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Monday, December 19, 2011

उफ! ये सोच


सोचते-सोचते


दिमाग की नसें फूल गई हैं


ये भूल गई हैं सोना


साथ ही भूल गई हैं


सोते हुए इस आदमी को


सपने दिखाना


रात-दिन बस एक काम


सोचना...सोचना...सोचना


विचार की सूखी-बंज़र धरती को


खोदकर पानी निकालने की कोशिश में


पता है


हर रोज़ तारीख़ें ही नहीं बदल रही


बहुत कुछ बदल रहा है....



कुछ पहचान वालों की


उधार बढ़ती जा रही है


और उधार देनेवालों की फेहरिस्त भी


कुछ पहचानवालों की


बेचैनी बढ़ गई है...


वो अनजान बन जाने के लिए


बेचैन हो उठे हैं....


और दिमाग है


कि कमबख़्त सोचता जा रहा है...



पेट की आग कुरेदती है...


तो भूख सोचती है..


पहचानवालों की उधार से


ये आग बुझ जाती है


तो फिर दिन सोचता है...


रात सोचती है


प्राइवेट नौकरी की मार सोचती है


बॉस की फटकार सोचती है..


बेगार सोचता है


फटी जेब का फटेहाल सोचता है



एक आम आदमी का दिमाग


इक्कसवीं सदीं में


बा-ख़ुदा !!!


क्या-क्या जंजाल सोचता है???



आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

38 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

मेरी आँखों के सभी ख्वाब प्यासे है अभी,
प्यार की कोई घटा घिर के आएगी कभी,
इन्तिज़ार और सही…

पास रहकर भी कोई दिल से क्यूँ दूर लगे,
मैं भी मजबूर सा हूँ,
वो मजबूर लगे,
अपना गम कहना सकू मेरी उलझन है यही,
इन्तिज़ार और सही…

ये उदासी ये थकन,
बंद कमरे की घुटन,
दिल में क्या होने लगा दर्द है या की चुभन,
आज भी मुझसे कहे आग सिने में दफ़न
इन्तिज़ार और सही…

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देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

बढ़िया कविता है। सिर्फ अंत में 21 वीं सदी के आगे 'भी' शब्द खल रहा है।

अभिषेक पाटनी का कहना है कि -

देवेन्द्र सर, वो 'भी' मुझे भी खल रहा था...दरअसल छलने की कोशिश की थी मैंने...लेकिन अब आपके कहने पर हटा दिया

आशुतोष का कहना है कि -

आपने प्राईवेट नौकरीपेशा नवयुवकोँ के विषय मेँ लिखा यह मुझे अच्छा लगा।

Rajesh Kumari का कहना है कि -

nav varsh ho ya purana dimaag to humesha sochta hai...bahut achcha likha hai gahri soch.

Rajesh Kumari का कहना है कि -

nav varsh ho ya purana dimaag to humesha sochta hai...bahut achcha likha hai gahri soch.

Naveen Mani Tripathi का कहना है कि -

विचार की सूखी-बंज़र धरती को

खोदकर पानी निकालने की कोशिश में

पता है…

हर रोज़ तारीख़ें ही नहीं बदल रही

बहुत कुछ बदल रहा है....

Vah Neeraj ji kya khoob likha hai ....badhai

कौशल किशोर का कहना है कि -

बहुत ही कर्णप्रिय कविता लिखी है आपने सर जी.......
बधाई.......
मेरे ब्लॉग पढने और जुड़ने के लिए इस लिंक पे क्लिक करें...
http://dilkikashmakash.blogspot.com/

vikram7 का कहना है कि -

पास रहकर भी कोई दिल से क्यूँ दूर लगे,
मैं भी मजबूर सा हूँ,
वो मजबूर लगे,
अपना गम कहना सकू मेरी उलझन है यही,
इन्तिज़ार और सही…
sundar rachana.
vikram7: हाय, टिप्पणी व्यथा बन गई ....

पूनम श्रीवास्तव का कहना है कि -

mujhe to bas vo andaaz nazar aa raha hai jo aapne likha hai .jiska har akxhar sach ka pratibimb hai.
bahut hikammal ka likha hai aapne
badhai----
poonam

Dr.NISHA MAHARANA का कहना है कि -

रात-दिन बस एक काम

सोचना...सोचना...सोचना.sahi bat .achchi prastuti.

Naveen Mani Tripathi का कहना है कि -

behatareen prstuti ...abhar.

Yogesh Sharma का कहना है कि -

sundar gahree soch....aapne bhee khub sochaa :))

Mamta Bajpai का कहना है कि -

आज की जिंदगी का सटीक चित्रण किया है बहुत बढ़िया .....
ओढ कर चादर दुखो की
चिंताओं के बोझ की
चल रहा है आदमी
और अंतस में सुलगती
दंभ की इस आग में
जल रहा आदमीं

Aruna Kapoor का कहना है कि -

आप की सोच बेहतरीन है!...इसे आपने सुन्दर शब्दों में ढाला है!...

avanti singh का कहना है कि -

bahut sundar bhaav aur utne hi sundar shbdon me dhana aap ne rachna ko bdhaai....

avanti singh का कहना है कि -

गौ वंश रक्षा मंच ,सब गौ प्रेमियों को सादर आमंत्रित करता है के अपने विचार /सुझाव/लेख/ कविताये मंच पर रक्खें ,मंच के सदस्य बने ,और मंच के लेखको में अपना नाम जोड़ कर मंच को गरिमा प्रदान करें ....गौ हम सब की माँ है , माँ के लिए एक जुट होना हमारा फ़र्ज़ है.....



http://gauvanshrakshamanch.blogspot.com/


yadi aap manch se judna chaahe to apni anumti is pate par bheje....

raadheji@gmail.com shukriya

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) का कहना है कि -

kya baat hai .........bahut gahri abhivykti..

Ramakant Singh का कहना है कि -

इक्कसवीं सदीं में …

बा-ख़ुदा !!!

क्या-क्या जंजाल सोचता है???
EXCELLENT LINES.
ADBHUT ABHIWYAKTI.PRANAM

virendra sharma का कहना है कि -

बहुत बढ़िया कविता है .

Unknown का कहना है कि -

अति सुंदर.....
ये सोच ही हैं,
जिसने जिंदगी को जीना सिखाया हैं ,
चाँद पे भी घर बनाने का सपना दिखाया हैं ,
फिर कैसे हम शिकवा करे इस से
इसी ने जिंदगी को जिंदगी बनाया हैं II

मुकेश कुमार तिवारी का कहना है कि -

प्रिय अभिषेक जी,

सोचने की इस प्रोसेस में सभि हिस्सों को कव्हर किया है आपने, बहुत अच्छा लगा आदमी को उसके होने के कुसूर की सजा के हर पहलु से रु-ब-रु कराति उई रचना अच्छी लगी।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

अभिषेक पाटनी का कहना है कि -

सभी को धन्यवाद!!!!

Rachana का कहना है कि -

पेट की आग कुरेदती है...
तो भूख सोचती है..
पहचानवालों की उधार से
ये आग बुझ जाती है
तो फिर दिन सोचता है...
रात सोचती है
प्राइवेट नौकरी की मार सोचती है
बॉस की फटकार सोचती है..
kamal ki soch hai bahut sunder bhavon se bhari kavita
badhai
rachana

virendra sharma का कहना है कि -

बहुत खूब सुन्दर शब्द चित्र आज की अभाव ग्रस्त ज़िन्दगी का .

Unknown का कहना है कि -

ati sundar..

Unknown का कहना है कि -

loved it..awssm

शोभा का कहना है कि -

bahut achha likha hai

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Rahul Solanki का कहना है कि -

एक आम आदमी की क्या क्या मजबूरिय होती है और वह किन किन परस्थितियो में रहकर भी अपने आप को स्थिर रखा कर अपने काम पर ध्यान केन्द्रित कर रखा है | Talented India News

Lillian Cruz का कहना है कि -

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