आ बैठ दिल कि आज कुछ हिसाब हो जाये;
कश़मश़ बहुत हुई अब बात साफ हो जाये।
कहाँ था जाना कहाँ आ गया है तू बेखद,
कि मंज़िलों का पता ही तलाश हो जाये।
तेरी नीयत ना बदल जाये कि इसके पहले,
क्या कसमें खायी थीं तूने सवाल हो जाये।
जो डगर तूने चुनी अपने लिये राहगीर,
उसके शोलों का रूबरू बयान हो जाये।
नहीं है दूर बहुत तेरे इम्तिहां की घड़ी,
बचे समय मे़ क्यों ना कुछ रियाज़ हो जाये।
नज़र हो मंज़िलों पे, हौसला ज़िगर में हो;
बढ़ें क़दम जो तेरे इंकलाब हो जाये।
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
पहली पंक्ति में बडी साफगोई है: "आ बैठ दिल कि आज कुछ हिसाब हो जाये" बहुत सुन्दर।
ये पंक्तियाँ भी मुझे बहुत अच्छी लगीं..
नहीं है दूर बहुत तेरे इम्तिहां की घड़ी,
बचे समय मे़ क्यों ना कुछ रियाज़ हो जाये।
नज़र हो मंज़िलों पे, हौसला ज़िगर में हो;
बढ़ें क़दम जो तेरे इंकलाब हो जाये।
*** राजीव रंजन प्रसाद
तेरी नीयत ना बदल जाये कि इसके पहले,
क्या कसमें खायी थीं तूने सवाल हो जाये।
बहुत ख़ूब .....
नहीं है दूर बहुत तेरे इम्तिहां की घड़ी,
बचे समय मे़ क्यों ना कुछ रियाज़ हो जाये।
बहुत सुंदर ... पंकज जी
पढ़ के इस को कुछ मेरे दिल में आया कि .....
"सबसे ख़ुशी का फ़ासला बस एक क़दम पर है
दिल में बस मंज़िलो को पाने का होसला चाहिए"
बहुत सुन्दर! सभी पंक्तियाँ एक से एक अच्छी।
घुघूती बासूती
पंकज भाई
सुन्दर लिखा है...
वैसे कितना भी हिसाव किताब कर लो आखिर मैं कुछ हाथ नही लगता...
आ बैठ दिल कि आज कुछ हिसाब हो जाये;
कश़मश़ बहुत हुई अब बात साफ हो जाये।
बहुत खूब ...बधाई
Uttam likha haiaapki peshkash aachi lagi.khaaskar meri pasandidaa pankityaan:-
आ बैठ दिल कि आज कुछ हिसाब हो जाये;
कश़मश़ बहुत हुई अब बात साफ हो जाये।
कहाँ था जाना कहाँ आ गया है तू बेखद,
कि मंज़िलों का पता ही तलाश हो जाये।
तेरी नीयत ना बदल जाये कि इसके पहले,
क्या कसमें खायी थीं तूने सवाल हो जाये।
keep wiriting
" जो डगर तूने चुनी अपने लिये राहगीर,
उसके शोलों का रूबरू बयान हो जाये। "
"नहीं है दूर बहुत तेरे इम्तिहां की घड़ी,
बचे समय मे़ क्यों ना कुछ रियाज़ हो जाये। "
Bahut khub !!
bahut sundar
Ripudaman
बधाई पंकज जी। अच्छी रचना है। खुद से हिसाब करना आसान तो नहीं, मगर बेहद जरूरी होता है। आखिरी शेर में जो आपने भविष्य के प्रति सकारात्मक रुख अपनाया है, वो भी बहुत अच्छा लगा-
नज़र हो मंज़िलों पे, हौसला ज़िगर में हो;
बढ़ें क़दम जो तेरे इंकलाब हो जाये।
नज़र हो मंज़िलों पे, हौसला ज़िगर में हो;
बढ़ें क़दम जो तेरे इंकलाब हो जाये।
बड़ी हीं बढिया गज़ल है।
बधाई स्वीकारें।
वाह बहुत सुन्दर लिखा है,...
आ बैठ दिल कि आज कुछ हिसाब हो जाये;
कश़मश़ बहुत हुई अब बात साफ हो जाये।
ये भी सच है,...
तेरी नीयत ना बदल जाये कि इसके पहले,
क्या कसमें खायी थीं तूने सवाल हो जाये।
बहुत ही सुन्देर पन्क्तिया है,...
सुनीता(शानू)
आ बैठ दिल कि आज कुछ हिसाब हो जाये;
कश़मश़ बहुत हुई अब बात साफ हो जाये।
बहुत सुन्दर पंकजजी. "इंकलाब हो जाये" के रूप में आपने अपनी अब तक की बेहतरीन प्रस्तुति दी है। बधाई!
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