प्रमोद की कविताओं में लोकजीवन का हर रंग देखने को मिलता है। प्रमोद हमारी लोक परम्पराओं को जिस दृष्टिकोण और देशजता से चित्रित करते हैं, वह आज के युवा कवियों में ढूँढ़ पाना दुर्लभ ही है। जब वह गाँव और ग्राम्य-जीवन के बारे में लिख रहे होते हैं तो वह एक दार्शनिक होते हैं।
इनार का विवाह
ढोलकी की थाप और गीतों की धुन पर
झूमती-गाती चली जा रही थीं औरतें
इनार की ओर
कि बस गंगा माँ पैठ जाएँ इनार में
जैसे समा गई थीं जटा के भीतर
धूम-धाम से हो रहा था विवाह
कि भूल कर भी नहीं पीना चाहिए
कुँआर इनार का पानी
विवाह से पहले
नये लकड़ी के बने ‘कलभुत’* को
विधिवत लगाई गई हल्दी
पहनाया गया चकचक कोरा धोती,
और पल भर के लिए भी नहीं रुके गीत
गीत! विवाह के गीत
मटकोड़वा के गीत
चउकापुराई के गीत
गंगा माई के गीत
चली जा रही थी बारात
पर एक भी मर्द नहीं था बराती
जल-जीवन बचाने की जंग का
ये पूरा मोरचा टिका था
सिर्फ जननी के कंधों पर
कि पाताल फोड़, बस चली आएँ भगीरथी
जैसे उतर आती हैं कोख में
लकड़ी का ‘दुल्हा’ गोदी उठाए
आगे-आगे चली जा रही थीं श्यामल बुआ
मन ही मन कुछ बुदबुदाती
मानो जोड़ रही हों
दुनिया की सभी जलधाराओं का
आपस में नाभि-नाल।
चिर पुरातन चिर नवीन प्रकृति माँ से
मांगा जा रहा था वरदान
इनार की जनन शक्ति का
आदिम गीतों के अटूट स्वरों में
पूरे मन से हो रही थी प्रार्थना
कि कभी न चूके इनार का स्रोत
कभी न सूखे हमारे कंठ
हमेशा गीली रहे गौरैया की चोंच
माँ हरदम रहें मौजूद
आँखों की कोर से ईख की पोर तक में
दोनो हाथ जोड़े माताएँ टेर रहीं थीं गंगा माँ को
उनकी गीतों की गूँज टकरा रही थी
तमाम ग्रह-नक्षत्रों पर एक बूँद की तलाश में
जीवन खपा देने वाले वैज्ञानिकों की प्यास से
गीतों की गूँज दम देती थी
सहारा के रेगिस्तान में ओस चाटते बच्चों को।
गूंज भरोसा दे रही थी
तीसरे विश्वयुद्ध से सहमे नागरिकों को।
गीत पैठती जा रही थी
दुनिया भर की गगरियों और मटकों में
जो टिके थे
औरतों के माथे और कमर पर
गीतों के सामने टिकने की
भरपूर कोशिश कर रही थी प्यास
पर अपनी बेटियों के दर्द में बंधी
गंगा माँ
हमारे तमाम गुनाहों को माफ करती
धीरे-धीरे समाती जा रही थीं
ईनार में।
*लकड़ी से बना इनार का दुल्हा
-प्रमोद कुमार तिवारी (9868097199)
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18 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत सुन्दर रचना, सुन्दर अभिव्यक्ति
लाजवाब रचना ..बधाई
प्रमोद जी अभिवादन बहुत प्रभावी और सारगर्भित रचना --मन को छू गयी
स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभ कामनाएं
भ्रमर ५
भ्रमर की माधुरी
रस-रंग भ्रमर का
गीतों की गूँज दम देती थी
सहारा के रेगिस्तान में ओस चाटते बच्चों को।
गूंज भरोसा दे रही थी
तीसरे विश्वयुद्ध से सहमे नागरिकों को।
गीत पैठती जा रही थी
दुनिया भर की गगरियों और मटकों में
जो टिके थे
औरतों के माथे और कमर पर
Superb write up and truly i inspired from these lines.
अंतिम पंक्तियाँ अंतर्मन को छू गईं.
रमादान (रमजान ,रमझान )मुबारक ,क्रष्ण जन्म मुबारक .
,श्रेष्ठ रचना ,अच्छे बिम्ब समेटे हुए है रचना संस्कार और विश्वास के ,,माती की प्यास के .....
आदिम गीतों के अटूट स्वरों में
पूरे मन से हो रही थी प्रार्थना
कि कभी न चूके इनार का स्रोत
कभी न सूखे हमारे कंठ
हमेशा गीली रहे गौरैया की चोंच
माँ हरदम रहें मौजूद
आँखों की कोर से ईख की पोर तक में इतनी सशक्त रचनाएं यदा कदा ही पढने को मिलतीं हैं आंचलिकता के रस से संसिक्त ,बिम्बों से आप्लावित .प्रमोद कुमार तिवारी का रचना संसार ....आला है .....
जय अन्ना ,जय भारत . . रविवार, २१ अगस्त २०११
गाली गुफ्तार में सिद्धस्त तोते .......
http://veerubhai1947.blogspot.com/2011/08/blog-post_7845.html
Saturday, August 20, 2011
प्रधान मंत्री जी कह रहें हैं .....
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
गर्भावस्था और धुम्रपान! (Smoking in pregnancy linked to serious birth defects)
http://sb.samwaad.com/
रविवार, २१ अगस्त २०११
सरकारी "हाथ "डिसपोज़ेबिल दस्ताना ".
http://veerubhai1947.blogspot.com/
एकदम अलग रचना.
यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html
Ye ek lajawab kavita hai......aisi hi kuch aur kavitaye padhne k liye http://www.26rajendranagar.com/
samay par apne pakad ke liye jane jayenge kavi.
प्रशंशा को शब्द नहीं मेरे पास...
मन को गहरे छूती झकझोरती और भावुक करती, अद्वितीय रचना....
ysuljrv j;ve ks nfS Ovd/beo >
Wow ...its the first time i am seeing a full hindi blog
कितनी अदभुत है हमारी संस्कृति और परंपराएं नदी का भी मानवीकरण हो जाता है इतना ही नही ब्ाह भी हो जाता है ।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....बधाई
bahut achchi rachna itni prabhaavshali,aankho me chalchtra ki bhaanti chalti rahi.pravaahyukt.
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