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Saturday, July 23, 2011

औरत


चिंताओं को गुट्टक की तरह फेंक
बिटिया के साथ
इक्खट-दुक्खट खेलती है
अपनी इच्छाओं को
रोटियों में बेल
घर मे परोसती है स्वाद
पति, बेटे के बीच
मतभेदों को
कभी आँचल मे बाँधती
कभी धागे-धागे सुलझाती है
अपने मान को बुझा
गिलाफ मे कढ़ा फूल बन
सेज महकाती है
रिश्ते की ओढ़नी
पर, टाँकती है त्याग का गोटा
रात जब बुनती है
सभी की आँखों में सपने
उसके अंदर की
मासूम गुड़िया जागती है
उसको, उसके होने का
अहसास दिलाती है
औरत को मिलजाती है ऊर्जा
वो शुरू करती है
नया दिन
और
फिर होती है तैयार
अपने अलावा सभी के लिए जीने को।

कवयित्री- रचना श्रीवास्तव

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16 कविताप्रेमियों का कहना है :

सीमा स्‍मृति का कहना है कि -

रचना जी क्‍या खूब कहा है । एक औरत ही एक औरत के इस खूबसूरत एहसास को इस तरह समझ सकती है। एक अच्‍छी कविता के लिए बधाई ।

सहज साहित्य का कहना है कि -

औरत के बारे में बहुत अपनेपन से लिखी बहुत ही मार्मिक कविता है ।

Rachana का कहना है कि -

aap dono ka bahut bahut dhnyavad
rachana

Vinaykant Joshi का कहना है कि -

Rachnaji,
v. nice , thanks.
vinay

Asha Joglekar का कहना है कि -

वाह कितने खूबसूरती से औरत के मनोभावों को आपने उकेरा है । बहुत सुंदर ।

manu का कहना है कि -

इक्खट-दुक्खट खेलती है
अपनी इच्छाओं को
रोटियों में बेल
घर मे परोसती है स्वाद
...


bahut pyaaraa likihaa hai rachnaa ji....

aabhaar...

मेरा साहित्य का कहना है कि -

viny ji ,asha ji ,manu ji aapsabhi ka bahut bahut dhnyavad
rachana

preet arora का कहना है कि -

बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति .ऐसे ही लिखते रहें.शुभकामनाएँ.प्रीत अरोड़ा

ritu का कहना है कि -

sundar rachna

Indu Bala Singh का कहना है कि -

marvelous

Asha Kundra का कहना है कि -

Rachna ji hum sab ak he jamin par khade hai barso pahale mane bhe kavita sangrah likha "samay kee dahleej par ladkee' aub barso se khamosh ho timahari kavita padkar apni kavitaye yaad aa gai kabhe mile pustak to padiyega.

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) का कहना है कि -

bilkul sahi likha hai ........

aisi hi ek kavita maine bhi likhi hai "komal nari" .......

vishal का कहना है कि -

jisne na samjha astitava e naari,use bada nhi es duniya me koi bhikhari,kabhi bankar beti to kabhi ardhangini kabhi maa bankar hai ta umr hai humara sath nibhati aakhir kaise bhul jate hai wo badhwash ki devi ka hi rup hoti hai maa behen beti humari.........

caiyan का कहना है कि -

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