चलते चलते जब लगे
अब बस अब नहीं
लगने लगे खो गये हैं
सवालों के जवाब कहीं
तब मुझे लिखते जाओ
मैं जवाब में लिखुंगा
कदापि डरना नहीं
निराशा की भीषण आँधी में
आसानी से फसना नहीं
खुद ही दीप बन जाओ
आगे आगे चलते रहो
सुबह जरूर होगी सोचो
निश्चय पूर्वक जलते रहो
मेरा जवाब तुम्हारे लिये
आशा की लहर लायेगा
मन का पंछी सकारात्मक
सुरों में गीत गायेगा
मन का आनंद गीत बनकर
आसमाँ को छुने लगे
तब मुझे लिखते जाओ
तुम्हारे खत मेरे जवाब
सब कुछ पहले से तय सा
सुख दुख और धूप छाँव में
अस्तित्व बुना है जैसा
सबकुछ पहले से तय हो मगर
फिर भी याद आये तो
तब मुझे लिखते जाओ
मेरा जवाब आयेगा ही
इस बात पर निश्चिंत रहो
और मुझे लिखते जाओ
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5 कविताप्रेमियों का कहना है :
अरे तुषार जी!
आपका ज़बाब पहले ही मिल गया, मुझे लिखने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी।
कविता पढ़ते ही वर्षों पुरानी निराशा भी आशा में तब्दील हो गयी।
ऐसी ही आशाजनक कविताओं की हमेशा उम्मीद रहती है आपसे।
सरल शब्दों में एक और उत्कृष्ठ रचना.
बधाई.
A Positive Poem, Excellent Creation.
तुषार, इतनी अपनी लगती है ना आपकी कविता! ये ही नही......सारी. आपका लिखा हुआ हर नगमा बहोत सरल और honest लगता है.
मेरी हिंदी के लिये माफ़ करना ...... !
जयश्री
tushar जी ekbar फ़िर एक behad aashawadi कविता.acchhi लगी.
badhai हो
alok singh "sahil"
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