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Monday, May 28, 2007

इंगितों के अर्थ


शब्द का संसार ही सब कुछ नहीं है
इस जलधि के पार भी अनमोल मोती
शब्दकोशों में कहीं अंकित न मिलता
आँखें किसी की मुस्करातीं हैं कि रोती।

अक्षर को यद्यपि ब्रह्म ही माना गया है
क्योंकि इससे सभ्यता विकसित हुई है
पर शब्द ही यदि व्यक्त कर पाते ह्रदय को
बिन भंगिमा के, भावना अभिव्यक्त होती।

अर्थ गहरे हैं बड़े इन इंगितों के
जान पातीं हैं जिन्हें बस पारखी आँखें
झूठ हो सकता है बेशक जाल शब्दों का
पर सदा भाषा बदन की सत्य ही होती।

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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

Admin का कहना है कि -

सचमुच अर्थ गहरे बड़े हैं.........

Anonymous का कहना है कि -

बिलकुल।

मैं सहमत हूँ आपसे, शब्द बनावटी भी हो सकते है।

Mohinder56 का कहना है कि -

कभी कभी खामोशी भी वह सब कह जाती है जिसे जुबान शब्दों के माध्यम से भी बयान नही कर सकती.. और दिल की बातें तो अक्सर होठों के बजाये आंखो से ही बयान होती हैं...

Anupama का कहना है कि -

shab hi takat hai shabd hi shakti hai abhivayakti hai....shabd pyar hai parivartan hai samarpan hai....shabdon ka koi or chor nahi....magar shabd tabhi anmol ho paate hain jab juban par se fisal kar sach ban jaaye......varna kuch bhi nahi..
shabdon ke us paar jo bhasha hoti hai vo vyakt nahi hai....aapki wo bhasha saaf samajh pa rahi hu...sundar likha hai

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सही लिखा है अपने अजय ..

अर्थ गहरे हैं बड़े इन इंगितों के
जान पातीं हैं जिन्हें बस पारखी आँखें

Gaurav Shukla का कहना है कि -

इंगितों के अर्थ गंभीर रूप से गहरे हैं अजय जी
बहुत अच्छा लिखा है

सस्नेह
गौरव

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' का कहना है कि -

भाई कविता तो बढिया है, भाव भी गहरे हैं पर कहीं कहीं शायद गतिशीलता की कमी दिखी है(वैसे ये मेरा व्यक्तिगत मत है)
हाँ भाव वही हैं जिनका मैं हमेशा समर्थन करता हूँ।

पंकज का कहना है कि -

झूठ हो सकता है बेशक जाल शब्दों का
पर सदा भाषा बदन की सत्य ही होती।

अजय जी, आप कि बात से मैं पूर्णतहः सहमत हूँ।
शरीर की भाषा की महिमा शब्दों की भाषा से कहीं बढ़कर है;
हाँ, शब्द शरीर की भाषा के बहुत ही सगे सम्बन्धी ज़रूर हैं।
आप ने बिल्कुल ही नये कोण पर ध्यान आकृष्ट किया है।
बधाई।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

अजय जी,
आप अपार संभावनाओं के साथ हिन्द-युग्म पधारे हैं। एक बार ओशो की एक पुस्तक में यही बातें गद्य रूप में पढ़ी था, आज उसमें लय देखकर मज़ा आया।

क्या बात मान्यवर!!

पर शब्द ही यदि व्यक्त कर पाते हृदय को
बिन भंगिमा के, भावना अभिव्यक्त होती।

विश्व दीपक का कहना है कि -

अगर आँखों से बात होती,तो इस दुनिया में कहीं भी युद्ध न होती। शब्दों ने हीं इस दुनिया को भ्रमित कर रखा है। आपने इस कविता के माध्यम से सच को आवाज दी है।
मित्र...कभी हमें भी टिपिया लिया करें। आपके नीचे हीं पड़ी है।

सुनीता शानू का कहना है कि -

अजय यादव जी,
क्या टिप्पणी दे हम आपने तो झकझोर कर रख दिया,..हर पक्तिं सच्चाई बयान कर रही है..सच ही तो है शब्दो से भावो का पता नही चल सकता,जब होंठ कुछ कहते है तो आँखे भी साथ-साथ बोलती है जैसे कि गुस्से में आँखे लाल हो जाती है शरीर में कम्पन हो जाता है...वैसे ही प्यार में आँखे निहारती है,चेहरे पर रौनक आ जाती है,और दुख में आँखे नम हो जाती है,चेहरा मुर्झा जाता है,
हर शब्द को अभिव्यक्त करने के लिये शारीरिक भगिंमाओं की प्रमुख भुमिका रहती है
मुझे सारी की सारी कविता पसंद आई...

अब बताईये क्या टिप्पणी दें आपको..बस इतना ही कहेंगे बहुत सुंदर रचना है,..इश्वर आपको हमेशा शक्ति से लिखते रहने की...
सुनीता(शानू)

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

अजय जी..
आपकी इस कविता ने आपकी क्षमताओं को उजागर कर दिया है। बहुत ही सुन्दरता से आपने अपनी बात कही है और गीत का शिल्प भी बरकरार रखा है।

"शब्द का संसार ही सब कुछ नहीं है
इस जलधि के पार भी अनमोल मोती"

"पर शब्द ही यदि व्यक्त कर पाते ह्रदय को
बिन भंगिमा के, भावना अभिव्यक्त होती।"

"झूठ हो सकता है बेशक जाल शब्दों का
पर सदा भाषा बदन की सत्य ही होती।"

बहुत ही सुन्दर रचना के लिये बधाई..

*** राजीव रंजन प्रसाद

Unknown का कहना है कि -

ajay,kevita bahut prebhavee hay.
shabd vakai benavtee ped jayege jeyada kuch kehne per.

अजय साहू का कहना है कि -

AAPKE KAVITA BANE LAGIS..BHAI..

Unknown का कहना है कि -

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