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Tuesday, December 12, 2006

ज़ुल्फ और क्षणिकायें


ज़ुल्फ -१

उसनें कहा था हवाओं में खुश्बू भरी होगी
मुझसे दूर
मेरे ज़ुल्फों के खत पुरबा सुनायेगी तुम्हे
ये क्या कि ज़हर घुला है हवाओं में
एक तो जुदाई का मौसम
उसपर तुम्हारी तनहाई का दर्द हवाए कहती हैं मुझसे..

*** राजीव रंजन प्रसाद

ज़ुल्फ -२

तुमने ज़ुल्फें नहीं सवारी हैं
घटायें कहती हैं मुझसे
बेतरतीब चाँद भला सा नहीं लगता
बादलों में उलझा उलझा सा
हल्की सी बारिश से नहा कर निकला
उँघता, अनमना, डूबा सा
झटक कर ज़ुल्फें
खुद से खींच निकालो खुद को
सम्भालो खुद को..

*** राजीव रंजन प्रसाद

ज़ुल्फ -३

ज़ुल्फों के मौसम फिर कब आयेंगे?
बिलकुल भीगी ज़ुल्फें
एकदम से मेरे चेहरे पर झटक कर
चाँद छुपा लेती थी अपना ही
मैं चेहरे पर की फुहारों को मन की आँखों से छू कर
दिल के कानों से सूंघ कर
और रूह की गुदगुदी से सम्भालता खुद को
फिर तुम्हे ज़ुल्फों से खीच कर
हथेलियों में भर लिया करता था…
तुमने ज़ुल्फें मेरी आँखों में ठूंस दी हैं
अब तो पल महसूस भी न होंगे, गुजर जायेंगे
ज़ुल्फों के मौसम फिर कब आयेंगे..

*** राजीव रंजन प्रसाद

ज़ुल्फ -४

ज़ुल्फों के तार तार खींचो
उलझन उलझन को सुलझाओ
तुम खीझ उठो तो ज़ुल्फों को
मेरी बाहों में भर जाओ
मेरी उंगली से बज सितार
बुझ जायेंगे मन के अंगार
मैं उलझ उलझ सा जाउंगा
खो जाउंगा भीतर भीतर
हो जाउंगा गहरा सागर..

*** राजीव रंजन प्रसाद

ज़ुल्फ -५

बांध कर न रखा करो ज़ुल्फें अपनी
नदी पर का बाँध ढहता है
तबाही मचा देता है
एसा ही होता है
जब तुम
एकाएक झटकती हो खोल कर ज़ुल्फें..

*** राजीव रंजन प्रसाद


ज़ुल्फ -६

टूट गया
बिखर गया
सपनों की तरह मैं
कुचल गया
पिघल गया
मोम हो गया जैसे
फैल गया
अंतहीन समंदर की तरह मैं
खो गया
खामोश था
रात हो गया जैसे
और तार तार था
उलझी सी गुत्थी बन
ज़ुल्फ हो गया तेरी..

*** राजीव रंजन प्रसाद

ज़ुल्फ -७

मुर्दा चाँदनी का कफन
जला देता है
कफन तो कफन है
ज़ुल्फ ढांप दो..

*** राजीव रंजन प्रसाद
७.०१.१९९६

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4 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

राजीव जी जुल्फों कि यादों में जो क्षणिकाएं आपने गूंथी है। वास्तव मैं तारीफ के योग्य हैं। क्षणिकाओं पर मुझे लगता है आपकी खास समझ विकसित है। और भी क्षणिकाएं मैंने आपकी पढी हैं। कुशल शिल्प के लिये आपको बधाई।

Medha P का कहना है कि -

Wah,julfonke kya kahene ! par aakhri kshnika samajh nahi aayi.. dhap do yane kya?

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

राजीव भाई,

मज़ा आ गया, क्या लिखा है!
अद्‌भुत!
7 की 7 क्षणिकाएँ शानदार हैं।
मुझे तो सातवीं बहुत पसंद आई।

कफ़न तो कफन है
जुल्फ़ ढांप दो।


वाह भाई वाह!

Rama का कहना है कि -

डा. रमा द्विवेदीsaid...

राजीव जी,

क्या बात है... बहुत खूब लिखा ’जुल्फ़ों’ पर...अच्छी पकड़ है क्षणिकाओं पर.... हार्दिक बधाई....

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