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कभी करीबी दोस्त के घर
सिर्फ उससे मिलने जाइए
अपने प्रश्न और चिंताएँ
सब कुछ पीछे छोड़ के जाइए
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जाते साथ ही उससे कहिये
सीधे तुझसे मिलने आया
इतनी याद आई तेरी
के फिर खुद को रोक न पाया
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वो खुशी से फूल जाएगा
अकेलापन भूल जाएगा
उसका खिला चेहरा देख
खुद को खिला-खिला पाइए
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कभी करीबी दोस्त के घर
सिर्फ उससे मिलने जाइए
तुषार जोशी, नागपुर
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
अच्छी लगी आपकी कविता ...बधाई
तुषार जी..
बहुत साधारण शब्दों में या कहें बिना लाग लपेट के गंभीर बात कहती है आपकी यह कविता।
बधाई आपको।
*** राजीव रंजन प्रसाद
बहुत सुंदर कविता है मगर मात्राओं की त्रुटि है,...
कुछ पक्तिंया विषेश पसंद आई है,जैसे...
जाते साथ ही उससे कहिये
सीधे तुझसे मिलने आया
इतनी याद आई तेरी
के फिर खुद को रोक ना पाया।
वो खुशी से फूल जाएगा
अकेलापन भूल जाएगा
उसका खिला चेहरा देख
खुद को खिला-खिला पाईये।
सुनीता(शानू)
सही और सुंदर बात है आपकी इस रचना में ...
जाते साथ ही उससे कहिये
सीधे तुझसे मिलने आया
इतनी याद आई तेरी
के फिर खुद को रोक न पाया
:):)
तुषारजी,
आपकी कविताओं में जो बात सबसे ज्यादा प्रभावित करती है, वह है सरलता! आप हमेशा ही साधारण से दिखने वाले शब्दों का प्रयोग इस अंदाज से करते हैं कि वे बहुत वजनी हो जाते है।
बहुत सुन्दर, बधाई!!!
बहुत ही सरल शब्दों मे अपने बहुत बड़ी बात कह डाली है ... बहुत अच्छे
छोटी, साधारण.. पर असर छोड़ने में कामयाब.. बहुत उमदा..
सम्भवतः इसे सरलतम कविता कहा जा सकता है। जो लोग कविता में भाव की जगह शब्द खोजते हों उन्हें तो निराशा होगी, लेकिन कविता के रसज्ञों को बिलकुल नहीं। कविता बहुत सुंदर सुझाव देती है-
उसका खिला चेहरा देख
खुद को खिला-खिला पाइए
तुषार जी..
आपकी कविता सुंदर सरल है, मगर मेरी आपेक्षाऐँ आप से बहुत अधिक हैँ... और हाँ बहुत दिनोँ से आपने किसी नये गीत को स्वर नही दिये... प्रतीक्षा मेँ हूँ
साधारण शब्दो मे असाधाराण बात कह गयी ये कविता.... आजकल हम इतने व्यस्त होते जा रहे हैं कि अपनो से मिलने के लिये वक्त ही नही मिलता हर किसी को एक ही शिकायत है..."वो तो हमे भूल ही गयें"
बहूत पसन्द आयी आपकी ये कविता :)
कभी करीबी दोस्त के घर
सिर्फ उससे मिलने जाइए.
प्रस्तुत रचना में "सिर्फ" शब्द का कितना सुन्दर और सशक्त प्रयोग किया है। क्या बात है।
बड़ी ही साफगोई से कितनी बड़ी बात कह गये। पहली नज़र में लगता नहीं है,
पर ज़रा गौ़र से सोचें तो लगता है कि शायद "अतिथि देवो भवः" अपनी पहचान खो रहा है और
आजकल कोई किसी के घर जाता है तो इस बात की सम्भावना बराबर बनी रहती है कि ज़रूर ही बन्दा किसी काम से आया होगा।
तुषार जी, बहुत खुशबू है आपकी इस कविता में।
बहुत सुंदर रचना। सचमुच, इतने सरल शब्दों में आपने महत्वहीन होते रिश्तों को बचाने और उन्हें नया अर्थ देने का रास्ता सुझाया है। बधाई।
वो खुशी से फूल जाएगा
अकेलापन भूल जाएगा
उसका खिला चेहरा देख
खुद को खिला-खिला पाइए
बहुत ही सरल अंदाज में acchhi कविता
alok singh "sahil"
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