( यह कविता साहित्यिक पत्रिका 'हंस' के १९९६ के किसी अंक में प्रकाशित हुयी थी )
वो कपड़ों की तरह उसे पहनती है
वो बिस्तर की तरह उसे बिछाता है।
वो खश्बू की तरह उसे सुघँती है
वो धुएँ की तरह उसे उड़ाता है।
वो बालों की तरह उसे सुलझाती है
वो जालों की तरह उसे उलझाता है।
वो हज़ार तरह की शिकायतें करती है
तो वो दो हज़ार तरह के ताने देता है।
पर सच्ची बात तो यह है कि
वो प्यार करना जानती है
और वो प्यार करना चाहता है।
कवि- अवनीश गौतम
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4 कविताप्रेमियों का कहना है :
very composed poem..i am impressed.
Congrats..
Rajeev Ranjan
Liked...
Ripudaman
truth.....
Shabad Nahi Hai Mere Paas ..
Avneesh Ji ..
Main To Aapki Rachnaye Waise Hi Bahut Pasand Karta Hoon Specially Prem Patra .. Par Ye Wali Meri All Time Favourate Ho Gayi Hai..
Shukriya Is Ke Liye ...
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