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Friday, January 12, 2007

लाश में इंसान


एक दीवार सी टूट के ढ़ह गयी
मेरे अन्दर,
आज
पलट के उसने मुझे देखा जब।
ख़यालों के समन्दर में
दायरे बनने लगे हैं,
नज़र का एक पत्थर उसने फेंका जब।
शंकाओं के खण्डहर साफ़ हो गये हैं।
मन के धरातल पर
सपनों के संगमरमरी ताजमहल बनने लगे हैं।
मेरी आह की गर्मी से
राह का कुहासा
पिघलने लगा है,
क्योंकर न उसकी मुहब्बत
मेरे दामन में गिरती?
मैंने बदल दी है, हाथ की रेखा जब।
कहता था न?
हर लाश में एक इंसान होता है,
मेरी नज़रों से तुमने मुझे देखा कब?


कवि- मनीष वंदेमातरम्

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आपके पास पुरस्कार और सम्मान पाने का सुनहरा अवसर!

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8 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

हर लाश में एक इंसान होता है,
मेरी नज़रों से तुमने मुझे देखा कब?

बहुत ही सुन्दर और यथार्थ रचना ।

विश्व दीपक का कहना है कि -

सटीक शब्दों द्वारा वर्णनातीत वर्णन किया है आपने।
ऐसा प्रतीत होता है मानो आपने अपने हृदय को हीं जीया है।

Anonymous का कहना है कि -

कहता था न?
हर लाश में एक इंसान होता है,
मेरी नज़रों से तुमने मुझे देखा कब?


वाह!!! मनिषजी आपकी कविता यथार्थ को चित्रित करती प्रतित होती है। कविता की अंतिम पंक्तियाँ बहुत पसन्द आयी।

Anonymous का कहना है कि -

एक दीवार सी टूट के ढ़ह गयी
मेरे अन्दर,
आज
पलट के उसने मुझे देखा जब।

Anonymous का कहना है कि -

शुरुआत दीवार टूटने से होती है, फ़िर समंदर में दायरे(इसकी जगह कोई और भी सटीक शब्द हो सकता था),खण्डहर टूटी हुई इमारत होती है, साफ़ होने पर भी तो वह खण्डहर ही रहेगा…शायद शंकाओं के लिये कोई और तुलना बेह्तर होती।
"कहता था न?
हर लाश में एक इंसान होता है,
मेरी नज़रों से तुमने मुझे देखा कब?" ये तीन पंक्तियाँ अकेली सुन्दर लगती हैं पर जहाँ बाकी की कविता अपने प्रिय का प्यार पाने की स्थिती और आशा दर्शाती हैं वहीं ये अंतिम वाली पुनः शिकायत के स्वर में आ जाती है… ये सिर्फ़ एक प्रतिक्रिया थी।
बाकी कविता में सटीक शब्द और भाव हैं विशेषकर अंतिम दो पंक्तियाँ काफ़ी असर करने वाली हैं। बधाई।

Anonymous का कहना है कि -

शुरुआत दीवार टूटने से होती है, फ़िर समंदर में दायरे(इसकी जगह कोई और भी सटीक शब्द हो सकता था),खण्डहर टूटी हुई इमारत होती है, साफ़ होने पर भी तो वह खण्डहर ही रहेगा…शायद शंकाओं के लिये कोई और तुलना बेह्तर होती।
"कहता था न?
हर लाश में एक इंसान होता है,
मेरी नज़रों से तुमने मुझे देखा कब?" ये तीन पंक्तियाँ अकेली सुन्दर लगती हैं पर जहाँ बाकी की कविता अपने प्रिय का प्यार पाने की स्थिति और आशा दर्शाती हैं वहीं ये अंतिम वाली पुनः शिकायत के स्वर में आ जाती है… ये सिर्फ़ एक प्रतिक्रिया थी।
बाकी कविता में सटीक शब्द और भाव हैं विशेषकर अंतिम दो पंक्तियाँ काफ़ी असर करने वाली हैं। बधाई।

Anonymous का कहना है कि -

मनीष जी से मिलना हुआ है जब मै उनसे मिला तो मुझे अनुमान नही था कि जिस व्‍यक्ति से मै मिल रहा हूँ, वह ऐसी सुन्‍दर कविता लिखता है। आपके द्वारा लिखी एक एक पक्तिं अपने आप मे आप की काव्‍य श्रेष्‍ठता की परिचायक है। बहुत सुन्‍दर रचा है।

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

"नज़र का एक पत्थर उसने फेंका" "हर लाश में एक इंसान होता है" "मेरी नज़रों से तुमने मुझे देखा कब" जैसे बिम्ब प्रभावित करते हैं|

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