कहाँ जा रहे हो, वहाँ कौन तेरा
तुझे तोड़ देगा, यही मौन तेरा..
बने हो खिलौना, रे मिटटी के माधो
नहीं कुछ तुम्हारा, न सावन न भादो
मगर आदमी आम जैसे चुसे हो
दिलों पर हैं पत्थर, बिलों मे घुसे हो..
साँसों की सोचो, नजरबंद होगी
जो मकड़ी बुनेगी, षटकोन घेरा..
कहाँ जा रहे हो, वहाँ कौन तेरा...
पक्का न कच्चा, भूखा है बच्चा
कल का है सपना, झूठा कि सच्चा
कहानी में नानी ने पूए पकाये
जो दादा ने देखे न नाना ने खाये..
चुल्लु में पानी, आँखों में सूरज
फूटे फफोलों में है नोन तेरा..
कहाँ जा रहे हो, वहाँ कौन तेरा...
घुटनों में चेहरा, आँखों में काँटे
हाँथों की रेखा में किसने ये बाँटे
जुगनू से पूछो अंधेरे की बातें
बिखरते सितारों से फैली हैं रातें..
अपने तने को तुम्हीं काटते हो
किसी घर सजेगा, ये सागौन तेरा..
कहाँ जा रहे हो, वहाँ कौन तेरा...
मगर चीख कर रो के देखो समंदर
चुभा कर तो देखो अंबर को नश्तर
अगर भींच कर अपनी मुट्ठी चलोगे
तो बरगद के नीचे भी फूलो फलोगे...
ये रातें घनी हैं, सभी जानते हैं
मगर आँख खोलो, वहीं पर सवेरा..
कहाँ जा रहे हो, वहाँ कौन तेरा...
*** राजीव रंजन प्रसाद
15.03.2007
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18 कविताप्रेमियों का कहना है :
ये रातें घनी हैं, सभी जानते हैं
मगर आँख खोलो, वहीं पर सवेरा..
rightly said !!
Aapki yeh rachana jeevanka katu satya hameshaki bhanti bayan karti hain. Fark itna hi laga ki thode saumya shabdonmein likhi hai.
राजीव जी, कुछ पंक्तियाँ बहुत मासूम थी और साथ ही बहुत निर्मम.
जब मैंने शीर्षक देखा तो लगा कि कोई प्रेम कविता है.पढा तो जाना कि प्रेम के साथ जीवन के बहुत सच भी हैं, जो जब दिखाई देते हैं तो श्रृंगार से अचानक मोह-भंग हो जाता है.
आपने हमेशा की तरह भावों के साथ पूरा न्याय किया है.अंत की पंक्तियाँ फिर से जोश दिला देती हैं.
याद दिलाती हैं कि अभी खेल खत्म नहीं हुआ है, बाजी तेरे ही हाथ में है और चाल आपने बता ही दी है.
मगर चीख कर रो के देखो समंदर
चुभा कर तो देखो अंबर को नश्तर
अगर भींच कर अपनी मुट्ठी चलोगे
तो बरगद के नीचे भी फूलो फलोगे...
आप जैसे राह दिखाने वाले रहेंगे तो सवेरा बहुत दूर नहीं है...वाकई..
मगर चीख कर रो के देखो समंदर
चुभा कर तो देखो अंबर को नश्तर
अगर भींच कर अपनी मुट्ठी चलोगे
तो बरगद के नीचे भी फूलो फलोगे...
ये रातें घनी हैं, सभी जानते हैं
मगर आँख खोलो, वहीं पर सवेरा..
कहाँ जा रहे हो, वहाँ कौन तेरा...
बहुत ख़ूब राजीव जी ...जिस सच्चाई से आपने ज़िंदगी का यह अर्थ बताया है
वो बहुत ही ख़ूबसूरत है ..
आपने बहुत खूब लिखा है.. हिम्मत और कर्मठता से ही आदमी जीवन की जंग जीत सकता है.. हमें अपने कोष्ठों से निकल कर सभी जाले तोडते हुये नयी सुबह को पाना है चाहे उसके लिये कितने भी अन्धेरों से जुझना पडे..
राजीव जी कभी प्यार-मोहब्बत की बात भी कर लिया करो भाई।
इतना जुड कर लिखते हो कि दिल बैठ जाता है कि यार क्या वास्तव में सिच्वेशन इतनी खराब हो गयी है।
अमाँ खाली-पीली, हार्ट-अटैक में मारे जाऐंगे हम किसी दिन, फिर मत कहना बताया नहीं था।
राजीव जी, मुझे समझ नहीं आता कि आप इतनी ऊर्जा कहाँ से लाते हैं। हर बार कुछ नया और पहले से भी बेहतर लिखना तो जैसे आपके लिये मामूली बात है। इस बार भी आपने समाज के गरीब तबके को बेहतरीन ढंग से शब्दों में पिरोया है।
चुल्लु में पानी, आँखों में सूरज
फूटे फफोलों में है नोन तेरा..
कहाँ जा रहे हो, वहाँ कौन तेरा...
सचमुच कविता पढ़ते हुए लगता है कि मानो हम इसे पढ़ नहीं रहे, बल्कि जी रहे हैं। एक बार फिर बहुत बहुत बधाई।
"साँसों की सोचो, नजरबंद होगी
जो मकड़ी बुनेगी, षटकोन घेरा..
कहाँ जा रहे हो, वहाँ कौन तेरा..."
"चुल्लु में पानी, आँखों में सूरज
फूटे फफोलों में है नोन तेरा..
कहाँ जा रहे हो, वहाँ कौन तेरा..."
आपके अनूठे प्रयोग कविता को आम आदमी की भाषा बना देते हैं|
अद्भुत भाव,सुस्पष्ट बिम्ब, हृदयस्पर्शी, प्रेरणाप्रद
"मगर चीख कर रो के देखो समंदर
चुभा कर तो देखो अंबर को नश्तर
अगर भींच कर अपनी मुट्ठी चलोगे
तो बरगद के नीचे भी फूलो फलोगे..."
बहुत ही सुन्दर, उत्कृष्ट कृति
सस्नेह
गौरव शुक्ल
बहुत ही खूबसूरत गीत रचा है आपने, राजीवजी!
साँसों की सोचो, नजरबंद होगी
जो मकड़ी बुनेगी, षटकोन घेरा..
घुटनों में चेहरा, आँखों में काँटे
हाँथों की रेखा में किसने ये बाँटे
बहुत खूब.
आपसे एक निवेदन है राजीवजी, इस प्रकार के सुन्दर गीत प्रकाशित करने के साथ-साथ अपनी आवाज में पोडकास्ट भी कर दिया करें।
आपकी यह कविता दिल को झकझोर देने वाली है, आपकी प्रत्येक पक्तिंयॉं संदेश देती है, जो दिल का छू रही है।
बढ़िया लिखा है । बधाई
कमाल कर दिया राजीव जी, बहुत बहुत बहुत बधाई!! अनेक पंक्तियाँ बहुत सुन्दर बन पड़ीं हैं. बहुत परिपक्व रचना है. आनन्द आ गया. यह पंक्तियाँ विशेष अच्छी लगीं -
साँसों की सोचो, नजरबंद होगी
जो मकड़ी बुनेगी, षटकोन घेरा..
कहाँ जा रहे हो, वहाँ कौन तेरा..."
"चुल्लु में पानी, आँखों में सूरज
फूटे फफोलों में है नोन तेरा..
कहाँ जा रहे हो, वहाँ कौन तेरा..."
bahut kuch hai jo padhane waale ke paas raha jaataa hai.
मैं मौन हूँ। शब्द नहीं हैं मेरे पास। आपके जैसे अनुभवी एवं प्रेरणाप्रद कवि की रचना पर टिप्पणी करने के लायक मैं अभी हुआ नहीं हूँ।
कौन से छंद चुनूँ और कहूँ कि ज्यादा पसंद आए ।
आपकी रचना हमें रास्ता दीखाती है,अपना महत्व समझाती है।
मगर चीख कर रो के देखो समंदर
चुभा कर तो देखो अंबर को नश्तर।
वहीं दूसरी तरफ हमारी कमजोरियों से भी अवगत कराती है।
अगर भींच कर अपनी मुट्ठी चलोगे
तो बरगद के नीचे भी फूलो फलोगे...
गरीबी का स्पष्ट चित्रण करती है।
पक्का न कच्चा, भूखा है बच्चा
कल का है सपना, झूठा कि सच्चा
कहानी में नानी ने पूए पकाये
जो दादा ने देखे न नाना ने खाये..
तो कभी हममें जोश डालती है।
ये रातें घनी हैं, सभी जानते हैं
मगर आँख खोलो, वहीं पर सवेरा..
आपकी लेखनी के सामने नतमस्तक हूँ।
कहानी में नानी ने पूए पकाये
जो दादा ने देखे न नाना ने खाये
यह असमानता पर प्रहार नहीं तो और क्या है!
राजीव जी,
अमूमन मैंने देखा है लोग गीत लिखते वक़्त भाव-प्रदर्शन में चूक जाते हैं। मगर आपके साथ ऐसा नहीं है। निराश-हताश ज़िन्दगी के अँधेरे घरों में आशा का दीपक भी आप ही लेकर आये हैं-
अगर भींच कर अपनी मुट्ठी चलोगे
तो बरगद के नीचे भी फूलो फलोगे...
गिरिराज जी का निवेदन स्वीकार करें।
a point to learn:-
बने हो खिलौना, रे मिटटी के माधो
नहीं कुछ तुम्हारा, न सावन न भादो
drop of tear saved:-
चुल्लु में पानी, आँखों में सूरज
फूटे फफोलों में है नोन तेरा..
Inspirational showing lightway
मगर चीख कर रो के देखो समंदर
चुभा कर तो देखो अंबर को नश्तर
अगर भींच कर अपनी मुट्ठी चलोगे
तो बरगद के नीचे भी फूलो फलोगे...
The best lines that took my heart away hummmmmmmmmmmm
घुटनों में चेहरा, आँखों में काँटे
हाँथों की रेखा में किसने ये बाँटे
जुगनू से पूछो अंधेरे की बातें
बिखरते सितारों से फैली हैं रातें..
Rajeevji this is among one of the best Song i caughtup...will try to compose it...
tujhe todh dega ye moun tera
kaha jaa rahe ho waha koun tera kya kahun bus padhte hi jaise darkan bhi ruk gayi aur ek baar main pura padhne ke baad fir se dobara padha hai ishe
aapko padhna shuru se hi achha laga hai is baar ye mere dil ke bhaut kareeb rahi
baat ko kahne ka aapka andaaj bhaut alag sa laga
kavitaa mein getyaa hai.. lay bhi !
padane mein sundar lagtii hai.
par kavi, mujhe ko ye batayein, kee kavitaa ke central idea ko aap upper se neechey tak nibhaa paa rahe hain ? yaa ... aap ko bhi aisaa lagataa hai.. kee baat shuru ho kar doosari direction mein chali gayii ?
likhiyegaa....
saadar pranaam
Ripudaman
राजीव जी बहुत गहराई है आपकी कविता में,..हर पन्क्ति जिन्दगी की सच्चाईयों से अवगत करवाती है
साँसों की सोचो, नजरबंद होगी
जो मकड़ी बुनेगी, षटकोन घेरा..
कहाँ जा रहे हो, वहाँ कौन तेरा..."
"चुल्लु में पानी, आँखों में सूरज
फूटे फफोलों में है नोन तेरा..
कहाँ जा रहे हो, वहाँ कौन तेरा..."
ओर कुछ पन्क्तियाँ हमे सीख भी देती है,..
मगर चीख कर रो के देखो समंदर
चुभा कर तो देखो अंबर को नश्तर
अगर भींच कर अपनी मुट्ठी चलोगे
तो बरगद के नीचे भी फूलो फलोगे...
बहुत सुन्दर लिखते है
सुनीता(शानू)
rajeev ji...........sab ne itna kuch kah diya hai k ab mere kahne k liye kuch bacha hi nahi....phir bhi..............itna sundar likhne k liye badhaiiiiiiiiiiii
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)