मृत्यु द्वार तक पहुँच चूके
अपने आप मे असहाय
आंतरिक आँधी के हिलोरों से
टकराकर चकनाचूर हो रहे
मेरे विचारों को
आपने अपने अन्दर समेटकर
मुझे
एवम् मेरे विचारो को
जीवनदान दिया है
अत: हे लेखनी !
और
घास-फूस के पूर्नउत्थान से बने
उसके हमसफ़र कागज़ !
आप दोनों को
"कविराज" का
शत् शत् नमन!
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
विश्वास जानीये आज पहली बार किसी को पेन तथा कागज का आभार मानते देख रहा हूँ. चलिये किसीने तो इनके महत्व का आदर किया.
बहुत ख़ूब, ये दोनों चीज़ें तो कवि के लिए भगवान के समान हैं। आपने बड़ी सुन्दरता के साथ भगवती सरस्वती तक पहुँचने के इन साधनों महिमा-मण्डन किया है।
गिरिराज जी,
अब हम ब्लॉगरों को कागज और कलम के अतिरिक्त 'इंतरनेट' का भी आभार व्यक्त करना होगा क्योंकि इसने हमें नया मंच दिया है। सुन्दर कृति है।
आपको शत्-शत् नमन्!!!
mera anurodh hai sabhi kavio se ki kripya kuch patriotic stuff bhi post karein.
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कविता शत शत नमन दिल को छु लेने वाली है.इसकेलिये आपको बधाई.
Hmm Abhi kuch fir bhi content sa dikha mujhe! Main koi standard nahi hun. Par is jagah ka kuch standard hai. Isliye aap ko aise comments bhejne ki gustakhi kar rahee hun.
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