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Tuesday, May 22, 2007

निर्लज्ज युवा हैं....


शान बघारें, शोर मचायें
चिल्ल-पों, चीखें चिल्लायें
तोडें फोडें, आग लगायें
हमसे आजादी का मतलब
पूछ समंदर डूब गया था
आशाओं का बरगद सूखा
हम पानी के वही बुलबुले
उगते हैं, फट फट जाते हैं
हम खजूर के गाछ सरीखे
गूंगे की आवाज सरीखे
बेमकसद बेगैरत बादल
अंधे की आँखों का काजल
सूरज को ढाँप रहा, काला धुवां हैं
निर्लज्ज युवा हैं....

हमें ढूंढो, मिलेंगे हम
कोनों में, किनारों में
अगर कुछ शर्म होगी तो
तुम्हें मुँह फेरना होगा
नयी पीढी हैं, बेची है
यही एक चीज तो हमनें
वही हम्माम के भीतर
वही हम्माम के बाहर
जो नंगापन हकीकत है
हमारी सीरत है....

बहुत ताकत है बाहों में
बदन कसरत से गांठा है
बाँहों पर उभरते माँस के गोले
मगर बस ठंडे ओले हैं
वो कमसिन बाँह में आये
यही बाहों का मक्सद है
नयन दो चार हो जायें,
निगाहों का मक्सद है
वही डिगरी है, जिसमें
तोड कुर्सी लूट खाना है
मकसद ज़िन्दगी का
एक आसां घर बसाना है
न पूछो, चुल्लुओं पानी है
फिर भी जी रहे क्यों हैं....

मगर तुम पाओगे हमको
जहाँ भी आग पाओगे
कभी दूकान लूटोगे अगर
या बस जलाओगे
हम ही तो भीड हैं
जो भेड हो कर बहती जाती है
हम ईमान के चौकीदार हैं
धर्म के सिक्युरिटी गार्ड हैं हम....

लेकिन उम्मीद न रखना
वृद्ध, तिरस्कृत से देश मेरे
तुम्हारी आवाज हम सुन नहीं पाते
नमक हराम, अहसान फरोश, नपुंसक हैं हम
तुम चीख चीख कर यह कहोगे
तो क्या हम जाग जायेंगे?
तुम डूबता जहाज हो
हम अमरीका भाग जायेंगे...

*** राजीव रंजन प्रसाद
20.05.2007

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28 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

hhmmm achii lagii kavitaa hameshaa ki tarah

रंजू भाटिया का कहना है कि -

राजीव जी हमेशा की तरह आपका लिखा दिल को छूता है ...और बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देता है ...

Tushar Joshi का कहना है कि -

राजीव जी,

बड़ा करारा प्रहार किया है। आपके शब्द तीर की तरह चूभ रहे हैं। ताकतवर भावना का प्रभावी प्रदर्शन किया है आपने।

तुम चीख चीख कर यह कहोगे
तो क्या हम जाग जायेंगे?
तुम डूबता जहाज हो
हम अमरीका भाग जायेंगे...

इन पंक्तियों ने तो जैसे आखरी घाव कर दिया। दिमाग की बत्ती जलाने वाली कविता लिखने के लिये आपको बधाई।

इस कविता को पथनाट्य के रूप में तैयार किया जा सकता है।

ऋषिकेश खोडके रुह का कहना है कि -

सुंदर रचना है , भीड का काला चेहरा दिखाय है आपने और साथ ही असहाय लोगो की पिडा भी |
एक गीत याद आत है ब्लेक फ्रायडे का
"
अरे रुक जा रे बंदे , अरे थम जा रे बंदे
की कुदरत हँस पडेगी,
समय की तेज आंधी , कहीं कबरीस्तां के रस्ते,
यूं ही लथपथ चलेगी |
"

मनमोहन का कहना है कि -

Acha likha hai, Rajiv Ji, Ek bhavuk abhivykati..

Manmohan

योगेश समदर्शी का कहना है कि -

इस कविता का विषय क्योंकी मेरा विषय है. ऐसा मैं सोचता हूं. यदि कविता कि कविताई की बात करू तो कविता में कवित्त तत्त्व भरपूर है, ओज भी है, प्रताडना भी, लानत भी है ग्लानी भी, कहने का जोश भी है क्या कहना है की समझ भी पूरी है. पर इस सबके बाद भी एक कमी है. कमी यह है कि कविता रास्ता नहीं सुझाती, भूल कहां किस स्तर पर हुई यह भी नहीं बताती. युवको को कोसने से क्या स्थितियां बदल सकती हैं. संस्कार कब कैसे बदले और बदल रहे है मेरे ख्याल से यह चिंतन का विषय है. खैर कविता संवाद को उभार पाने में समर्थ है. भाव और अभिव्यक्ति के तो राजीव जी धनी है ही, कविता के लिये उन्हें बधाई. पर मुझे लगता है कि पीढियों से चली आरही बुराई की लहर का दोषी केवल आजका युवा नहीं है. बल्कि आजका युवा ज्यादा जिम्मेदार है. इस विषय पर मेरी आजकी पोस्ट तैय्यार हो गई. आप से निवेदन है कि आप मेरी पोस्ट जरूर पढें और मुखर टिप्पणी भी दें मुझे अच्छा लगेगा....
http://ysamdarshi.blogspot.com/

Admin का कहना है कि -

लेकिन उम्मीद न रखना
वृद्ध, तिरस्कृत से देश मेरे
तुम्हारी आवाज हम सुन नहीं पाते
नमक हराम, अहसान फरोश, नपुंसक हैं हम
तुम चीख चीख कर यह कहोगे
तो क्या हम जाग जायेंगे?
तुम डूबता जहाज हो
हम अमरीका भाग जायेंगे...

सच्‍चाई है परन्‍तु अभी भी बड़ा वर्ग देश के सोंदर्यबोध की रक्षा के लि‍ए जागरूक है

Cyber Cop का कहना है कि -

bahut hi pyara likha hai aap ne............kuchh line to dil ko chhu gayee.............jaise tum dubta jahaj ho ham america bhag jaayenge.........good.....par mujhe lagta hai ki aap ek hi prakar ki shailli me likhe to jayada nikhar aayega.ya to tukant me ya..prayogwadi shailli me.kabhi kabhi ye dono hi chize aap ki is kavita me DOUBLE FRY lagti hai...(waise ye sirf mera suggestion hai) .......once again thanks...aur..ha..likhte rahiyega.......

Mohinder56 का कहना है कि -

राजीव जी
सुन्दर कविता है, वाजिव प्रश्न उठाये हैं आप ने अपनी कविता के माध्यम से.

कवि के प्रश्नो में ही समाधान छुपा होता है ऐसा मेरा मानना है. समदर्शी जी आप से समाधान भी मांग रहे हैं. मैं यह कहना चाहूंगा कि कोई भी भटकन स्थायी नही होती है.. युवा पीढी में बुद्धी की कमी नही है बस मार्ग दर्शन चाहिये जो इशारो ही इशारो में आपने अपनी कविता में दिया है इसलिये आपकी कविता पूर्ण है और प्रभावी है

आशीष "अंशुमाली" का कहना है कि -

बहुत तल्‍ख टिप्‍पणियां की हैं, आपने कविता में। आपकी पीड़ा समझ सकता हूं

Anonymous का कहना है कि -

wah kya poem h aapki sidha dil me hi ghusti h,kitna dard or aakrosh h aapki kavita me sayad har yuva isse kuch sabak le to desh ka bhala ho jaye

vinay kumar का कहना है कि -

yahi kavita vartaman ke yuva samaj ki manasik sthiti ko dikhati hai..

Anonymous का कहना है कि -

Rajeevji aachi kavita likhi hai aapne humapr prabheevi hai...kintu aapki is fatkaar se yuva jaagegaa?
iski bhi umeed nahi karte hum....
jo chal raha hai bas u hi chalta raheta hai....

Reetesh Gupta का कहना है कि -

बहुत ताकत है बाहों में
बदन कसरत से गांठा है
बाँहों पर उभरते माँस के गोले
मगर बस ठंडे ओले हैं
वो कमसिन बाँह में आये
यही बाहों का मक्सद है
नयन दो चार हो जायें,
निगाहों का मक्सद है
वही डिगरी है, जिसमें
तोड कुर्सी लूट खाना है
मकसद ज़िन्दगी का
एक आसां घर बसाना है
न पूछो, चुल्लुओं पानी है
फिर भी जी रहे क्यों हैं....


अच्छी लगी आपकी कविता....और स़च्चाई भी है ...बधाई

सुनीता शानू का कहना है कि -

निर्लज्ज युवा हैं....आपकी कविता हमेशा की तरह हट कर एक नया विषय! बहुत करारा प्रहार किया है आपने आज के युवा वर्ग पर।
लेकिन उम्मीद न रखना
वृद्ध, तिरस्कृत से देश मेरे
तुम्हारी आवाज हम सुन नहीं पाते
नमक हराम, अहसान फरोश, नपुंसक हैं हम
तुम चीख चीख कर यह कहोगे
तो क्या हम जाग जायेंगे?
तुम डूबता जहाज हो
हम अमरीका भाग जायेंगे...
यही होता आया है हमारे देश से जो भी योग्य युवा है विदेश जाकर भविष्य आजमाना चाहता है...थोड़ा सा पढ़लिख क्या लिये गाँव छोड़ शहर चल दिये,..वो गाँव जिसकी मिट्टी में पले बडे़ हुए जहाँ बचपन गुजारा जिसे एक योग्य अध्यापक या डॉक्टर की जरुरत है गाँव छोड़ कर शहर भागा जा रहा है
बहुत सुंदर सटिक रचना है ज्यादा नही लिख पाऊंगी।

सुनीता चोटिया(शानू)

Anonymous का कहना है कि -

rajiv bhaisahab , khub bahut khub kaha aapne
"hamse aazadi ka matlab
punch samundar dub gaya tha"
bahut acha lika hai aaj ka sach
jagate rahiya hamari aatma ko sayad kahin koi chingari peda ho.

A. Sharma

mamta का कहना है कि -

आपकी कविता आज के समाज का दर्पन दिखलाती है। बहुत अच्छी लिखी है।

Pramendra Pratap Singh का कहना है कि -

मार्मिक। दिल को छू‍ती हुई

गीता पंडित का कहना है कि -

राजीव जी !
आपका लिखा
हमेशा सोचने पर
मजबूर करता है ...

सुंदर रचना .....
सुंदर भाव-अभिव्यक्ति
आपको बधाई।

परन्‍तु
मेरे ख्याल से
आज का युवा
ज्यादा जिम्मेदार,
ज्यादा जागरूक है
मार्ग दर्शन चाहिये
बस....

संतोष कुमार पांडेय "प्रयागराजी" का कहना है कि -

कुछ कहने को बचा ही नही;
बहुत खूब।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

मंगलवार की दोनों कविताओं को व्यंग्य कविता की श्रेणी में रखा जा सकता है। आपकी बातें तो वास्तविक तो हैं ही लेकिन उपमाएँ नई हैं, और कविता कवि से इसी बात की उम्मीद रखती है।

हमसे आजादी का मतलब
पूछ समंदर डूब गया था

आशाओं का बरगद सूखा

हम खजूर के गाछ सरीखे

गाली जैसा-

जो नंगापन हकीकत है
हमारी सीरत है....

हाँ भाई, यह उद्देश्य तो सबका रहा है :)

वो कमसिन बाँह में आये
यही बाहों का मकसद है

अंग्रेज़ी शब्द का बेहतर प्रयोग

धर्म के सिक्युरिटी गार्ड हैं हम....

और अंत में आज के युवाओं की भागने की प्रवृत्ति का वर्णन , ( भारत को डूबता जहाज और युवाओं को चूहा बनाकर अच्छा लिखा है)-

तुम डूबता जहाज हो
हम अमरीका भाग जायेंगे...

विश्व दीपक का कहना है कि -

आज के युवा-जगत पर करारा प्रहार। सच्चाई बयां करती और ढेर सारे सवाल उठाती एक और कविता के लिए बधाई स्वीकारें।

SahityaShilpi का कहना है कि -

एक अच्छी रचना और सच के काफी करीब भी। पर क्या सारा दोष सिर्फ युवाओं का है, या कि क्या सारी युवा पीढ़ी ही भ्रष्ट है? कम से कम मुझे तो ऐसा नहीं लगता।

Anonymous का कहना है कि -

राजीवजी,

युवाओं पर जो प्रहार आपने इस कविता के माध्यम से किया है, मैं उससे पूर्ण रूप से सहमत नहीं हूँ। मैं मानता हूँ कि आज का युवा भटक रहा है, स्वयं के चिंतन में ही इतना खो गया है कि समाज और देश के लिये उसके पास समय ही नहीं रह गया है मगर इसके लिये युवाओं से ज्यादा तंत्र दोषी है, राजनेता दोषी है।

आपने अपने मनोभावों को बखूबी पिरोया है, इसके लिये बधाई स्वीकार करें।

सस्नेह,

गिरिराज जोशी "कविराज"

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

मित्रों...

हार्दिक प्रसन्नता है कि आप ने इस रचना को पसंद किया। कवि होने के नाते कलम की धार को पहचानना मैं आवश्यक मानता हूँ। रचना का मकसद जगाना/झकझोरना है युवाओं पर महज उंगली उठाना नहीं।

तुषार जी आपने इस रचना को पथनाट्य के रूप में तैयार करने का सुझाव दिया है। मैं शीघ्र ही आपको इस विषय पर पथनाट्य लिख कर प्रेषित करूंगा। यद्यपि मुझे प्रसन्नता होगी यदि आपकी आवाज में यह रचना युग्म पर आये।

योगेश जी, युवाओ की स्थिति हनुमान जी की तरह है जिन्हे अपनी शक्ति का अहसास नहीं है। उन्हें झकझोरना, जगाना आवश्यक है, चूंकि राष्ट्र का निर्माण न तो बच्चों का खेल है न बूढों के फलसफे। आपने कहा मैंने कविता में समाधान नहीं दिखाया, सत्य है। समाधान यही तो है कि हमारी पीढी की सोच सकारत्मक हो, जगें...हम और आप जिनके पास लेखनी की ताकत है उनहे आग लगाने का काम करते रहना है।

जालिम जी आप सत्य कह रहे हैं कि "अभी भी बड़ा वर्ग देश के सोंदर्यबोध की रक्षा के लि‍ए जागरूक है" उनको ही ताकत का अहसास कराना आवश्यक है।

अजय जी युवा पीढी भ्रष्ट नहीं है पथ-भ्रष्ट है और यह एक सत्य है। जैसा कि गीता जी नें कहा मार्गदर्शन आवश्यक है, किंतु सक्षम नेतृत्व नहीं दिखता। यद्यपि गिरिराज जी से मैं असहमत हूँ, व्यवस्था पर दबाव डालने, उसे बदलने का दायित्व भी युवाओं का ही है। इतिहास साक्षी है कि बडी बडी क्रांतियाँ युवाओं के संबल से हुई हैं। नेताओं की और तंत्र की क्या हस्ती यदि....

इस रचना के माध्यम से जो सार्थक चर्चा हुई है उसके लिये मैं सभी का धन्यवाद करता हूँ।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Gaurav Shukla का कहना है कि -

राजीव जी, कविता बहुत सुन्दर है,
समाज में सोते हुओं को हिला कर जगाने का जो काम आप अपनी कविताओं के माध्यम से कर रहे है वह निश्चित ही प्रशंसनीय है
सच कहा है आपने...

"अगर कुछ शर्म होगी तो
तुम्हें मुँह फेरना होगा
नयी पीढी हैं, बेची है
यही एक चीज तो हमनें"

यह पूरी बात ही स्वतःस्पष्ट है

"मगर तुम पाओगे हमको
जहाँ भी आग पाओगे
कभी दूकान लूटोगे अगर
या बस जलाओगे
हम ही तो भीड हैं
जो भेड हो कर बहती जाती है
हम ईमान के चौकीदार हैं
धर्म के सिक्युरिटी गार्ड हैं हम...."

जितने एकजुट युवा आपको यहाँ (दंगे,मारपीट,जुलूस,आगजनी वगैरह) दिख जायेंगे
किसी कायदे के काम के लिये शायद ही उपलब्ध हो पायेंगे
खैर
ऐसी कविताओं की आज के समाज और साहित्य को बहुत आवश्यकता है
निवेदन है कि ऐसी उपयोगी कवितायें लिखते रहिये
हार्दिक आभार

सस्नेह
गौरव शुक्ल

Unknown का कहना है कि -

हम पानी के वही बुलबुले
उगते हैं, फट फट जाते हैं
हम खजूर के गाछ सरीखे
गूंगे की आवाज सरीखे
राजीव जी!मेरे भीतर का युवा गूंगे की आवाज़ सरीखा देरी से बोल पाया,जो कहा आपने गलत नहीं था.फट फट जाता है भीतर,सहेज लूं तो सौर- गंगा मुट्ठी मे कर लूं

हम ही तो भीड हैं
जो भेड हो कर बहती जाती है

आगे वाली भेड़ के लिये रास्ता
चाहिये,भीड़ गड्ढे मे नहीं गिरेगी.
राजीव जी! बधाई, कड़वा कितना ही हो ,सच ऐसे ही कहा जाना चाहिये.

सस्नेह

प्रवीण

Pabbllooo.... का कहना है कि -

15 kaviyon ki tarifeb\n mil chuki hai ab
mere kahne k liyej\kuch nahi bach....
kavita hume hamara sach batati hai...
hum yuva hai
aur ab hume sudharana hoga

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