मेरी तकदीर मेरी मंजिलों-सी एक भुलावा है,
करूँ क्या रास्तों का मैं, लकीरों का बुलावा है।
शरारे गाड़ कर बंजर किया है अपनी नज़रों को,
जलाए अपनी ही हस्ती, ज़िगर में इतना लावा है।
रिश्ते सोखती हैं ये, कदम तुम न इधर रखना,
मोहब्बत एक सेहरा है, दरिया तो दिखावा है।
जहाँ में मेरे ज़ज्बों की निगहबाँ बद्दुआएँ है,
न देंगी साथ तेरा वो, बुला लो ,मेरा दावा है।
कहें क्यों चाँदनी मुझसे-लपेटो जख्म पर यादें,
फ़लक का चाँद, तुमसा ही लगे मुझको छ्लावा है।
ऐ बेवा, जिंदगी मेरी ,छोड़ सजना-संवरना अब,
ये साँसों की सजी मेंहदी, बता किसका बढ़ावा है।
खुदा दो ख़्वाब अपने मैं, हूँ देता तेरी नींदों को,
'तन्हा' तेरी रातों को, यह मेरा एक चढ़ावा है।
कवयिता- विश्व दीपक 'तन्हा'
विशेष- किन्हीं कारणों से शनिवार के स्थाई कवियों तुषार जोशी एवम् आलोक शंकर की कविताएँ नहीं आ पाई हैं। आज का दिन रिक्त न रह जाय, इसलिए विश्व दीपक 'तन्हा' की एक ग़ज़ल प्रकाशित की जा रही है।
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18 कविताप्रेमियों का कहना है :
"मेरी तकदीर॰॰॰॰॰लकीरो का बुलावा है"
आग़ाज़ पढकर ही जान गया था, "जिगर का लावा" आज आखिर सामने आयेगा ही, और वही हुआ ।
बहुत ही गहरा अर्थ अपने मे समेटे यह रचना आपके दिल को सबके सामने कुछ अलग रुप में प्रस्तुत करती है, जहाँ सिर्फ रोष है, उनके लिये जो " हाथों मे नमक लिये फिरते है ।"
"ऐ बेवा, ज़िन्दगी मेरी, छोड सजना सँवरना अब॰॰॰॰" और
"खुदा दो अपने ख्वाब मै, हूँ देता तेरी नीन्दो को॰॰॰॰"
जैसे शे'रों मे आपकी गज़ल के प्राण बसे हैं ।
आपकी लेखनी को प्रणाम करता हूँ ।
[B](आज यही सोच रहा था कि आधा दिन बीत गया पर कुछ नया पढने को नही मिला, पर जैसे ही रचना सामने आयी, लगा, जैसे फिर से प्राणमय हो गया हूँ।)[/B]
आर्य मनु
बहुत मायूस गजल है।
ये जॊ मायुसियां हैं बहुत गहराई से निकलती हैं।
खूबसूरत गजल
सुनील डॊगरा जालिम
+91-98918-79501
सीधे दिल से निकली दिल को छूती ह आपकी यह रचना .....कुछ शेर बहुत अच्छे लगे
रिश्ते सोखती हैं ये, कदम तुम न इधर रखना,
मोहब्बत एक सेहरा है, दरिया तो दिखावा है।
कहें क्यों चाँदनी मुझसे-लपेटो जख्म पर यादें,
फ़लक का चाँद, तुमसा ही लगे मुझको छ्लावा है।
पढ़ के कुछ मेरा दिल ने भी कहा:)
मत झाँको नज़रो में यह छलक ना जाए कहीं
चेहरे पर हँसी का नक़ाब तो सिर्फ़ एक दिखावा है
थक चुकी है ज़िंदगी फिर भी चल रही है साँसे
यह ज़िंदगी सिर्फ़ जीने भर का एक छालवा है!!
"खुदा दो ख़्वाब अपने मैं, हूँ देता तेरी नींदों को,
'तन्हा' तेरी रातों को, यह मेरा एक चढ़ावा है।"
ye sher mujhe chhoo gayi..
kaviji kiske itna rosh, kyun ye tanhai? kyun jindagi se itni shikayat?
pata nehi, par meri padhi huyi aapki sabse achhi rachna yehi hai..
शब्द-शिल्पीजी,
आपकी कलात्मकता आपकी प्रत्येक रचना में झलकती है, ग़ज़ल तब और भी खूबसूरत लगती है जब कुछ अनकहा कहा गया हो -
शरारे गाड़ कर बंजर किया है अपनी नज़रों को,
जलाए अपनी ही हस्ती, ज़िगर में इतना लावा है।
बधाई!!!
शरारे गाड़ कर बंजर किया है अपनी नज़रों को,
जलाए अपनी ही हस्ती, ज़िगर में इतना लावा है।
बहुत बहुत खूब, तन्हा जी. आपकी इस गज़ल ने मन को छू लिया. हर शेर अपने आप में पूर्ण और बेहद खूबसूरत है. सिर्फ एक बात
रिश्ते सोखती हैं ये, कदम तुम न इधर रखना,
मोहब्बत एक सेहरा है, दरिया तो दिखावा है।
इस शेर में आपने ’सेहरा’ लिखा है जबकि इसे ’सहरा’ होना चाहिये था.
खूबसूरत और पुरकशिश गज़ल के लिये बधाई.
तन्हा जी,
सुन्दर गजल है दिल की गहराईयों से निकलती हुयी जिसे तन्हाई मे सुना जाये तो मजा दुगना हो जाये
तन्हा साहब, आप की यह गज़ल तो गज़ब ढा रही है।
रिश्ते सोखती हैं ये, कदम तुम न इधर रखना,
मोहब्बत एक सेहरा है, दरिया तो दिखावा है।
जज्बातों के साथ हकीकत की अच्छी लड़ाई दिखाई , आप ने।
खुदा दो ख़्वाब अपने मैं, हूँ देता तेरी नींदों को,
'तन्हा' तेरी रातों को, यह मेरा एक चढ़ावा है।
क्षमा करें तनहा जी पिछले कुछ दिनों से नेट-पीडित हूँ अत: टिप्पणी में विलंब हुआ है।
शरारे गाड़ कर बंजर किया है अपनी नज़रों को,
जलाए अपनी ही हस्ती, ज़िगर में इतना लावा है।
कहें क्यों चाँदनी मुझसे-लपेटो जख्म पर यादें,
फ़लक का चाँद, तुमसा ही लगे मुझको छ्लावा है।
ऐ बेवा, जिंदगी मेरी ,छोड़ सजना-संवरना अब,
ये साँसों की सजी मेंहदी, बता किसका बढ़ावा है।
बहुत गहरा लिखा है आपनें। बहुत बधाई आपको।
*** राजीव रंजन प्रसाद
कहें क्यों चाँदनी मुझसे-लपेटो जख्म पर यादें,
फ़लक का चाँद, तुमसा ही लगे मुझको छ्लावा है।
bahut sundar deepak ji.. aapki gahajal likhane me maharat si haasil ho gayi hai. kitni saadgi se dil ka dard utaar daala hai.. waah..
हृदय की गहराई में बसे ग़म से निकल पड़े शब्द बादे की दर्द युक्त है ....
मायूसी भरें इन शब्दो से एक प्रेमी के दिल के हाल का पता चलता है ...
जो मोहब्बत में ठुकराया जा चुका है ....
मोहब्बत की बेरूख़ी से धुखी उसके हृदय से रक्त की जगह लावा बह रहा है .....
...
ज़माने की इतनी बेरूख़ी से तंग नायक के मन में अब कोई उम्मीद नही है ....
अब तो जीना भी उसके लिए नागवार है ...
ऐसे भावों से प्रेम के कवि " तन्हा " जी ने निराश मन के लिए एक गीत भर दिया है ....
फ़लक का चाँद, तुमसा ही लगे मुझको छ्लावा है।
"करूँ क्या रास्तों का मैं, लकीरों का बुलावा है।"
"शरारे गाड़ कर बंजर किया है अपनी नज़रों को,
जलाए अपनी ही हस्ती, ज़िगर में इतना लावा है।" भई दीपक जी, नमन स्वीकारिये
"कहें क्यों चाँदनी मुझसे-लपेटो जख्म पर यादें,"
क्या बात है...
"खुदा दो ख़्वाब अपने मैं, हूँ देता तेरी नींदों को,
'तन्हा' तेरी रातों को, यह मेरा एक चढ़ावा है।"
पूरी गज़ल अद्भुत है...अपने भावों को बहुत अच्छे शब्द चुन चुन कर दिये हैं आपने
कविराज ने आपको "शब्द-शिल्पी" की बिल्कुल उपयुक्त उपमा दी है
बहुत बहुत आभार दीपक बाबू
सस्नेह
गौरव शुक्ल
करूँ क्या रास्तों का मैं, लकीरों का बुलावा है।
रिश्ते सोखती हैं ये, कदम तुम न इधर रखना,
मोहब्बत एक सेहरा है, दरिया तो दिखावा है।
कहें क्यों चाँदनी मुझसे-लपेटो जख्म पर यादें,
फ़लक का चाँद, तुमसा ही लगे मुझको छ्लावा है।
ऐ बेवा, जिंदगी मेरी ,छोड़ सजना-संवरना अब,
ये साँसों की सजी मेंहदी, बता किसका बढ़ावा है।
खुदा दो ख़्वाब अपने मैं, हूँ देता तेरी नींदों को,
'तन्हा' तेरी रातों को, यह मेरा एक चढ़ावा है।
gazal to mujhe bahut pasand hai...shar aache hain...shabd aache hain..vichar aache hain...keep writing
padhkar hamesha ki tarah hi chakit ki kaise itni ghari baaten itne achhe se kahe dete ho tum.
sabse achha laga pahla sher jise padhte hi wah wah kahe uthi main
aaj man udas tha bahut magar sone se pahile tumhe padh kar lagta hai ki ab raat sakun se so sakungi
deri se aane ke liye maafi hai
magar aa to jaaungi hi ye bhi wada hai
Bahut Khub VD bhai...
Hindi ke sath urdu par bhi aise hin pakad majbut karte jaiye
best of luck,
but i have one request
Aap urdu words ki meaning add kar diya karen, to bahut kripa hogi aapki.
paththar pe khichi koi lakir ho aisa lagta hai....kuch jaise nahi mumkin vahi karna ho ; aur hoga vahi vo yakin jalkta hai...quite passionate too....
अब तो आप मीटर भी नापने लगे हैं, लगभग सधी हुई ग़ज़ल है। एक काम और करें, अपनी इस ग़ज़ल को अपनी आवाज़ दे दें, आपकी दुआ अमर हो जायेगी।
कुछ शे'र तो लाजवाब हैं-
रिश्ते सोखती हैं ये, कदम तुम न इधर रखना,
मोहब्बत एक सेहरा है, दरिया तो दिखावा है।
कहें क्यों चाँदनी मुझसे-लपेटो जख्म पर यादें,
फ़लक का चाँद, तुमसा ही लगे मुझको छ्लावा है।
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