जैसाकि हमने वायदा किया था कि प्रतियोगिता में आई कविताओं में से १० कविताओं को आनेवाले शुक्रवारों और रिक्तवारों को हम हिन्द-युग्म के मुख्य-पृष्ठ पर प्रकाशित करेंगे। ४ कविताएँ तो परिणाम के साथ ही प्रकाशित हो चुकी हैं। आज नं॰ है पाँचवीं कविता 'वेदना' का जिसके रचयिता हैं कवि कुलवंत सिंह। हम कविता के साथ-साथ ज़ज़मेंट का पूरा विवरण प्रकाशित कर रहे हैं।
कविता- वेदना
अश्रुधार में हिमखंड को
आज पिघल जाने दो ।
अंतर्मन में दबी वेदना को
आज तरल हो जाने दो ।
सजल नयन कोरों से
अश्रु गाल ढुलकने दो ।
करुण क्रंदन से विषाद को
आज द्रवित हो जाने दो ।
विकल प्राण दुख से विह्वल
निरत व्यथा मिट जाने दो ।
मथ डालो इस तृष्णा को
पूर्ण गरल बह जाने दो ।
सूनी आहों मे सुस्मित
अभिलाषा को करवट लेने दो ।
निस्तब्ध व्यथित पतझड में
ऋतु बसंत छा जाने दो ।
नीरव निशा गहन तम में
स्वर्ण किरण खिल जाने दो ।
अंधकार मय जीवन पथ पर
ज्योति पुंज बिखर जाने दो ।
ह्रदय मरुस्थल जीवन को
आज हरित हो जाने दो ।
पादप बंजर पर उगने को
आज हल चल जाने दो ।
कुसुम कुंज खिल चुका बहुत
मधुकर को अब गाने दो ।
स्वत: भार झुक चुका बहुत
मकरंद मधु बन जाने दो ।
विरह तप्त इस गात पर
मेघ बिंदु बरसाने दो ।
उद्वेलित ह्रदय उच्छवासों को
सुधा मधुमय हो जाने दो ।
प्रेम सिंधु लेता हिलोरें
लहरों को उन्मुक्त उछलने दो ।
मादकता बिखर रही अनंत
प्रणय मिलन हो जाने दो ।
यौवन सरिता का रत्नाकर से
निसर्ग मिलन हो जाने दो ।
रति और मनसिज सा
पावन परिणय हो जाने दो ।
करुणा, विनय, माधुर्य का
निर्जर संगम हो जाने दो ।
जीवन सौंदर्य अंबर तक
बन उपवन महकाने दो ।
कवयिता- कवि कुलवंत सिंह
प्रथम चरण के अंक- ७॰९, ८॰५, ७, ८॰५, ५
औसत अंक- ७॰३८
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट के बाद कविता का स्थान- छठवाँ
द्वितीय चरण के अंक- ८, ६॰६५, ९, ७॰३८ (प्रथम चरण का औसत अंक)
औसत अंक- ७॰७५७५
दूसरे चरण के ज़ज़मेंट के बाद कविता का स्थान- पाचवाँ
अंतिम निर्णयकर्ता की टिप्पणी-
“वेदना” बहुत स्तरीय रचना है, बिम्बों को ले कर कवि से प्रभावित हुआ जा सकता है। जैसे:
“अश्रुधार में हिमखंड को, आज पिघल जाने दो”
“मथ डालो इस तृष्णा को, पूर्ण गरल बह जाने दो”
“निस्तब्ध व्यथित पतझड में, ऋतु बसंत छा जाने दो ।
भाषा पर भी कवि की पकड़ गहरी है। कविता मे गीत के भी तत्व हैं और रचना सुन्दरता से गढ़ी हुई भी है। जो बात कविता के मर्म पर प्रभाव डाल रही है वह है एक ही कथ्य की पुनरावृत्तियाँ।
कला पक्ष: ६/१०
भाव पक्ष: ६॰५/१०
कुल योग: १२॰५/२०
पुरस्कार- डॉ॰ कुमार विश्वास की ओर से उनकी काव्य-पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की एक स्वहस्ताक्षरित प्रति।
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
कवि कुलवंत जी की लेखन शैली बहुत ही सुंदर है...हाँ थौडी बोलचाल की भाषा ना होने से आम आदमी की समझ से परे है,कवि ने इतनी खूबसूरती से काव्य को सवांरा है की जब तक पूरी रचना पढी ना जाये मन कहीं भटकता नही...
किसी एक पक्तिं का जिक्र करना व्यर्थ है समूची रचना बहुत ही खूबसूरत है,
आपकी सफ़ल,सुंदर काव्य-शैली को सादर नमन...
सुनीता(शानू)
जॊड जॊड के इतना सुन्दर लिख डाला
क्या बतलाउँ कितना सुन्दर लिख डाला
कवि कुलवंत जी,
ये तो आपकी-मेरी बात एक जैसी हो गयी। लगता है खूब जमेगी, मुझे तो बडी पसंद आयी कविता।
आज आपको एक गोपनीय बात बताता हूँ,मैं पहले 'आँसू' नाम से कविता करता था, तब बिल्कुल ऐसे ही लिखता था।
'जब जब हँसने की कोशिश की, तब तब तूने मुझे रुलाया,
जब जब दिल ने रोना चाहा, आँसू ना बाहर आया।'
लगे रहिये मुझे तो बहुत संभावनाऐं लग रहीं है।
'खबरी'
9811852336
कुलवंत जी
बहुत ही अच्छी रचना है। कई पंक्तियाँ सीधे हृदय में उतर जारी हैं..
*** राजीव रंजन प्रसाद
आपकी कविताएँ सामयिक नहीं लगतीं। मुझे लगता है कि आपने अभी तक अपनी कोई मूल शैली नहीं विकसित की है। आपको कविता को जनसुलभ शब्दों के साथ जीना चाहिए। आपकी कविता में शिल्पगत विशेषताएँ तो हैं मगर कथ्य की पुनरावृत्ति वो भी बिना संगीत के बोर करती हैं। यह कविता ऐसी लगती है कि कवि किसी विषय को केन्द्र में रखकर बस पंक्तियाँ जोड़ने का अभ्यास कर रहा है। मगर आपमें ऊर्जा अपरिमित है। आशा है आप बेहतर से बेहतर कविताएँ लिखेंगे।
कुलवंत जी बहुत ही अच्छी रचना है।
सूनी आहों मे सुस्मित
अभिलाषा को करवट लेने दो ।
निस्तब्ध व्यथित पतझड में
ऋतु बसंत छा जाने दो ।
शब्दों का खेल अच्छा है।
bahut bahut khub ....
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