!

विश्व दीपक का कहना है कि -

लबो पर देखा है उनके एक हलका सा तब्बसुम
क्या अभी भी मेरा कहा उनके दिल को छू जाता है

चाहा दिल ने बहुत की ढलूं में भी ज़माने के रंग में
पर यह ज़माना ही मेरे रंग में रंगता जाता है

दरिया के पास रह कर भी सूखे रहे हम
एक क़तरा इश्क़ का समुंदर में बदलता जाता है

बड़ी हीं साफगोई से आपने सारी बात कह दी है। हर पंक्ति दिल को छूती है।
एक अच्छी रचना के लिये बधाई स्वीकारें।

Unknown का कहना है कि -

hello Ranju Mam, unbeatable poetry.......so nice of you......great thinking n deep desire.......in my way....you r a best woman in world.....as in a field of poetry....n hv a great sence of writing......may god bless u......woh kiya kehte hai....."Tussi great ho"

yours affectionately.....
Addy......

Sanjeet Tripathi का कहना है कि -

वाह क्या बात है!!!

Unknown का कहना है कि -

hello ranju,

have a nice day, apne jo ye line likhi hai " hare pedo par kayu najar aate hai sukhe se patte, dil mere aaj kis hadse se u ghabra jata hain." bahut achha lika hai apne. bahut dino bad ek dil ko chune wali kabita padeno ki mili hai. God bless u.

Sanju

पंकज का कहना है कि -

वो कहते हैं की सुधरना होगा तुम्हे इन हालात में
वही मेरी राह पर चल के बिगड़ता सा जाता है.

रंजना जी, आप की रचनाओं में भावों की प्रबलता है;
लेकिन आप मीटर पर या तो मेहनत नहीं करती या फिर
ध्यान ही नहीं देतीं; जिससे आप की रचनाओं का प्रभाव कम हो जाता है।
जो रचनाएँ बेहतरीन बन सकती हैं, वे केवल सुन्दर बनकर रह जाती हें।

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