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(1)
दिल्लगी उश्शाक से, लुत्फे-वसल माहिर का हो
शाइरी दादे-अवाम पर मशवरा शाइर का हो
(उश्शाक=आशिक , लुत्फे-वसल= वस्ल का लुत्फ़
दादे-अवाम= जनता की वाह-वाह)
(२)
साया-ऐ-यादों से निकली सामने दिलबर मिला
दामे-गिरफ्तारी-ऐ-ताज़ा हाल मुहाजिर का हो
(साया-ऐ-यादों=यादों के शरण से,
दामे-गिरफ्तारी-ऐ-ताज़ा = नए जाल में गिरफ्तारी
मुहाजिर=refugee)
(३)
मकतब ही था सो हम मिले, वो बेवफा, फुरकत हुई
मर्ज़ी अगर अल्लाह की क्यों फैसला काफिर का हो
(मकतब=मुक़द्दर में लिखा था,
फुरकत=जुदाई, काफिर= ungrateful, bewafaa)
(4)
यादे-जां ना ज़ख्मे-जां से मौत का आराम हो
ज़ख्म तीरे-दीद का हो बोसा-ऐ-नादिर का हो
(यादे-जां = दिलबर की याद, ज़ख्मे-जां = जान का ज़ख्म
तीरे-दीद=आंखों का तीर, बोसा-ऐ-नादिर = rare kiss)
(5)
क्या मज़ा सौ जीत का के जो मुकाबिल जैफ हो
हूँ शिकस्ते-मौत राज़ी वार अगर शातिर का हो
(मुकाबिल = सामने, जैफ = कमज़ोर
शिकस्ते-मौत = हार से हुई मौत)
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(१)
दिल्लगी करनी हो तो आशिक से मगर वस्ल का लुत्फ़ हो तो माहिर से हो |
वैसे ही, शाइरी पर वाह-वाह अवाम की हो मगर मशवरा लेना हो तो शाइर का हो
(२) यादों के शरण से क्या निकले के सामने दिलबर खड़ा था | मुहाजिर जो यादों में शरण लिए हुए था उसका हालये हुआ के नए जाल में फंस गया |
(3) वो खुदा की रहमत/इच्छा थी सो उसने हमें मिलाया, मगर दिलबर बेवफा निकला सो जुदा हो गए|
जब अल्लाह की मर्ज़ी थी के हम मिलें, तो फैसला लेने का हक उस बेवफा/काफिर क्यों है ?
(4) मेरी मौत आम लोगों की तरह जान/दिलबर की याद में, या जान के ज़ख्म से न हो | अगर मौत होनी हो तो वो ज़ख्म उसकी आंखों के तीर का हो और ऐसे बोसे का हो जो भुलाया नहीं जा सकता |
(5) उस सौ बार जीत का क्या मज़ा जो बाज़ी किसी कमज़ोर के साथ लड़ी हो | ऐसी जीत से ज्यादा मुझे उस हार की मौत मंज़ूर है जो किसी शातिर के वार से हुई हो
~RC
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19 कविताप्रेमियों का कहना है :
बेहतरीन, हिन्दी भाव भी समझाने के लिये धन्यवाद
अगर सरल शब्दों में कविता लिखते तो क्या बिगड़ जाता अर्थ समझाने की तकलीफ से बच जाते और वाह-वाह पाते ,लगता है ,शेखी -जुबान जानने की शेखी बघार रहे हो दोस्त -अनामिका
बहुत से नए शब्दों का ज्ञान हुआ
आप का धन्यवाद
सादर
रचना
अगर नए शब्द सीखने को मिलें और वो भी इस अंदाज में तो क्या बुरा है!!
बस तीसरे शेर के मिसरा-सानी की लंबाई थोड़ी ज्यादा लगी। ध्यान दीजिएगा।
भाव बेहतरीन हैं।
बधाई स्वीकारें।
बेहतरीन गजल का आपने संग दिया भावार्थ
रूपम कृष्णा रूम में हम सब देखो पार्थ
हम सब देखो पार्थ गजब सन्देश गजल में
शे'र गजब गम्भीर डूब गये चछु जल में
मिला नहीं कोई हर्फ मुझे यहाँ तनिक भी हलका
हृदय गदगद हुआ 'रूप' बेहतरीन गजल का
हिंदी आम भाषा है उसीमें लिखें तो ठीक है । उर्दू तो वैसे भी सुन्दर है अगरचे उसमें अरबी और फारसी के टोले टोले शब्द न मिलायें जायें । आप किस दौर की शायरी कर रहे हैं । ये तो नहीं जानता लेकिन से ज़रूर कहूंगा कि दुष्यंत के बाद ग़ज़ल का पूरा वातावरण बदल गया है । हम हिन्दुस्तानी कुछ भी शुद्ध रखना नहीं चाहते । अरे भाई हिंदी जैस्ी विश्व की दूसरे नंबर की बोली जाने वाली भाषा को छोड़कर कहां अरबी फारसी के पीछै लट्ठ लेकर पड़े हो नई पीढ़ी के बच्चों को मत सुना देना नहीं तो बिचारे कविता सुनना ही बंद कर देंगें ।
इस देश को तोड़ने के लिए पाकिस्तानी नहीं ,मायावती,जो अरबी फारशी विश्वविद्यालय या जामिया मिलिया के वि.सी. जो कानूनी सहायत की बात करते हैं,कल को कोई बलात्कार कर देगा तब भी जब तक कानून सजा न करेगा वि.सी साहिब उसे कानून सहायता देंगे और जिसका बलात्कार का शिकार विद्यार्थी [महिला [ को भी क्या वे देहली पुलिस जैसा कहेंगे,शायर साहिब आप भी हिन्दी के सेवादार की बात मान ही लें हिन्दोस्तानी में लिखे अगर हिन्दी अच्छी नहीं लगती तो एक और देश सेवक
मुझे तो आश्चर्य होता है कि आपका भाषा gyaan कितना विस्तृत है.धन्यवाद इतने नए शब्दों से परिचित कराने के लिए.
भावार्थ होने से आशानी हुई समझने में.
मुझे दूसरा और tisra शेर विशेष अच्छा लगा.
सबका बहुत शुक्रिया | टिपण्णी जो भी हो, आपने वक्त निकाला और टिपण्णी दी, इसका शुक्रिया |
ये कविता 'बनायी' नहीं है .. कविता बनाते नहीं है, अपने आप बनती जाती है ... atleast with me ....और इस ग़ज़ल(?) को इसी तरह से बनना था ... |
मैं कविता saral हिन्दी में भी लिखती हूँ, यहाँ तक के अंग्रेज़ी में भी लिखती हूँ | हर भाषा अपनी तरह से खूबसूरत होती है |
जिस कविता का जहाँ 'वक्त' आएगा, पोस्ट हो जायेगी !
:-)
RC
लोगों को कहने दीजिए। आपको जो लिखना है, लिखती रहिए।
हाँ, शिकस्ते-मौत का अर्थ मेरे ख़याल से तो मौत की हार होना चाहिए था। आपने दूसरे अर्थ में प्रयोग किया है। और कहीं 'ए' है (लुत्फे-वसल)और कहीं 'ऐ'(दामे-गिरफ्तारी-ऐ-ताज़ा)। मेरे ख़याल से 'ए' ही होना चाहिए।
मैं उर्दू ज़्यादा नहीं जानता। जो सही हो, कृपया बता दें।
Shukriya Gaurav.
-e- aur -ae- typing problem hai. Jab bhi 'e' type karti hoon, blogger -ae- banaa deta hai, kayi baar koshish ki, samajh mein nahin aata kaise karoon.
Koi sujhav ho to bataiye please.
भाषा कोई भी हो, भाव अच्छे होने चाहिए....इस बार भाव भी ख़ूब है....और सबसे अच्छी बात कि आप हिंदयुग्म के पाठकों को कई नए शब्द भी देती हैं....
मुझे तो लगता था कि उर्दू के इतने शब्द सीखने पर वाह-वाही मिलेगी पर कुछ "अनाम" बंधुओं ने विवाद बना दिया... Anonymous ji तो राजनीतिक रंग देने पर आ गये हैं.. अरे भई हिंदी के साथ अगर आपको उर्दू मुफ्त सीखने को मिल रही है तो सीखते क्यों नहीं? भाषा कोई भी हो जितनी सीखेंगे उतना अच्छा है...
हिंदी के सेवा करने वालों ने उर्दू के निदा फाजली की गज़ल अपने ब्लाग पर डाली है!! वाह...
आपने सही कहा वैसे.. ये कविता बच्चों के लिये नहीं... उन्हें सुनाई भी नहीं गई है.. उनकी कविताओं के लिये बाल-उद्यान(http://baaludyan.hindyugm.com/) का रूख करें...
रूपम जी.. बहुत बहुत धन्यवाद.. आप ऐसे ही लिखिये... बाराह इस्तेमाल करें.. ए और ऐ की गलती नहीं होगी...
बहुत सुंदर ग़ज़ल,साथ में सरल भाषा में भावार्थ देना जैसे सोने पे सुहागा,बड़ी खुशी होती है जब सभी तरह के कमेन्ट मिलते है,ये तो सच है की लोगों ने पढ़ा है हाँ जिसको जिस बात से एलर्जी है वो तो होनी ही है ,यहाँ सभी साहित्यिक सोच वाले इन्सांन नही आते,अब कोई उर्दू अरबी का विरोधी है तो वह हिन्दी का भी सुभचिन्तक नही है आपकी बहुआयामी सोच है तो आपने उसे दिखा भी दिया ,माना की दुष्यंत ने हिन्दी ग़ज़ल को नया आयाम दिया पर क्या हम ग़ालिब को भुला और उसको नकार सकते है ---बहुत सुंदर लिखा साहित्यिक लिखा धन्यवाद
बेहतरीन भाव के साथ लिखा आपने.निसंदेह बेहतरीन.
आलोक सिंह "साहिल"
good stuff...RC
मित्रो- आप सभी के कथन पढ़ मेरा दिल भी है कुछ कहने को ,बाल्मिक रामायण आज कौन पढता है ,तुलसी रामायण सरे विश्व में पढ़ी जाती है,रामायण सीरियल ने रामायण को जनमानस तक पहुंचाया महाभारत की विस्तृत कथा तो आमजन तक केवल सीरियल के द्वारा ही पहुँची ,मैंने हरयान्वी बोली में उपन्यास लिखा मगर वह जब हिन्दी लिप्यांतर के साथ 'कहाँ से कहाँ तक 'नाम से हिंद पाकेट बुक्स द्वारा छापा तो ज्यादा लोफों ने पढा 'आर सी ने बहुत सुंदर कविता लिखी मगर अर्थ न लिखतीं तो कितने पढ़ समझ पाते , खुसरो -कबीर मीरां कालिदास से ज्यादा पढ़े जाते है अत: सरल सहज भाषा में ही रचना ग्राह्य होती है ,वैसे यह लेखक का अपना अधिकार है की वह क्या और किस भाषा में लिखना चाहता है 'विनम्रता सहित श्याम सखा `श्याम
'ऐ' नहीं बल्कि 'ए' होता. आगे से ध्यान रखें। ब्लॉगर में लिखते वक्त जब 'ए' की जगह 'ऐ' आये तो backspace वाली 'की' दबाइए, आपको ढेरो सम्भावित विकल्प दिखेंगे। मैंने करके देखा 'ae' द्वारा 'ए' आ रहा है।
मैं सरल शब्दों का समर्थक हूँ। श्याम जी ठीक कहते हैं, यह बहुत हद तक लेखक के ऊपर निर्भर करता है।
eS igyh ckj vki dh osclkbV ij vk;k gwa] vR;Ur lqUnj gh yxkA ;g eap u;s o iqjkus lHkh izdkj ds ys[kdksa ds rFkk ikBdks ds gsrq mRre gSaAA
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e-mail- sachin_sri@sify.com
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