अभी मुझको नहीं टोको मुझे कुछ दूर जाना है।
कि रस्ता तुम नहीं रोको अभी मंज़िल को पाना है।।
बहुत एहसान हैं मुझ पर रहा इनकार कब मुझको,
हैं कुछ खाते पुराने भी उन्हें पहले चुकाना है।
तेरे हाथों में डोरी है चलेगी तेरी ही मर्ज़ी,
मगर देनी पड़गी ढील ग़र ऊँचा उड़ना है।
तुम्हें देखूँगा फुरसत से करूँगा प्यारी बातें भी,
अभी खामोश रहने दे कि आँखों में निशाना है।
बड़ी मुश्किल से मिलती है मेरी ही तरह बिल्कुल तू,
जहाँ हम दाल दें डेरा वही अपना ठिकाना है।
मेरी हमराज है तू ज़िन्दगी, हमदर्द भी है तू,
तुझे ऐ खूबसूरत दोस्त महबूबा बनाना है।
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
पंकज जी,
बड़े दिनों बाद एक बाकायदा सही मीटर के साथ एक दमदार गज़ल पढ़ने का आपने अवसर दिया। वाह वाह।
शेर भी ऐसे के मै गुनगुनाए बिन नहीं रह सकता। तेरे हाथों मे डोरी और बहुत एहसान है बहोत अच्छे लगे।
आज आपने मेरा दिन सुनहरा कर दिया। आपको दो चाँद और तीन तालाब मेरी तरफ से तोहफे में भेज रहा हूँ। आप की और कविताओं की राह देखते रहेंगे।
तुषार जोशी, नागपुर
बहुत खूब उत्तम दर्जे की गजल है जनाब.
..... मगर देनी पडेगी ढील गर ऊंचा उडाना है..
बहुत खूब वाह वाह!
क्या उम्दा शेर कहा है .... दिय खुश कर दिया आपने.....
प्रूफ की मिस्टेक.....
दिय को दिल पढें
बहुत एहसान हैं मुझ पर रहा इनकार कब मुझको,
हैं कुछ खाते पुराने भी उन्हें पहले चुकाना है।
तेरे हाथों में डोरी है चलेगी तेरी ही मर्ज़ी,
मगर देनी पड़गी ढील ग़र ऊँचा उड़ाना है।
बहुत खूबसूरत गजल। बधाई, पंकज जी।
पंकज जी,
आप बहुत सधा हुआ लिखते हैं इसमें कोई संदेह नहीं, इस बार तो भावों को जिस तरह आपनें गूँथा है, यह एक आदर्श गज़ल बन गयी है। बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं:
बहुत एहसान हैं मुझ पर रहा इनकार कब मुझको,
हैं कुछ खाते पुराने भी उन्हें पहले चुकाना है।
तेरे हाथों में डोरी है चलेगी तेरी ही मर्ज़ी,
मगर देनी पड़गी ढील ग़र ऊँचा उड़ाना है।
इस पंक्ति पर थोडा श्रम करें:
"बड़ी मुश्किल से मिलती है मेरी ही तरह बिल्कुल तू"
*** राजीव रंजन प्रसाद
पंक्ज जी,बहुत सुन्दर रचना है।भाव भी बहुत सुनदर है।
अभी मुझको नहीं टोको मुझे कुछ दूर जाना है।
कि रस्ता तुम नहीं रोको अभी मंज़िल को पाना है।।
बहुत खूबसूरत गजल है।
बहुत एहसान हैं मुझ पर रहा इनकार कब मुझको,
हैं कुछ खाते पुराने भी उन्हें पहले चुकाना है।
सुन्दर पंक्तियाँ हैं.......बधाई:)
गजल सुन्दर बन पडी है पंकज जी, अगर आपने एक बार और इस पर नजर डाली होती तो और भी उभर कर आ सकती थी....शायद समयाभाव के कारण आप ऐसा नही कर पाये...
बधायी
Pankaj ji yeh gazal kabile taareef hai....maza aa gaya pad kar.....gazal to waise bhi mera pasandida vishay hai aur us par aisi gazal sone par suhaga...
बहुत एहसान हैं मुझ पर रहा इनकार कब मुझको,
हैं कुछ खाते पुराने भी उन्हें पहले चुकाना है।
तुम्हें देखूँगा फुरसत से करूँगा प्यारी बातें भी,
अभी खामोश रहने दे कि आँखों में निशाना है।
WAH WAH....
वाह!
खूबसूरत ग़ज़ल, बधाई!!!
क्या बात है... वाह।
तुम्हें देखूँगा फुरसत से करूँगा प्यारी बातें भी,
अभी खामोश रहने दे कि आँखों में निशाना है।
पंकज जी मजा आ गया।
बहुत खूब लिखा है पंकज जी आपने। हर एक शेर खुद में सम्पूर्ण है। दिल बाग-बाग हो गया।
बधाई स्वीकारें।
very nice poem...a little sad yet since the lady has to wait till you reach your goal...thanks
@Pankaj
abb main do baatein kahoon ??
1. doosre sher ke doosre misre mein technical galatii ye hai ... kee "Khaataa" nahin chukaayaa jaataa. "khataa" is an account. account ko balance kiyaa jaataa hai aur dues ko chukayaa jaataa hai. so aap ye galatii sudhaar leejiye.
2. second last sher kaa pahlaa misraa...
is mein sentence hee wrong hai iss kaa koi meaning nahin bann rahaa. jahaan aap ye likhte hain ki "tu mere jaisee hai". poori line ko padein to ek misraa ek complete meaningful sentence hotaa hai so uss line kaa meaning nikalnaa chaahiye.
shabdoon kaa her fair kar iss bhi theek kar leejiye
ye saari nazam acchii bann padeygii agar aap thodaa saa shabdoon kaa her fer kar lein to.... filhaal to iss kee soorat bigadee huii hai.
chaliye aisaa hi acchaa likhne kee koshish jaaree rahe.
mangal kaamnaayein.
बहुत सुन्दर गज़ल है पंकज जी
"बहुत एहसान हैं मुझ पर रहा इनकार कब मुझको,
हैं कुछ खाते पुराने भी उन्हें पहले चुकाना है।"
बहुत खूब
सस्नेह
गौरव शुक्ल
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