अब तक जितने घर देखे
सबमें बैठे डर देखे
घूस मिली हर कुरसी पर
जितने भी दफ़्तर देखे
जिसके सर पर छत ही न थी
उसने ही अम्बर देखे
वक्त का नजला उतरा तो
महलों पर छप्पर देखे
उनका रुतबा ऊँचा था
उड़ते वो बेपर देखे
जितने ही थे वो बाहर
उतने ही भीतर देखे
राधा कितना याद करे
‘श्याम’ कभी आकर देखे
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
17 कविताप्रेमियों का कहना है :
SHYAAM JEE KI GAZAL PADHWAANE KE LIYE BAHOT BAHOT SHUKRIYAA... INKI GAZALEN BAHOT PASAND AATI HAI... BAHOT HI KHUBSURAT GAZAL LIKHI HAI SAMSAAMAYEEK PE..
ARSH
जिसके सर पर छत ही न थी
उसने भी अम्बर देखे
या श्याम जी यूं कहे कि अम्बर ही देखे
और आखिरी शेर में तो गजब ही ढा दिया है आपने खुद को राधा बनाकर ,सूफी वाद की पराकाष्ठा |
मर्मस्पर्शी रचना लाजवाब
श्याम जी,
आज की हकीकत और दार्शनिकता को बयाँ करती हुई नज्म बहुत अच्छी लगी।
यह तो आपने खूब कहा है :-
(१) वक्त का नजला उतरा तो
महलों पर छप्पर देखे
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
श्याम जी,
बधाई! हम तो चकित हैं कि आपकी नज़र दुनिया की बारीकियां देख कर कैसे उसे कविता में ढाल देती है. बहुत खूब! लेकिन एक बात पर नीलम जी से सहमत होना पड़ेगा कि बिना छत वाला अम्बर नहीं देखेगा तो और क्या करेगा चाहे वह बेचारा देखना चाहे या नहीं, और कोई चारा भी तो नहीं उसके पास.
जी बिल्कुल ठीक है नीलम जीव अनाम भाई-टंकण की गलती
`उसने ही' है मूल में ठीक कर रहा हूं यहां भी
श्याम सखा श्याम
abhi-abhi bheji is tippni kee gunah gaar main hoon. clumsy hathon se galti ho gayi aur aisa ho gaya. maafi milegi? yahi fir bhej rahi hoon.
श्याम जी,
बधाई! मैं तो चकित हूँ कि कितनी खूबी और आसानी से आप दुनिया की बारीकियों को अपनी कविता में उतार देते हैं. बहुत खूब! लेकिन नीलम जी की तरह मेरा भी एक बात पर ध्यान गया कि बिन छत वाला बेचारा खाली अम्बर नहीं तो और क्या देखेगा क्योंकि इसके सिवा उसके पास और कोई चारा भी तो नहीं है चाहे वह चाहे या ना चाहे.
har panktiyon me ek gahraayi hai,bahut hi achhi rachna.....
अब तक जितने घर देखे
सबमें बैठे डर देखे
jawaab nahi
जितने ही थे वो बाहर
उतने ही भीतर देखे
कम शब्दों में अच्छी कोशिश है |
बढिया है |
अवनीश तिवारी
राधा कितना याद करे
‘श्याम’ कभी आकर देखे
shyam ko to hum bhi bahut yaad karte
hain, unko padhte hain.
राधा कितना याद करे
‘श्याम’ कभी आकर देखे
shyam ko to hum bhi bahut yaad karte
hain, unko padhte hain.
उनका रुतबा ऊँचा था
उड़ते वो बेपर देखे
राधा कितना याद करे
‘श्याम’ कभी आकर देखे
बहुत अच्छा लिखाहै
वक्त का नजला उतरातो
महलों पर छप्पर देखे
श्याम जी
आप की कलम और आप की ग़ज़ल..
कितने सटीक शेर हैं ...
बहुत खूब !!!!
bahut khoob likha. badhai.
सभी शेर पसंद आये श्याम जी,
एक की क्या कहूं,,,,
बधाई ,,,
कभी कहीं शायर देखे
उसमें कोई निडर देखे
लोकतंत्र के महापर्व में
महलों पर छ्प्पर देखे
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