रंग निखरा प्यार के अदब से
कोई रूपसी घुँघट में सिमटती रही
बरसे कहीं प्रीत से भरे बादल
भीगने की आस यहाँ दिल में पलती रही
सारे सपने खिले हैं आँखों में
फिर भी आँख क्यूँ कोई बरसती रही
मिले थे दो दिल प्यार की छाँव में
नयनों में एक प्यास क्यूँ तरसती रही
चाँद खेलता रहा बादलों संग लुका-छिपी
एक आग क्यूँ दिल में जलती-बुझती रही
छिप गयी परछाइयाँ रात के अंधेरे में
रोशनी दिल में डरती रही झरती रही
बरसी तो थी, रात भर चाँदनी की ओस
फिर भी मेरे रूह की ज़मीन क्यों तड़पती रही
ज़िंदगी ख़ाली हाथ, मौत ही पाएगी
सब कुछ समेटने की चाहा क्यूँ दिल को रही
अपने वज़ूद को तरसता रहा हर शख्स यहाँ
मुखौटे लगा के हर शख़्सियत जीती रही
देवता बनने की चाह में इंसान भी न बन पाए लोग
एक शैतानी फ़ितरत सबके दिलों को डसती रही
रास्ता वही है जो ले जाए मंज़िल तलक़
भटकन दिलो की यूँ ही हर बार राही को छलती रही
रात भर बरसी बूँदे मिल गयी ख़ाक में
भटकी हुई रात रोशनी को तरसती रही
लिखते रहे अल्फ़ाज़ रात भर नाम किसका
यह किसकी याद दिल में दबे पाँव चलती रही
रूह क़ैद है बदन में, बदन इस जहाँ में क़ैद है
ज़िंदगी इसी सिलसिले को ले कर आगे बढ़ती रही
क्यूँ चले आते हैं दिन क्यूँ चली आती हैं रातें
ऐसे कई सवालो का जवाब मेरी ज़िंदगी बुनती रही !!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
52 कविताप्रेमियों का कहना है :
रंजना जी
तारीफ़ के काबिल है ये रचना
हर शब्द, हर बात, हर एहसास इस तरह जुडे है जैसे ज़िन्दगी के साथ सांसे जुडी हों।
ये दुआ है इसी तरह लिखते रहिए।
"saare sapne khile aankho mai,
phir bhi aankh kyon barasti rahi"
har insaan ki zindagi mai aisa hi hota hai,,ranju ji ne ek baar phir dil ko choo lene waali hakikat bayaa ki hai....really touching :)
HI,Rajna zee
Apki kavita ke her shabad jindi ke un unchue pehluyo ko jhkjhor dete hai jisko her aadami chupaker rakhna chahata hai.This is really a jam of romance and sorrow.keep it up good work.
Mohtarma, ab shabd kam padne lage hain taarif ke liye!!!Fir bhi is pyaari kavita ke liye badhaiyan!!!
-Rana
Aadab Mohtrma
Bahut khoob,aap ki kalam se nikli har rachna jeevan ke anek rang liye rehti hai or har aadmi ke ehsas usmain simte se najar aate hai. Aisa lagta hai mano kisi ne unke jasbato ki murat ko jhanjhor dia ho.
Jindagi ke in tamam palo ko isee tarha sanjote raho.
Khuda Hafiz
@Ranju,
Thodaa gyaan kam hai iss liye pooch raha hun .. taaki theek se samajh sakoon ki aapne ye jo likhaa hai .. ye hai kyaa ? geet gazal, nazam .. .. kyaa likhaa hai ?
Yours faithfully
poem bahut hi khooboraat hai...
usk 2 panktiyan to sabse zada pasand aayi..
1. apne wajood se ....
2 bhagwaan banne ki..
ur poem ka end bhi bahut acha laga..
aisa lagat hai jaise aane maanav ke aahshayen aur unka darr samet diya ho....
bhoot khoob
रचना अच्छी है, कुछ पद बहुत अच्छे बन पडे हैं:
"छिप गयी परछाइयाँ रात के अंधेरे में
रोशनी दिल में डरती रही झरती रही"
"अपने वज़ूद को तरसता रहा हर शख्स यहाँ
मुखौटे लगा के हर शख़्सियत जीती रही"
"लिखते रहे अल्फ़ाज़ रात भर नाम किसका
यह किसकी याद दिल में दबे पाँव चलती रही"
बहुत बधाई आपको..
*** राजीव रंजन प्रसाद
Ranju ji.
Aap is ukti me parchayiya ke madhayam se har insaan ki is jiwan roopi nayiya ko darshayi hai bahut achha laga...iska dusra nam zindagi bhi kaha ja sakta hai.ye sach hai aise ho hota hai har ek ke jiwan me.
Again.
Thanks.
रंजू जी,आपकी इस कवीता के पंक्ति-युग्मो मे एक निरन्तर विरोधभास का खुबसूरत चित्रण है.पर इस बार मैं इसका मुख्य संदेश नही पकढ़ पाया.
very nice 1,
I readed it Twice N thought is really a heart Touchiee
Gr8 really oll D linezz makes an Impression.
ur Supbarb
---God Bless U---
-------[:)]------
Ji, Wah iss khubsurat rachna ke liye, aap ko bahut bahut bhadiya....
ek aam insan ke jivan ko bahut huu saccha chitran kiya hai aap ne....
iss rachan ko padte padte lagata hai ki, samne ek saccha aaina rakha hua hai...
ji wah....
Thnx 2 u to share ur, such beautiful thoughts with us...
Ranjana jee main kal se aap sabhi ko tippani nahi de pai hoon..kyunki mere pc mai thoree kkharabi aa gai hai...magar aaj apane aap ko rok nahi paai hoon..kya karoo aap logo ne itani sunder-sunder kavitayen padhawakar aadat kharab kar di hain...
aapaki rachana waqai kabile tareef hai...devnagari ke abhav mai jiyada nahi likh pa rahee hoon...
sunita(shanoo)
Ranjna App bhut asah likhti hai......Har ehsasa mein asiey lagta hai ki shbdon ki apkey saath khoob banti hai
Jasiey yeh line hai
Bhaye chand ney ansu to jmana chandni smja
Cheda jo rag labon sey bansuri ka
jamana ragini samja..........
hindi mein comments nahi dey paye kiunk merey pas font nahi hai........... Seema
रजंना जी,
सुन्दर शब्दों व भावों से रची रचना है आप की
"छिप गयी परछाइयाँ रात के अंधेरे में
रोशनी दिल में डरती रही झरती रही"
"लिखते रहे अल्फ़ाज़ रात भर नाम किसका
यह किसकी याद दिल में दबे पाँव चलती रही"
लिखते रहिये
महज एक शब्द - सुंदर।
बरसी तो थी, रात भर चाँदनी की ओस
फिर भी मेरे रूह की ज़मीन क्यों तड़पती रही
वैसे यहाँ जमीन का तरसना तो समझ आता है, तड़पना नहीं।
अल्फज ही नही है बहूत खूब
पडकर ए गज़ल आपकी खहीश एक दिल मै मचलती रही
कोशीश मै भी करू कुछ तमानये दिल ही मै पलती रही
बहूत कुछ सोचा था
पर कलम ही फिसलती रही
rasta wohi jo le jaye manzil talak ..
realy it means a lot ..
उजालो मे तो साथ देतें हैं सब,
हम अंधेरो मे भी आप के साथ है,
रूह का क्या भरोशा कहाँ छोड़ दे,
लेकिन हम तो जलेगे तेरे साथ मे.
हम नही हैं वो बादल ग्रज़तें है जो
नही बादल है हम कोई जल से भरे
अस्क बन कर रुका हूँ तेरे आँख मे,
साथ ही हूँ मैं तेरे अब ह्र हाल में!
एक बढ़िया रचना के लिए बधाई व धन्यवाद रंजना जी
padam pati:
wah kya bat hai. fir wahi ek sawal ki, akhir prena kahan se milti hai.sare sapne khile hain ankho ke, fir bhi ankh kyun barasti rahi...barsi to thee rat bher chandani ki os, fir bhi meri (mera nahi)rooh ki zamin kyon tadpati rahi....bhai kya dil ki gahraiyon me gayi hain aap...mai apko salam karta hoon
सबने इतना कह दिया क्या कहूं.. सच में बहुत सुंदर लिखा है..
रंजना जी,
bahot khub...
hum shayr to nahi jo shari kare...
aapki poem ko kaise bayaan kare....
jiski koi tulna nahi,
usko hum comment kya kare..
very very nice.... :)
धांसू आयटम
it was good
its nice
छिप गयी परछाइयाँ रात के अंधेरे में
रोशनी दिल में डरती रही झरती रही
बरसी तो थी, रात भर चाँदनी की ओस
फिर भी मेरे रूह की ज़मीन क्यों तड़पती रही
very pricking lines.....bas ek hi baat kahungi "aapka jawaab nahi"
रूह क़ैद है बदन में, बदन इस जहाँ में क़ैद है
ज़िंदगी इसी सिलसिले को ले कर आगे बढ़ती रही
फिक्र अच्छी है।
अच्छी रचना
"लिखते रहे अल्फ़ाज़ रात भर नाम किसका
यह किसकी याद दिल में दबे पाँव चलती रही"
रंजू जी
आपको बधाई ..
एक-एक शब्द श्रृंगार से अलंकृत है और पूरी कविता
एक खोज बन गई है जो किसी सागर में मिल जाने को अकुलाई है…उद्वेलित होकर अर्थ को ढूंढ रही है…
बहुत अच्छा!!!
Nice job,
Pl keep it up.
Congrats
with good wishes,
Ij Singh
ranu di ,
kisi pyase premi ki virah ko aapne shabdo me piroya hai.
bahut hi accha laga pad kar.
aap ki agali kavita ka mujhe intjar rahega .
Are bhai koi hamaari baat kaa bhi javaab dey detaa...
hum-khayaali to theek hai, kavitaa ki bhi baat ker letaa
@Ranju ... bataaiye... ye kavitaa/gazal ki khon si vidhaa hai ??? yaa iss ko generic naam "rachnaa" kah ker hee ham apana peeChaa Chudaa lein ???
yours faithfully
@green bird ji
लिख दी है हमने अपने दिल की बात
अब आप इसे गीत कहे, ग़ज़ल कहे
यदि छूती है यह आपके दिल को
तो इसे बस ज़िंदगी की एक नज़्म कहे !!
शुक्रिया दोस्तो आप सबका जो आपने इस को पढ़ा और पसंद किया
Shaileshji,
The bug you reported on Bhomiyo is now fixed. please check.
Ranjana ji,"Parchhaiyan" ek bahut hi khoobsurat rachna hai. Kavita ki kuchh panktiya bahut hi achhi likhi hain. Ishwar ki anukampa se jo bhi thoda bahut kavita ka gyaan hai uss ke adhaar per kah sakta hun ki haal hi mei padi kuchh utkrisht rachnao mei se ek hai. Ishwar apko aur achha likhne ki prerna de. Main yahi kaamna karta hun.
Apne wajud ko talsta raha her sakhas yaha
Wah kya bat kahi Ranjana ji ye duniya hi ek mukhaut hai ranjna jin
Mai aapse ek bat kahna chahunga yaha per ki " Kya jaruri hai ki jindagi jalwo me gujari jaye". Bahut acha likha aapne " itra ki barish aise barsi ki mati ki sodhi khusbu bhool gaye". SORRY MERA SOFTWARE HINDI ME KAM NHI KAR RAHA HAI ABHI.mERI TAMAM DUAYE AAPKE SATH HAI
वाह क्या कहना। इससे ज्यादा कुछ न कह पाऊँगा, क्योंकि मेरे पास शब्द हैं हीं नहीं।
its too nice .i don't have words to explain .
keep it up .
i wish you dear rajna je
aap ise Tera lekhte rahe or hum apke tariff or hos la badhte rahe .
from
sanjeev sharma (noida)
Zindagi ki asli UDAAAN abhi baake hai!!
Zindagi ka IMTIHAAN abhi baake hain!!
Abhi to naape hai MUTHI BHARR ZAMEEN!!!
AAGE ABHI SARA ASMAAN BAAKE HAI!!
from
sanjeev sharma (noida)
रंजना जी
सुन्दर रचना के लिये हार्दिक बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
सुन्दर रचनाके लिए बधाई रंजना जी.
"अपने वज़ूद को तरसता रहा हर शख्स यहाँ
मुखौटे लगा के हर शख़्सियत जीती रही"
लिखते रहिए जी.
रंजना जी,
आपकी जितनी भी कविताएँ युग्म पर प्रकाशित हैं, उनमें से इसे आपकी नैसर्गिक शैली में लिखी गई कविता मानी जा सकती है। वैसे कविता-लेखन धर्म का आपने अभी तक आशिंक रूप से ही पालन किया है। बिम्ब अद्वितीय होनी चाहिए। नज़रिया नया होना चाहिए, तभी रचना कालजयी होती है। मैं कोई इतना बड़ा कवि नहीं हूँ कि बहुत अधिक सलाह दे सकूँ, फ़िर भी किताबी बातें तो बता ही सकता हूँ।
जैसे आपने इसमें नए रूपक गूँथे हैं-
बरसी तो थी, रात भर चाँदनी की ओस
फिर भी मेरे रूह की ज़मीन क्यों तड़पती रही
बात सरल मगर तरीका अलग-
रूह क़ैद है बदन में, बदन इस जहाँ में क़ैद है
ज़िंदगी इसी सिलसिले को ले कर आगे बढ़ती रही
जब लिखें तो इस ओर ध्यान दें, मुझे उम्मीद है आप उत्तम रचनाएँ देंगी।
Achhi rachna hai...lekhika ne kuch behad kathor satya ko behad saral shabdon me kahne ki sundar koshish ki hai....!
रंजना जी,
मैने पिछली रचना पर आपसे कहा था कि आप इससे बहुत बेहतर लिख सकती हैं और आज देखने को भी मिल ही गया.
पढ़ने के बाद गाने का भी मन करता है.आप रोमंटिक कविताएं बहुत दिल से लिखती हैं, जिनमें मिलन के खूबसूरत सुर होते हैं और विरह की बात कम ही दिखाई पड़ती है। दिल को सुकून मिलता है क्योंकि मुझ जैसे लोग ऐसा लिख नहीं पाते।
कुछ पंक्तियाँ बहुत अच्छी बन पड़ी हैं।
बरसे कहीं प्रीत से भरे बादल
भीगने की आस यहाँ दिल में पलती रही
छिप गयी परछाइयाँ रात के अंधेरे में
रोशनी दिल में डरती रही झरती रही
क्यूँ चले आते हैं दिन क्यूँ चली आती हैं रातें
ऐसे कई सवालो का जवाब मेरी ज़िंदगी बुनती रही
आप युग्म पर एक खुशनुमा अहसास छोड़ जाती हैं। लिखती रहें।
छिप गयी परछाइयाँ रात के अंधेरे में
रोशनी दिल में डरती रही झरती रही
बहुत खूब!!!
आपकी रचनाएँ प्रेम की परिधी में ही सिमटी क्यों है? आप और भी बहुत कुछ लिख सकती है, एक बार प्रयास कीजिये।
सस्नेह,
गिरिराज जोशी "कविराज"
MUGAMBO KHUS NAHI HUA
SABD BHI THEEK HAI, TAAL BHI THEEK HAI, LEKIN LAY GAYAB HAI, MOHTARMA AAP YE TO BHOOL GAYEE KAVITA MAIN AAP KYA KAHNA CHAAH RAHI HAI, IS KAVITA KO GAUR SE PADIYEGA TO AAP KO SAMAJH MAIN AYEGA AAPNE MASAL, EENT PATHAHAR, MARBAL, SAB LAGAYA PAR DESIGN KARNA BHOOL GAYI AUR SAMJHIYE BINA DESIGN KE BANI BULDING KAISEE HOGI
AAP TO BEHTARIN KAVIYATRI HAI TO ASHA HAI HAMKO IS TARAH NIRASH NAHI KARENGI.
AUR HAMESHA YE DHYAN RAKHENGI KEE AAP KE KAVITA KEE AATMA NA MARE.
WAISE THODA BURA JAROOR LAGA HOGA
USKA BHI EK UPAY BATA DETA HOON
ANKH BAND KARKE EK GAHRI SAANS LO
KITCHEN MAIN JAO EK GILAS THANDA PANI PIYO, THANDE DIMAG SE ZYADA BEHTAR SOCH NIKALTI HAI.
AB IS KA YE MATLAB BHI NAHI AAP SIR MAIN ICE TRAY LEKAR KAVITA LIKHO.
thanks for send me this wonderful one mam .....sorry mam i type in english just coz i couldn't download all the contents of hindi font anyway such a nice poem thanks for bottom of my heart........
सबसे पहले बधाई।
एक बेहतरीन गज़ल।
कई श़ेर काबिले-तारीफ हैं।
अपने वज़ूद को तरसता रहा हर शख्स यहाँ
मुखौटे लगा के हर शख़्सियत जीती रही.
लिखते रहे अल्फ़ाज़ रात भर नाम किसका
यह किसकी याद दिल में दबे पाँव चलती रही
लेकिन शुरू के कुछ श़ेर मीटर में नहीं हैं।
Ranjana ji vastaw me aapki ye rachna ruh tak jati hai.....
such me aapne is zamane ki haqqeeqat ko laphjon me byan kar diya hai, ar zindagi is zamane me kis tarah ghut rahi hai ye aapke is pankti se jahir hota hai, jo mujhe bahut pasand aaya
"ruh kaid hai badan me badan is jahan me kaid hai
zindagi isi silsile ko lekar aage badhti rahi"
wakai bahut khub likha hai aapne.
mughe hindi typing nahi aati hai isliye maine hindi font me nahi likha iske liye mafi chahta hu.
Aankhen Barasne lagti hai in Nagmo ko padh ke...
सरहना के लिये शब्द कम है।
सुन्दर रचना
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)