पापा! जब मैं छोटा था,
आप उतनी बाते नहीं करते थे,
जितनी “माँ” करती थी।
पापा!
कभी-कभी जब जिद्द करता था,
रोता था, चुप नहीं कराते थे,
“माँ” दौड़ी चली आती थी।
पापा!
आप हर छोटी-बड़ी बात पर,
लम्बा भाषण दिया करते थे
और “माँ”
गौद में उठाकर चूम लिया करती थी।
पापा!
मुझे लगता था,
“माँ” ने मुझे आपार स्नेह दिया,
आपने कुछ भी नहीं,
आप मुझसे प्यार नहीं करते थे।
मगर पापा!
आज जब जीवन की,
हर छोटी-बड़ी बाधाओं को,
आपके “वे लम्बे-लम्बे भाषण” हल कर देते है,
मैं प्यार की गहराई जान जाता हूँ
पापा!
अब मैं समझ गया हूँ,
आपके “भाषण” का महत्व भी,
”माँ” के प्यार से कमतर नहीं
मेरी सफ़लता के हर कदम पर,
आपकी आँखों से,
जो बरबस छलक जाता है,
बरसो से दबा, प्रेम हैं...
पापा!
अब क्या कहूँ,
आप समझ रहें है ना?
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51 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत अच्छी कविता लिखी है!
बहुत सुन्दर रचना जोशीजी,
दुनियाँ में माँ के अलावा यही एक ऐसा रिश्ता होता है जिसमें हर पिता चाहता है कि उसका बेटा उससे आगे बढ़े, और आगे बढ़ जाने पर उसे ईर्ष्या नहीं होती बाकी हर रिश्ते में कभी ना कभी इर्ष्या आ ही जाती है।
bahut khuub kavi raj !!!
aisa lagtaa hai sabhee PAPA ek se hote hein-
khuub likha aapne ''papa aap samjh rahen hein nah?'' mujhe pasand aaye-do teen baar padee-dil kee baat kah dee ho hai jaise.
Sabhee ko is din kee shubh kamnayen.
Alpana Verma
बहुत सुन्दर गिरि ! आपने इस रिश्ते की बारीकी को बहुत अच्छा समझा व पकड़ा । मुझे खुशी है कि इतनी जल्दी आप यह बात समझे । आमतौर पर यह तब समझ आती है जब व्यक्ति स्वयं पिता या माता बनता है ।
घुघूती बासूती
पापा पर लिखी इस शानदार कविता पर बधाई।
सचमुच हृदय स्पर्शी है
बधाई हो गिरिराज जी..पिता शब्द के मायनो को शब्दों में उतार दिया आपने...
पापा!
अब क्या कहूँ,
आप समझ रहें है ना?
bahut khub giri ji . pita ke mahatva ko kabhi bhi kam nahi kiya ja sakta.
ek bahut hi khubsoorat ewam hridaysparshi rachna ke liye apko badhai.
अक्सर ऐसा होता है, जब मुझे मेरे दिवंगत पापाजी याद आ जाते है ।
माना कि वे हमसे दूर रहते थे, हम सोचते कि वे हमें प्यार नही करते, पर अब समझ आता है कि वो हमें उनके पास क्यों नही आने देते थे । दरअसल उन्हे दमा था, और वे इसे हम तक नही पहुँचाना चाहते थे।
आज भी हमें लगता है जैसे कि वे टीबी अस्पताल मे भर्ती है, और हम यहाँ मम्मी के पास॰॰॰॰॰॰
आज पितृ दिवस पर आपकी कविता ने फिर से पापा को ज़िन्दा कर दिया ।
" आपरो घणे मान सूँ हाथ जोड्या परणाम"
आर्य मनु +91 98290 32491
इस कविता का अंत प्रभावित करता है। जैसे मधुमक्खी के छत्ते के नीचे के बिन्दु पर पूरा सान्द्र शहद चिपका होता है वैसे ही पिता के प्रति कवि की समस्त संवेदनाएँ अंतिम पंक्तियों में बद्ध हैं।
पिता को कविताओं में वि जगह नहीं मिली है, जिसके हक़दार यह है। आपने अच्छा विषय चुना है।
बहुत खूब गिरिराज जी,
पिता को समर्पित आपकी कविता सच में दिल को छू गई।बहुत बधाई।
bahut achhi rachna hai,dil ko chune wali.
पापा!
अब क्या कहूँ,
आप समझ रहें है ना?
bahut hi utkrisht panktiyan......dil ko chhoo gayi......itni shaandaar kavita likhne k liye aapko badhai.....
pita ...ye ek aisa rishta hai jiske prati hum apni bhaavnaayein pradarshit nahi karte bhale andar se bahut pyar aur samman bhara ho......par aapki is kavita ne wo saari baatein chand shabdo ein hi keh di jo ek bata apne pita se kehna chahta hai.......
aapko punah badhai.........ek bete ki taraf se.....
maan ki mamta ki tarah papa ka pyar bhii kam nahi hota. maine jana hai papa ka pyar kya hota hai ye baat or hai ki 13 saal pahle unka pyaar mujhse hamesha hamesha ke liye choot gaya per unki seekh jo mujhe dant lagti thi aaj bhii mere sath hai ............
bahut acchi kavita hai merii badhaai aapko
बहुत अच्छी कविता ,
हृदय स्पर्शी ....
पापा!
अब क्या कहूँ,
आप समझ रहें है ना?
बहुत सुन्दर ...
बधाई।
giraj ji ki yah kavita bahut hi sundar lagi. mata pita ke pyaar ko yadi pahle samajh liya jaye to aur bhi achha hoga. itni sundar abhivyakti ke liye bahut bahut badhayi.
बहुत ही सुंदर रचना आज के दिन को पूर्ण रूप से सार्थक करती हुई ...
पापा!
अब मैं समझ गया हूँ,
आपके “भाषण” का महत्व भी,
”माँ” के प्यार से कमतर नहीं
मेरी सफ़लता के हर कदम पर,
आपकी आँखों से,
जो बरबस छलक जाता है,
बरसो से दबा, प्रेम हैं...
सच में पापा का प्यार ऐसा ही होता है ...यही उपरी ग़ुस्सा बच्चे का जीवन संवार देता है ....बहुत ही सुंदर लिखा है अपने कविराज जी ...बधाई
कविराज कॊ प्रणाम।
गिरी जी,
आजकल आपने रुलाने का ठेका ले लिया है क्या ?
भई हम बहुत सेन्टीमन्टल हैं.. आंसू जल्दी निकल आते हैं... बहुत सुन्दर लिखा है आप ने.
कुम्हार जब चाक पर बर्तन बनाता है तो एक हाथ ढीला (मां) और एक हाथ से बर्तन को सहारा देते हुये आकार (पिता) देता है..
कही हुयी एक एक बार समय पर याद आती है... सुन्दर भाव रचित कविता के लिये साधुवाद
अच्छी रचना बहुत सही वक्त पर,
Bhai Joshi ji !
Bahut badhiya likha hai aapne....Papa aap samajh rahe hai na. JIs bat ko kahane ke liye hume sabd nahi mile use aapne bahut saralta se kah diya....aapka dhanyabad.......
बहुत बढ़िया!!
गिरिराज जी..
केवल इतना ही कहूँगा कि पिता के न होने की कमी को आपकी कविता की एक एक पंक्ति के साथ गहराई से महसूस किया है....मेरे आँसू आपकी कविता की सार्थकता का प्रमाण हैं।
*** राजीव रंजन प्रसाद
Its very nice poem..
Very deep thougths are there through simple words..
पिता के प्रति सुन्दर पक्तिंयॉं
भाई बहुत बहुत शुक्रिया, वरना हम से कुछ लो तो हमेशा गलतफहमी में ही रहते हैं लेकिन आपकी इस कविता में जो गूढ् रहस्य है शायद वो लोग समझ जाएं; सच कहूं मेरे पास शब्द नही है तारीफ के लिए. दुनिया मे माता और पिता की हर बात में कुछ ना कुछ छिपा होता है ये आपने बहुत ही सुन्दर कविता में बताया है.
भैया आप बहुत अच्छा लिखते है सबके पापा एसे ही होते है,मम्मी ज्यादा प्यार करती है लेकिन पापा हमे बहुत प्यार करते है,हमारा खयाल भी रखते है,
अक्षय चोटिया
Very beautiful....i remember my dad giving me lectures....:)i miss those now.
एक अत्यन्त सुन्दर , सहज , सरल रचना के लिये साधुवाद |
कविराज, बहुत अच्छी कविता है
बहुत सरलता से बहुत अच्छी बाते कह गये आप
बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
jiriraj ji.......
aapki kavita per ker bahuuuuuuuut hi achcha laga......
papa gher ki jhat hote hai....
lakin jhat per kabhi kisi ki nazer nahi jaati.......aur gher bina jhat ke bante bhi nahi hai....
aise maa ke liye tu na jane kitna kaha jata hai......lakin aapne papa ke mook prayaso ko sunder terah se kaha hai......vo til til kerke chuk jata hai ....lakin kisi ko ahesaas nahi hota ....
aapke ahesaaso ko pranam kerti hoo
archana
बहुत सुन्दर रचना जोशी जी
पापा पर लिखी इस शानदार कविता पर बधाई
वाह
सुन्दर कविता, पापा की जगह पिताजी शायद अधिक जँचता। :)
गहरी बात है.
बचपन में मुझे भी पापा खलनायक से कम नही लगते थे. वे घर मे होते थे तो हम जेल में होते थे.
पर आज लगता है, वो दौर भी सही ही था.. बस थोडे कम कडे होते तो अच्छा था. :)
गिरिराज मुझे बेहद अफ़सोस है कि इस बार मै लेट हो गई सभी लोग आपको टिप्पणीयाँ इतनी दे गये की मेरे लिये कुछ बच्चा ही नही...यहाँ तक की मेरा बेटा अक्षय भी मुझसे बाजी मार गया..मुझे लगता है की मै कोरे कागज़ पेर अपना नाम और शुभ-कामनाएं लिख दूँ तो चलेगा...:)
आपने बहुत सही लिखा है बचपन को जैसे की खूब जिया है...यही होता है माता-पिता की बातें जो बचपन में हमे भाषण लगती है बडे़ होने पर समझ आती है कि व्प कोरा भाषण नही होती,
मैने देखा था जब कभी पिताजी भाई को किसी बात पर डांटा करते थे(मुझे नही मै तो उनकी चहेती थी,ऐसा तो अकसर होता है लड़कियाँ पिता की लाड़ली होती है) माँ हमेशा आँचल में छुपा लिया करती थी,...
मगर आज बरबस उनकी आँखो से बहते आँसू ये बताते है की वो हमसे कितना प्यार करते थे...
मेरी एक कविता शायद आपने पढ़ी होगी...
अगर माता-पिता की परवरिश हो अच्छी,धे
तो कैसे बिगड़ेगी बच्चो की ये उम्र कच्ची ।
ढेर सारी शुभ-कामनाओं के साथ...
सुनीता(शानू)
पापा बनने के बाद पता चला पापा क्या होते है :)
Giriraj ji, bahut bahut dhanyawad mujhe kuchh kahne ka mauka dene ke liye....agar aap bura na samjhen to main apni sachchi pratikriya dena chahunga.
aapne sachmuch bahut achcha vishay chuna aur aapka soch sachmuch utkrisht hai lekin ek cheez ki mujhe kami mahsoos hui, wo hai prastuti ki...kavita gadya ke zyada kareeb hai...baat ko kahne ki shaili me kavita ke pravaah ki thodi si kami hai...baaki vichar par aapko badhai..
वाकई बहुत सुन्दर भाव है ।बधाई !
दिल को छू गई ? बहुत खूब !
bahut khoob likha hai dil ko chhoo gai aapki kavita
it's touch my soul
बहुत ही सुन्दर
अन्त:करण में उतरती हुई
man ko Cho liya aapki kavita ne
अति सुंदर, हृदय को स्पर्श करके आँखों से बाहर आई...
GIRI JI BEHAD SUNDAR RACHNA K LIYA ABHINANDAN AUR SADHUWAD.....SHAILENDRA DUBEY AKOLA MAHARASHTRA
Bahut sunder bhav hai kavita ka, kavita kya hriday ke udgar hain jo kavita ke madhyam se vyakt kiye hain aapne.asamay apne pita ko khone ke bad maine bhi kavita mai apna bhav pragat kiya thha.wo dard dil ko chhoota hai. Aapko dhanywad.archana garg
Bahut sunder bhav hai kavita ka, kavita kya hriday ke udgar hain jo kavita ke madhyam se vyakt kiye hain aapne.asamay apne pita ko khone ke bad maine bhi kavita mai apna bhav pragat kiya thha.wo dard dil ko chhoota hai. Aapko dhanywad.archana garg
Anupam Rachna
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