क्षणिकाएँ
१ मुहासे
मुहासे फोड़ा नहीं करते-
शायद इसीलिए
रिश्ते पिस जाएँ तो
जिंदगी की सूरत बिगड़ जाती है।
२ इश्क़
अपनी जमीं पलट कर
तुम्हारा आसमां बना दिया-
देखो
मेरे अरमानों के टूटे काँच
तुम्हारे लिए तारे बन बैठे हैं।
उफ्फ यह इश्क भी!
३ तुम्हारा होना
कल तुम थी ,
तो
मेरे सपनों में
पूरी दुनिया आती थी
पर तुम नहीं
आज तुम नहीं
तो पूरी दुनिया
तुममें सिमटती जाती है
अब असमंजस में हूँ-
तुम तब थी
या अब हो?
४ मधुमेह
आज सुबह ही
डेस्क के नीचे
तुम्हारी हंसी बिखरी मिली
और देखो!
शाम को मर गया मैं
तुम चली गयी
पर जानती तो थी
की
मधुमेह है मुझे !
५ सूरज
कल तुम्हारी दुनिया में
चाँद जला था ना?
तुमने सूरज बुझाया था
पर
एक दुनिया जलाई तो थी,
रोशनी वहीं की थी ......
६ जरुरत
जब से
खुद के टुकडों को गूंथा है ,
गुमशुदा हूँ मैं
शायद
अब मैं भी किसी की जरूरत हूँ।
७ चाँद को एक्सटेंशन
आसमान का चाँद -
एक्सटेंशन मिल गया है उसे,
रिटायर न हुआ।
जानते हो क्यों?
तुम्हारे चाँद को
आसमान बदलना गंवारा न था ।
त्रिवेनियाँ
१ हों आज से जुदा-जुदा दोनों के रास्ते,
कहकर चले गए वो मंजिल समेटकर।
जायेंगे वो कहाँ , दुनिया तो गोल है ॥
२ पहले तो एक अदा से पत्थर बना दिया,
फिर दिल के उसने, करोडों टुकडे कर दिए ।
एक और सोमनाथ! कहाँ गए बुत-परस्त ?
३ आंसू उबालकर आंखों में डालना,
दिलजलों के देश में यह आम बात है।
देखो आसमान भी है जल गया यहाँ॥
-विश्व दीपक 'तन्हा'
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
कल तुम थी ,
तो
मेरे सपनों में
पूरी दुनिया आती थी
पर तुम नहीं
आज तुम नहीं
तो पूरी दुनिया
तुममें सिमटती जाती है
अब असमंजस में हूँ-
तुम तब थी
या अब हो?
" kya khun, subd nahee miltey???? taira na hona na janey kyun hona bhee hai, taira hona, na janey kyun khona bhee hai" very beautifully written, tumse duniya hai ya dyuniya se tum????? lajwab.....very well composed.
Regards
rishte aur muhanse? kya duur ki kaudi hei. rishton ka hee naash kar diya, muhanse se barabari kar ke rishtey me bhi ghrina bhar di. kahin ki eent kahin ka roda! jara to soch samajh kar likha karo. muhanse to gande hain hi ,rishte bhi gande dikhaye ab sahitya bi ganda kar rahey hein.
तनहा जी,
क्षणिका विधा को खूब साधा है आपने। आपके बिम्बों ने भी आकर्षित किया है मसलन मुहासे से ज़िन्दगी की सूरत बिगडना, जमी पलट कर आसमा बनाना, मधुमेह होना, टुकडों को गूँथना या कि चाँद को एक्सटेंशन... शिल्प और भाव दोनों ही प्रशंसनीय।
त्रिवेणियों की बात करने से पूर्व अपनी पसंदीदा उद्धरित कर रहा हूँ:
पहले तो एक अदा से पत्थर बना दिया,
फिर दिल के उसने, करोडों टुकडे कर दिए ।
एक और सोमनाथ! कहाँ गए बुत-परस्त ?
इस विधा को साधना कठिन है हर पंक्ति के साथ आपने न्याय किया है और कहीं भी बोझिल नहीं होने दिया..
*** राजीव रंजन प्रसाद
वाह तृप्त कर दिया आपने, सुंदर क्षणिकाएँ और त्रिवेनियाँ भी
मैं इन्हें क्षणिकायें क़हूँ
या कहूँ स्वर्ण कंणिकायें
सागर का मोती कहूँ
या सागर समेटे मंणिकायें
तनहा जी
बहुत अच्छी क्षणिकाएँ लिखी है . अपनी जमीं पलट कर
तुम्हारा आसमां बना दिया-
देखो
मेरे अरमानों के टूटे काँच
तुम्हारे लिए तारे बन बैठे हैं।
उफ्फ यह इश्क भी!
बधाई
बहुत सुन्दर लिखी है दीपक आपने क्षणिकाएँ भी और त्रिवेनियाँ भी ...यह बहुत अच्छी लगी
तुम्हारा होना
अब असमंजस में हूँ-
तुम तब थी
या अब हो?
और ....................
पहले तो एक अदा से पत्थर बना दिया,
फिर दिल के उसने, करोडों टुकडे कर दिए ।
एक और सोमनाथ! कहाँ गए बुत-परस्त ?
बहुत अच्छे से भावों को पीरों लिया है आपने..बधाई
तन्हा जी क्या खूब लिखते हैं आप भी,मजा आ गया.
लगभग सभी क्षणिकाएँ प्रभावकारी रहीं.
शुभकामनाओं समेत
आलोक सिंह "साहिल"
एक साथ इतना खजाना!
किस किस को चुनूं और क्या कहूं?
अपनी जमीं पलट कर
तुम्हारा आसमां बना दिया-
देखो
मेरे अरमानों के टूटे काँच
तुम्हारे लिए तारे बन बैठे हैं।
उफ्फ यह इश्क भी!
हों आज से जुदा-जुदा दोनों के रास्ते,
कहकर चले गए वो मंजिल समेटकर।
जायेंगे वो कहाँ , दुनिया तो गोल है ॥
२ पहले तो एक अदा से पत्थर बना दिया,
फिर दिल के उसने, करोडों टुकडे कर दिए ।
एक और सोमनाथ! कहाँ गए बुत-परस्त ?
३ आंसू उबालकर आंखों में डालना,
दिलजलों के देश में यह आम बात है।
देखो आसमान भी है जल गया यहाँ॥
और दिल से शुक्रिया इसके लिए-
तुम्हारे चाँद को
आसमान बदलना गंवारा न था ।
तुमने चेहरे पर मुस्कान ला दी।
त्रिवेणियों बहुत भाई|
सुंदर बधाई
अवनीश
bahut sundar..kuch adbhut,kuch durlabh
तन्हा जी,
क्षणिकायें और त्रिवेणी दोनों को ही आपने सुन्दर ढंग से निभाया है... खास कर... ईश्क..सूरज, जरूरत
त्रिवेनियाँ बहुत अच्छी लगीं. ''एक और सोमनाथ! कहाँ गए बुत-परस्त ?''
क्या बात है !शिल्प और भाव दोनों ही बहुत खूब!
क्षणिकाएँ पढीं -
-जरुरत पसंद आयी.
-चाँद को एक्सटेंशन भी अच्छी है.अनोखा सा ख्याल है.
-सूरज , तुम्हारा होना भी भावपूरण हैं.
- इश्क़ में ये पंक्तियाँ बहुत निराली हैं-
अपनी जमीं पलट कर
तुम्हारा आसमां बना दिया-
-तनहा जी आप की इन सभी के साथ जब ' मुहासे'
पढी तो लगा नही की यह आप की ही रचना है-क्यों कि इस का स्तर बाकी सारी कविताओं से विपरीत है.
खेद है कि मैं इस के बारे में anonymous से कुछ हद तक सहमत हूँ.
और 'मधुमेह' में आप ने मधुमेह शब्द का प्रयोग कर इस कविता की गंभीरता को खत्म कर दिया.कृपया बुरा न माने .
धन्यवाद.
sabhi mitron ka tippani karne ke liye dhanyawaad.
anonmyous ji aur alpana ji, muhaase rachna mein maine un rishton ki baat ki hai jo kewal naam ke liye hote hain. jo jindgi ko kewal paripakwata dene ke liye hote hain. jaise muhaason ke aane ke baad insaan mature hua maana jata hai. aise rishte aajkal bhai-bhai mein bhi dekhe jaate hain. tanik si galatfahmi hui nahi ki rishte masal diye jaate hain. main apni rachna se yahi kahna chahta tha. shayad kahne mein safal nahi hua. kshama kijiyega.
-tanha
तन्हा जी कहीं आप डॉक्टर तो नहीं हैं? :)
मुहासे- मुँहासे
त्रिवेनियाँ की जगह त्रिवेणियाँ ज्यादा उपयुक्त होगा।
सभी क्षणिकाएँ और त्रिवेणियाँ ध्यान आकृष्ट करती हैं। 'मुँहासे' और 'मधुमेह' आपकी रचनात्मकता के नमूने हैं, फिर भी आपको पाठकों की प्रतिक्रियाओं को गंभीरता से लेना चाहिए। 'चाँद का एक्टेंशन' गौरव सोलंकी की क्षणिका 'चाँद की रिटायरमेंट' को आगे बढ़ाता है।
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